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पेगासस विवाद: इजरायल 65 देशों को नहीं बेचेगा अपनी तकनीक

Pegasus मामला सामने आने के बाद से इस सॉफ्टवेयर को बनाने वाले इजरायल में भी काफी उथल पुथल मची हुई है। इजरायल की कंपनी NSO द्वारा विकसित जासूसी Pegasus दुनिया भर में एक बार फिर चर्चा में है।

साइबर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में NSO कंपनी के Pegasus हैकिंग टूल पर विवाद के बाद इज़राइल ने अपनी साइबर प्रौद्योगिकी निर्यात नीति में बदलाव किया है। इज़राइल ने उन देशों की सूची में कटौती की है जो 102 देशों से 37 को साइबर प्रौद्योगिकी की खरीद की अनुमति देते हैं। भारत बहिष्कृत देश में शामिल नहीं है। इज़राइल ने मेक्सिको, मोरक्को, सऊदी अरब और यूएई से प्रौद्योगिकी की खरीद पर प्रतिबंध लगा दिया है। इजरायल के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि इन देशों ने निर्यात लाइसेंसिंग शर्तों का उल्लंघन किया है।

प्रोजेक्ट Pegasus रिसर्च प्रोजेक्ट के अनुसार Pegasus तकनीक का इस्तेमाल मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, वकीलों, व्यापारियों, सरकारी अधिकारियों, वैज्ञानिकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों की जासूसी के लिए किया गया है। गौरतलब है कि एनएसओ ग्रुप के जासूसी साफ्टवेयर पेगसास को इजरायल की पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू की सरकार बढ़ावा दे रही थी। भारत समेत जिन जिन देशों से जासूसी के खुलासे आ रहे हैं वहां वहां नेतन्‍याहू ने यात्रा की और इस जासूसी साफ्टवेयर के रैकेट का जाल फैलता गया।

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इजरायली अखबार हारित्‍ज के अनुसार, विदेशी सरकारों पर नेतन्‍याहू सरकार पेगासस साफ्टवेयर को लेने पर जोर डाला करती थी। साथ ही बताया गया कि एनएसओ को जरा भी संकोच होता था। वहां खुद नेतन्‍याहू सरकार बात कर लिया करती थी। अखबार द्वारा कई सूत्रों के हवाले से बताया गया कि इजरायली पीएम नेतन्‍याहू विदेश दौरों के दौरान अपने साइबर हथियारों खासकर एनएसओ समूह का जमकर समर्थन किया करते थे।

Apple सहित अन्य प्रमुख टेक कंपनियों ने NSO पर ग्राहक डेटा को खतरे में डालने का आरोप लगाते हुए इज़राइल के NSO के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। रॉयटर्स के अनुसार, इज़राइल ने अपनी साइबर तकनीक का आयात करने वाले देशों की संख्या कम कर दी है।

गौरतलब है कि जुलाई में कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने पेगासस टूल पर रिपोर्ट की, जिसमें आरोप लगाया गया कि पेगासस हैकिंग टूल का उपयोग करके पत्रकारों, सरकारी अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन हैक किए जा रहे हैं। नतीजतन, इस उपकरण को नियंत्रित करने के लिए इज़राइल पर दुनिया भर का दबाव था। एनएसओ ने जारी एक बयान में आरोपों का खंडन किया था, जिसमें कहा गया है, “रूस की खुफिया जानकारी के संबंध में इसी तरह के निराधार आरोप एक से अधिक बार लगाए गए हैं।

भारत में पेगासस को लेकर बवाल हो रहा है लेकिन बावजूद इसके भारत बहिष्कृत सूची में नहीं है। इसके कई कारण हो सकते हैं। पहला कि आजादी के बाद शुरू के चार दशकों तक भारत की नीति फिलिस्तीन समर्थक की रही है। शुरुआत में भारत ने इजरायल को मान्यता देने से भी इनकार कर दिया था लेकिन बाद में भारत ने इजरायल से भी संतुलन साधने का प्रयास किया। धीरे-धीरे भारत का रुख इजरायल समर्थक के रूप में देखा जाने लगा है।

फिलिस्तीन के साथ भारत का इतिहास में संबंध काफी प्रगाढ़ रहा है। फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) सत्तर के दशक में प्रमुख यासिर अराफात के रहते हुए फिलिस्तीन और भारत के रिश्ते काफी मधुर थे। इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी के पीएम रहने के दौरान यासिर अराफात द्वारा भारत का दौरा भी किया गया । भारत अकेला वर्ष 1974 मेंगैर मुस्लिम देश था जिसने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता दी थी। 1988 में फिलिस्तीन को बतौर राष्ट्र मान्यता देने वाला भारत पहला गैर अरब देश था।

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