दुनिया के लिए वरदान के रूप में आया प्लास्टिक अब एक अभिशाप बनता जा रहा है। ये कभी न खत्म होने वाला प्लास्टिक धीरे-धीरे पूरी दुनिया में जहर की तरह फैलता जा रहा है। प्लास्टिक प्रदुषण के प्रमुख कारणों में से एक है और हाल ही में आई एक रिपोर्ट अनुसार नालियों में जमा होने वाले प्लास्टिक से अब दुनिया भर के 21.8 करोड़ लोगों पर से बाढ़ का गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
यह प्लास्टिक ऐसे ही सड़कों व नालियों आदि में फेंकें जाने के कारण नालियों में जमा हो जाता है जो प्रवाह प्रणाली (ड्रेनेज सिस्टम) को अवरुद्ध कर रहा है। वहीं शोधकर्ताओं के अनुमानानुसार साल 2000 से 2019 के बीच प्लास्टिक कचरा बढ़कर दोगुना हो गया है। जिसके कारण अब बाढ़ का यह खतरा धीरे – धीरे बढ़ता ही जा रहा है। डरा देने वाली बात यह है कि बाढ़ केवल एक बार नहीं बल्कि कई बार आएगी जो लोगों की जान के लिए हर बार खतरा बनेगा। इस बाढ़ का सबसे अधिक प्रभाव गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों पर पड़ेगा। लोगों की यह संख्या ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की कुल जनसंख्या के बराबर है। रिपोर्ट में इस बात की जानकारी भी मिलती है कि जिन लोगों पर बाढ़ का खतरा है उनमें से 4.1 करोड़ बच्चे, वृद्ध और शारीरिक रूप से विकलांग हैं। जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये सभी पहले से ही स्वास्थ्य व अन्य समस्याओं से जूझ रहें हैं। ऐसे में बाढ़ इनके लिए काल बनकर आएगी। इस बाढ़ का सबसे अधिक प्रभाव असर दक्षिण, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र के साथ अफ्रीका के उपसहारा में पड़ेगा।
मुंबई में आई थी ऐसी बाढ़
रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 में मुंबई में भी ऐसे ही विनाशकारी बाढ़ आई थी। जिसमें लगभग 1 हजार 56 लोगों की जान गई थी, जबकि करीब 9 हजार करोड़ से ज्यादा का आर्थिक नुकसान हुआ था। इस बाढ़ की जांच रिपोर्ट में भी बाढ़ का कारण बारिश के साथ नालियों में जमा होने वाले प्लास्टिक कचरे को भी एक वजह माना गया था। क्यूंकि प्लास्टिक नालियों में जमा प्लास्टिक की चीजों ने तूफानी नालियों को अवरुद्ध कर दिया था। जिसके कारण मानसूनी बारिश का पानी शहर में ही जमा हो गया था।
क्या खत्म नहीं हो सकता प्लास्टिक
शोधकर्ताओं के अनुसार प्लास्टिक के चार प्रकारों नॉन-बायोडिग्रेडेबल पॉलीएथिलीन (पीई), और बायोडिग्रेडेबल पॉलिएस्टर-पॉलीयूरेथेन (पीयूआर), पॉलीब्यूटिलीन एडिपेट टेरेफ्थेलेट (पीबीएटी) और पॉलीलैक्टिक एसिड (पीएलए) के दो व्यावसायिक रूपों पर इनकी जांच की गई। जिसमें पाया गया की इनमें सूक्ष्मजीवों के 19 उपभेद है जिनमें 11 कवक और आठ बैक्टीरिया शामिल थे, वो 15 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पॉलिएस्टर-पॉलीयूरेथेन (पीयूआर) को हजम करने में सक्षम थे। लेकिन 126 दिनों के बाद भी इनमें से कोई भी स्ट्रेन, पॉलीएथिलीन (पीई) को खत्म करने में सक्षम नहीं था। वहीं 14 फंगी और तीन बैक्टीरिया पीबीएटी और पीएलए के मिश्रित प्लास्टिक को खत्म करने में सक्षम थे।
रक्त में भी माइक्रो प्लास्टिक
प्लास्टिक हमारे जीवन को सबसे ज्यादा पर्यावरण को प्रभवित कर रही है और यह हमारे लिए सबसे गंभीर चिंता का विषय हैं। देश में भूख मिटाने के लिए गरम-गरम खाने से लेकर ठंडे पानी तक प्लास्टिक की वस्तुओं के उपयोग से दिन -दिन बीमारियों का खतरा भी बढ़ता ही जा रहा है। पर्यावरण संबंधी एक समूह का कहना है कि धरती पर कचरा फैला रहे प्लास्टिक के लाखों टुकड़े पूरी दुनिया में फ़ैल जाते हैं। आज हमारे आस-पास प्लास्टिक ही प्लास्टिक है। दुनिया में पहली बार मानव रक्त में भी माइक्रो प्लास्टिक पाया गया है।
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