स्वेज नहर में 23 मार्च से लगा जाम आखिरकार सोमवार को खुल गया। नहर में फंसे ‘एवरग्रीन’ नाम के जहाज को छह दिन बाद निकाल लिया गया। जहाज के फंसने की वजह से नहर में यातायात बंद हो गया था और हर घंटे करीब 3 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा था। दुनिया के सबसे बड़े जहाजों में शामिल है। इस जहाज की लंबाई करीब 400 मीटर है। तेज हवाओं के कारण जहाज तिरछा होकर फंसा था। पनामा का एक कंटेनर शिप चीन से माल लेकर नीदरलैंड के रोटरडम जा रहा था। 2018 में निर्मित यह जहाज, जिसकी लंबाई 400 मीटर और चौड़ाई 59 मीटर है, खराब मौसम की वजह से नहर में फंस गया था। इस जहाज पर 2 लाख टन माल लदा था और इसके फंसने से दोनों तरह का यातायात पूरी तरह से रुक गया था। इस जहाज का परिचालन करने वाली ताईवान की ट्रांसपोर्ट कंपनी एवरग्रीन मरीन ने कहा है कि अचानक तेज हवा की वजह से जहाज टेड़ा होकर नहर में फंस गया था। अब जहाज और क्रू को सुरक्षित निकाल लिया गया है। माना जा रहा है कि पिछले एक हफ्ते में जहाज के फंसे रहने के कारण 12 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है।
स्वेज नहर में यातायात ठप होने से क्रूड ऑयल में उछाल आया था। इसमें करीब तीन फीसदी की तेजी आई। कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल-डीजल महंगा हो गया था। बेस मेटल्स में भी शानदार खरीदारी देखने को मिल रही है। निकेल, एल्युमिनियम और लेड एक-एक फीसदी चढ़े है। जिंक और कॉपर में भी बढ़त पर कारोबार हो रहा है। पहले एशिया से जहाज चक्कर काटकर यूरोप पहुंचते थे। नहर का निर्माण 1859 में शुरू हुआ और शुरुआत में मजदूर बेलचों और कुदालियों से काम करते थे। इसके बाद यूरोप से भाप से चलने वाली मशीनें लाई गईं। मजदूरों में हैजा फैलने की वजह से काम रुकता रहा और नहर को पूरा करने में 10 साल लग गए। 1966 में नहर फिर बंद हो गई जब इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा किया। 1975 में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादत ने स्वेज कनाल को दोबारा खोला और इजरायल से शांति बहाल की।
2019 के आकंड़ों पर नजर डाले तो प्रति दिन इस नहर से करीब 50 जहाज गुजरते हैं। 1869 में इस रास्ते से एक दिन में सिर्फ 3 जहाज गुजरते थे। कुछ अनुमानों के मुताबिक दुनिया का 12 फीसदी ट्रेड इस रास्ते से होता है जबकि 30 फीसदी कंटेनर शिप इसी रास्ते से गुजरते है। स्वेज नहर मानव निर्मित वाटर-वे है।