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पाकिस्तान चुनाव 2018: दल, राजनीति और भारत

पाकिस्‍तान में आम चुनाव का बिगुल बज चुका है और आए दिन मीडिया में वहां के नेताओं की अजब-गजब कैम्‍पेन के किस्‍से आते रहते हैं। इस बार पाकिस्‍तान में ऐतिहासिक रूप से महिलाएं चुनाव में हिस्‍सा ले रही हैं। तो आइए चर्चा करते हैं पाकिस्‍तानी चुनावों के तरीके और इस बार चुनावी माहौल के बारे में:

कुछ अलग है पाकिस्‍तान में चुनावों का तरीका

पाकिस्‍तान का चुनावी तरीका थोड़ा बहुत हिन्‍दुस्‍तान जैसा ही है। लेकिन दो बातें इसे हिन्‍दुस्‍तान के चुनावी सिस्‍टम से थोड़ा सा अलग बनाती हैं। सबसे पहले सामान्‍य बातों पर नजर डालते हैं। पाकिस्‍तान के निचले सदन जिसके चुनाव 25 जून को होने जा रहे हैं वहां 342 सीटें हैं। इनमें 272 सामान्‍य सीटें हैं जिन पर सामान्‍य रूप से चुनाव होते हैं। बहुमत प्राप्‍त करने के लिए एक पार्टी को कम से कम 172 सीटे जीतनी होती हैं।

गौर करने वाली बात है कि वहां 60 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इन आरक्षित सीटों को बहुत अनोखे तरीके से जीती हुई पार्टियों में बांटा जाता है। इन सीटों को बांटने के लिए एक केलकुलेशन की जाती है। यह केलकुलेशन किसी भी पार्टी द्वारा जीती गई सीटों के आधार पर की जाती है। इसमें 272 जनरल सीट को 60 आरक्षित सीट से भाग देते हैं। इसका औसत 4.5 आता है। इस आधार पर हर 4.5 सीट पर एक आरक्षि‍त सीट पार्टी को दी जाती है। सभी पार्टियों को इन आरक्षित सीटों के लिए पहले से ही महिलाओं की वरियता सूची देनी पड़ती है जिसके आधार पर इस नीचले सदन में 60 महिलाएं पहुंचती हैं। गौर तलब है कि इनमें वो महिलाएं शामिल नहीं होती जो पहले से ही सामान्‍य सीटों पर लड़ कर जीतती हैं।

इसके अलावा वहां अल्‍पसंख्‍यकों के नेतृत्‍व के लिए सदन में 10 सीटें आरक्षित है। इसके लिए भी वहीं तरीका अपनाया जाता है जो महिलाओं की आरक्षित सीट के बटवारे के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है। इस फार्मुले से यहां 27.2 सीटे जीतने पर एक अल्‍पसंख्‍यक सीट दी जाती है।

चुनावी बिसात:

पाकिस्‍तान में मैदान में तीन चेहरे और तीन पार्टियां हैं। सबसे पहले पिछले चुनावों में जीत कर सरकार बनाने वाली पाकिस्‍तान मुस्लिम लीग (नवाज)। इस पार्टी ने पिछला चुनाव तो नवाज शरीफ के नेतृत्‍व में लड़ा था लेकिन पिछले साल पनामा पेपर के चलते इन्‍हें पार्टी ही छोड़नी पड़ी तो इस बार इस पार्टी से कमान नवाज के छोटे भाई शहबाज शरीफ ने संभाल ली है।

दूसरी पार्टी तहरीक ए इंसाफ है जिसकी कमान पूर्व क्रिकेटर इरफान खान के हाथों में है। इरफान ने इस बार बहुत मेहनत की है और हर उस मुद्दे को छुआ है जो पाकिस्‍तानियों को सोचने पर मजबूर कर दे। ऐसे में कुछ लोग तो ये मानने लगे हैं कि इस दफा चुनावों में तहरीक ए इंसाफ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आएगी।

तीसरी पार्टी पाकिस्‍तान पिपुल्‍स पार्टी है। जिसकी कमान बिलावल भुट्टो के हाथ में हैं। बिलावल के चुनावी कैम्‍पेन बहुत फीके नजर आ रहे हैं। इनकी रैलियों से ऐसा लगता है कि पाकिस्‍तान की जनता ने बेनजीर भुट्टो की जगह बिलावल को स्‍वीकार नहीं किया। चुनावी पंडितो का मानना है कि पाकिस्‍तान की राजनीति में वहीं पुरानी ताकत हांसिल करने के लिए पार्टी को अभी समय लगेगा। बिलावल को जनता ने अभी उस तरह से स्‍वीकार नहीं किया है जैसे बेनजीर को किया गया था।

चुनावों में किस ओर है हवा:

वैसे तो जब तक चुनाव आयोग नतीजे घोषित नहीं करता तब तक नतीजों को लेकर केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं। ये कयास कई बातों पर निर्भर करते हैं, जिनमें नेताओं की लोकप्रीयता उनकी रैलियों में आ रही भीड़ और लोगों का उनके प्रति रुझान शामिल है। इसी आधार पर और पाकिस्‍तान से आई खबरों के अनुसार एक नजर इस बार की संभावित चुनावी गणित पर:

