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पाक ने फिर अलापा कश्मीर राग 

 पाकिस्तान इस वक्त गरीबी व भुखमरी की मार झेल रहा है। लेकिन इसके बावजूद उसकी हरकतों और विचारों में कोई परिवर्तन नहीं आया है। हालही में पाकिस्तान को यह जिल्लत बहरीन की राजधानी मनामा में हुई 146 वीं इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन असेंबली में पाकिस्तान ने फिर एक बार कश्मीर के मुद्दे को उठाया।

 

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि उनके देश को भारत के कूटनीतिक प्रयासों के कारण कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे के “केंद्र” में लाना मुश्किल हो गया है। उनका कहना है  कि जब भी कश्मीर का मुद्दा उठाया जाता है, हमारा पड़ोसी देश मुखर रूप से कड़ी आपत्ति जताता है और वे पोस्ट फैक्टो नैरेटिव को आगे बढ़ाते हैं। साथ ही वह यह भी कहते हैं कि वे यह दावा करने की कोशिश करते हैं कि यह संयुक्त राष्ट्र के लिए कोई विवाद नहीं है, कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त एक विवादित क्षेत्र नहीं है, और वे जोर देते हैं, तथ्यों का विरोध करते हैं, वास्तविकता का विरोध करते हैं, कि उनके कश्मीर हथियाने का समर्थन करना चाहिए। सच्चाई को सामने लाने में मुश्किल होती है, लेकिन हम लगातार अपने प्रयास करते रहते हैं। जबकि  पार्लियामेंट्री यूनियन असेंबली की यह बैठक महिला, शांति और सुरक्षा के एजेंडे  पर केंद्रित थी ऐसे में कम्बोज ने कहा की  मेरा प्रतिनिधिमंडल मानता है कि ऐसे दुर्भावनापूर्ण और झूठे प्रचार का जवाब देना भी मुनासिब नहीं है। इसके बदले हमारा ध्यान सकारात्मक और आगे की सोच वाला होना चाहिए। यह चर्चा महिला, शांति और सुरक्षा के उद्देश्य को पूरी तरह से लागू करने के लिए हमारी सामूहिक कोशिश को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है।  हम चर्चा के विषय का सम्मान करते हैं और समय के महत्व को मान्यता देते हैं। हमारा ध्यान इस विषय पर केंद्रित होना चाहिए।

भारत और पाकिस्तान का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय पटल पर उठाना गलत

 

वर्ष 1971 का भारत – पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत के शिमला में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए। जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इस संधि पर भारत की तरफ से इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की ओर से ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो शामिल थे। यह समझौता 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो 28 जून 1972 को शिमला आये, 2 जुलाई को दोनों पक्षों में समझौता हो गया।यह समझना कठिन नहीं है कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बड़ी विदेशी ताकत का दबाव था या नहीं। इस समझौते के आधार पर यह तय हुआ था की भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा। लेकिन इस अकेले आश्वासन का भी पाकिस्तान ने सैकड़ों बार उल्लंघन किया है और कश्मीर विवाद को पूरी निर्लज्जता के साथ अनेक बार अंतरराष्ट्रीय  मंचो पर उठाया है। वास्तव में उसके लिए किसी समझौते का मूल्य उतना भी नहीं है, जितना उस कागज का मूल्य है, जिस पर वह समझौता लिखा गया है। इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि 17 दिसम्बर 1971 अर्थात पाकिस्तानी सेनाओं के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनाएं जिस स्थिति में थी, उस रेखा का ”वास्तविक नियंत्रण रेखा“ माना जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन पाकिस्तान अपने इस वचन पर भी टिका नहीं रहा। 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने जानबूझकर घुसपैठ की और इस कारण भारत को कारगिल में युद्ध लड़ना पड़ा।

 

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