दो सालों से भी ज्यादा समय से एक ओर जहां पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है वहीं दूसरी तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनियाभर के मुल्कों की अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार का असर दिखने लगा है। ऐसी स्थिति में आर्थिक संकट के चलते पड़ोसी देश पाकिस्तान में मची भारी राजनीतिक उथल-पुथल के चलते सरकार बदली, निजाम बदला लेकिन देश के हालात नहीं बदले। पाकिस्तान में आर्थिक संकट कम होने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ जहां रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है तो वहीं दूसरी तरफ सरकारी खजाना खाली हो चुका है। पाकिस्तान की लंबे समय से आर्थिक हालात खस्ताहाल है। मौजूदा समय में उसकी हालत यह हो गई है कि अब उसे अपना पिछला कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज लेना पड़ रहा है। एक के बाद एक कर्ज के सहारे देश चला रही पाकिस्तान सरकार कर्ज के नीचे दब गई है। सरकार हर साल यह प्लान बनाती है कि आखिर इस साल किस देश से कर्ज लिया जाए और कितना कर्ज लिया जाए। कर्ज के इस खेल में अब देश दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया है।
दरअसल, स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार नीचे गिरकर दस अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है। पाकिस्तान के आर्थिक मामलों के जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि पाकिस्तान अब श्रीलंका की राह पर है, यही हालात रहे तो जल्द ही पाकिस्तान दिवालिया हो सकता है। वैसे तो पाकिस्तान पहले से आर्थिक संकट से जूझ रहा था। लेकिन नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार ने विदेश से आई ऐसी चीजों पर रोक लगा दी जिसे लोग रोजमर्रा के लिए उपयोग में लाते हैं। रोक लगाने की वजह खुद शरीफ ने बताई है। उन्होंने बताया कि लग्जरी वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय से देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
खाली होने स्थिति में विदेशी मुद्रा भंडार
पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता जा रहा है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 328 मिलियन अमेरिकी डॉलर गिरकर 10.558 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है। इतने कम विदेशी मुद्रा भंडार से पाकिस्तान कम से कम दो महीने तक अपना काम चला सकता है। पाकिस्तान सरकार आर्थिक संकट हल करने के लिए जो उपाय कर रही है वो नाकाफी हैं। कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी करंसी डॉलर के मुकाबले अभी और कमजोर होगी।
आईएमएफ के सामने टेके घुटने
शाहबाज शरीफ की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे घुटने टेक दिए हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान में अगर आर्थिक संकट बढ़ गया तो एक बार फिर वहां राजनीतिक अस्थिरता आ सकती है। देश पर दिसंबर 2021 में कुल कर्ज 51 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। इस कर्ज में करीब 21 लाख करोड़ रुपया विदेशी कर्ज है। आईएमएफ के मुताबिक पाकिस्तान पर अपनी जीडीपी का 74 फीसदी कर्ज है। आईएमएफ ने पाकिस्तान से साफ शब्दों में कहा है कि अगर उसे पैसे चाहिए तो वह तेल पर दी जा रही सब्सिडी तुरंत हटा दे।
आईएमएफ ने जोर देकर कहा कि सहायता कार्यक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ‘ईंधन और ऊर्जा सब्सिडी को हटाने’ की तत्काल आवश्यकता है। आईएमएफ और पाकिस्तान के अधिकारियों की यह बैठर दोहा में हुई थी। इस दौरान आईएमएफ ने पाकिस्तान को 6 अरब डालर के बाहरी वित्त पोषण सुविधा (ईएफएफ) के तहत रुकी हुई अगली किश्त को फिर से शुरू करने से मना कर दिया है। गौरतलब है कि बढ़ती महंगाई और बिगड़ी अर्थव्यवस्था व कमजोर होते पाकिस्तानी रुपए से देश की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है। इस संकट से उबरने के लिए उसे आईएमएफ के बेलआउट पैकेज की अगली किश्त की जरूरत है। लेकिन आईएमएफ ने पाकिस्तान में जारी राजनीतिक संकट के बीच दी जाने वाली वित्तीय सहायता रोक दी है।
लगातार गिर रहा रुपया
पाकिस्तानी रुपया अपने रिकॉर्ड गिरावट पर पहुंच गया है। हाल ही में पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले 200 के स्तर पर पहुंच गया है। यानी एक डॉलर की कीमत 200 रुपए हो गई है। पाकिस्तानी रुपए की रिकॉर्ड गिरावट से महंगाई और बढ़ने का डर है। ट्रेडिंग इकोनॉमिस्क की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में थोक महंगाई दर 13 साल के उच्चतम स्तर पहुंच गई है। अप्रैल में थोक महंगाई दर 28.2 फीसदी पर पहुंच गई है। इसी तरह रिटेल महंगाई दर 13.4 फीसदी पर पहुंच गई है। जो कि जनवरी 2021 के बाद सबसे उच्च स्तर पर है।
पाकिस्तान की वित्तीय मामलों की जांच एजेंसी एफबीआर के पूर्व चेयरमैन सैयद शब्बर जैदी ने हाल ही में कहा था कि पाकिस्तान की हालत श्रीलंका से अलग नहीं है और पाकिस्तान भी दिवालिया होने की कगार पर है।