सबसे पहले बात करते हैं इन चुनावों की कमजोर कड़ी यानी कि पाकिस्‍तान पिपुल्‍स पार्टी की। बिलावल न तो कोई ऐसी नब्ज पकड़ पाए जिससे जनता उन्‍हें और उनकी पार्टी को वोट दे और न ही ऐसा लगता है कि उन्‍होंने जनता के बीच जाकर उनका विश्‍वास जीतने की कोशिश भी की है। चुनावों की तैयारियों में अगर बिलावल पर हमला न हुआ होता तो शायद ही मीडिया में उनकी कोई कवरेज भी होती। ऐसे तेवर के कारण ही बिलावल में पाकिस्‍तान की जनता उनकी मां बेनजीर भुट्टो को नहीं देखती शायद इसी कारण से वह अपने नाना और मां की तरह पाकिस्‍तान की आवाम को अपने साथ लेकर चलने में नाकामयाब रहे हैं। इसके अलावा बिलावल के साथ उनके पिता का होना वर्तमान परिस्थितियों में खुदकुशी जैसा है क्‍योंकि आसिफ अली जरदारी पर कई बड़े करप्‍शन के चार्ज लगे हैं।

यह पीपीपी के लिए ज्‍यादा नुकसान दायक इसलिए भी है क्‍योंकि भारत के 2014 के आमचुनावों की तर्ज पर इस बार पाकिस्‍तान में भी चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रस्‍टाचार का है। इसी मुद्दे पर इरफान खान ने अपनी प्रतिद्ंदी दोनों पार्टियों को घेरा है। और हो भी क्‍यों न, नवाज शरीफ को पनामा पेपर के भ्रष्‍टाचार के आरोप में सत्‍ता से बीच में ही किनारा करना पड़ा। पाकिस्‍तान पिपुल्‍स पार्टी पर भी जरदारी के समय से ही आरोप लगते आए हैं। ऐसे में इरफान खान समझते हैं कि ये जो भ्रष्‍टाचार से मुक्‍त होने की हवा हिन्‍दुस्‍तान से चली है वह पाकिस्‍तान में भी पहुच चुकी है और जनता किसी भी देश की हो वह हमेशा भ्रष्‍टाचार मुक्‍त प्रशासन चाहती है।

इरफान खान की पूरी कैम्‍पेन भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई की तर्ज पर ही बनाई गई है। साथ ही कश्‍मीर और हिन्‍दुस्‍तान को लेकर उनका जो सख्‍त रवैया है वह भी उनके लिए एक प्‍लस प्‍वाइंट है। इन्‍हीं सबके आधार पर कई चुनावी पंडितो ने यह ऐलान कर दिया है कि इरफान पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने ही वाले हैं।

अब बात तीसरे दल की जो अभी सत्‍ता में काबिज है। पिछले चुनावों में नवाज की पाकिस्‍तान मुस्लिम लीग को 166 सीटें मिली थी। इसके बाद 19 स्‍वतंत्र विधायकों के साथ देने पर नवाज तीसरी बार पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन अब हालात बहुत बदल चुके हैं। इस दल के कई बड़े देता हवा का रुख देख कर तहरीक ए इंसाफ में शामिल हो चुके हैं। इतना ही नहीं नवाज शरीफ पर चुनावों में शिरकत करने पर बैन है और भ्रष्‍टाचार में शामिल होने के कारण उनकी पार्टी की छवि भी खराब हुई है।

इस परिस्थिति में पार्टी की नैया को पार लगाने के लिए नवाज के छोटे भाई शहबाज शरीफ सामने आए हैं। उन्‍हें पार्टी की जिम्‍मेदारी दी गई है। वह पंजाब प्रांत के मुख्‍यमंत्री है और पाकिस्‍तान में उनकी अपनी राजनीतिक जमीन है। पिछले चुनावों में उनका प्रदर्शन ही इस पार्टी के लिए एक उम्‍मीद की किरण हो सकता है।

हार जीत का भारत के साथ रिश्‍तों पर असर  

पाकिस्‍तान की किसी भी पार्टी के सत्‍ता पर आने से भारत के साथ रिश्‍तों में कोई खास फर्क नहीं दिखेगा। जिस हिसाब से इस बार चमरपंथियों को चुनाव में उतारा गया है उससे साफ है कि हिन्‍दुस्‍तान के साथ रिश्‍तों को लेकर वह कितना संजीदा है। खैर भारत के लिए सबसे अच्‍छा रहेगा कि पाकिस्‍तान में पाकिस्‍तान मुस्‍लिम लीग की सरकार बने। मोदी से नवाज की दोस्‍ती किसी से छुपी नहीं है। इस सरकार के आने से कम से कम एक उम्‍मीद है कि रुकी हुई बातचीत आगे बढ़ सकेगी।

इसके एकदम उलट तहरीक ए इंसाफ के सत्‍ता पर आने पर भारत के साथ रिश्‍तों में थोड़ी गरमाहट आ सकती है। बशर्ते इरफान खान अपने तेवरों में चुनाव जीतने के बाद बदलाव न कर लें। वर्तमान में उन्‍होंने यह संदेश पाकिस्‍तान की जनता को दिया है कि वह किसी भी मुद्दे में भारत के साथ समझौता नहीं करेगा। कश्‍मीर मुद्दे पर भी वह अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर वह कश्‍मीरियों के अधिकार की मांग करेगा। इतना सब होने के बाद रिश्‍तों में मधुरता थोड़ी मुश्‍किल ही लगती है।

जबकि तीसरी पार्टी पाकिस्‍तान पिपुल्‍स पार्टी है। इस पार्टी की सरकार के आने से भारत के साथ रिश्‍तों में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। इस दल को बिलावल भुट्टो जरदारी के रूप में एक नया नेता मिला है। इस नए नेता की क्‍या सोच है और भारत के प्रति इनका एजेंडा क्‍या है इस पर अभी तक कोई टिप्‍पणी नहीं आई है इसलिए अगर ये जीतते हैं तो इनकी जीत एक सरप्राइज जैसी होगी और ऐसा ही कुछ भारत के प्रति इनका रवैया भी होगा।

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