कहते हैं कि प्रसव के दौरान माँ को शरीर की सारी हड्डियों के टूटने के बराबर दर्द का सामना करना पड़ता है। जिससे उनकी जान पर बन आने का जोखिम बना रहता है। कुछ इसी प्रकार का दावा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट Trends in Maternal Mortality, में किया गया है। इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर वर्ष 2000 से 2020 के दौरान होने वाली मातृत्व मौतों के विषय में जानकारी जुटाई गई है। जिसके अनुसार गर्भावस्था और प्रसव के दौरान हर दो में मिनट में एक महिला की मौत होती है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के लगभग सभी क्षेत्रों में मातृत्व मौतों की संख्या में या तो वृद्धि हुई है या फिर ये संख्या हर जगह उसी स्तर पर बनी हुई हैं।
हालांकि गर्भावस्था या प्रसव के दौरान होने वाली मौतों में अधिकतर मामले ऐसे होतें हैं जिनकी रोकथाम करके प्रसव के दौरान होने वाली महिलाओं की मौतों को रोका जा सकता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यदि इसमें कमी लाने का प्रयास नहीं किया गया तो आने वाले साल 2030 में लगभग दस लाख से ज्यादा अतिरिक्त महिलाओं के जीवन के लिए खतरा हो सकता है। इसे लेकर डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि विश्व भर में लाखों महिलाओं के लिए गर्भावस्था अब भी त्रासदीपूर्ण ढंग से एक ख़तरनाक अनुभव है और जिनके पास उच्च गुणवत्ता, सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल तक की पहुँच नहीं है। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि शिशु जन्म, प्रसव के दौरान और उससे पहले, महिलाओं व लड़कियों के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध हों।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में वर्ष 2020 में दो लाख 87 हज़ार मातृत्व मौतें हुईं, जोकी 2016 में तीन लाख 9 हज़ार की संख्या मामूली गिरावट दर्शाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, देशों द्वारा 2015 में टिकाऊ विकास लक्ष्यों के एजेंडा को लागू किए जाने का संकल्प लिया गया था। जिसमें 2030 तक प्रति एक लाख जीवित जन्म पर, 70 से कम मातृत्व मौतों का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि की इस संकल्प के बावजूद मातृत्व मृत्यु दर कम होने में कोई खास असर नहीं हुआ। रिपोर्ट में 2000 से 2015 के दौरान, मातृत्व मौतों में कमी लाने के लिए कुछ ठोस प्रगति दर्ज किए जाने के संकेत दर्शाए गए हैं, मगर बड़ी प्रगति फ़िलहाल अटकी हुई है और कुछ मामलों में इसकी दिशा भी पलटी है।
मातृत्व मृत्यु के हालात क्यों बने
मातृत्व मृत्यु की दर बढ़ने का एक कारण यह भी है कि 27 करोड़ महिलाओं के पास परिवार नियोजन के लिए आधुनिक उपायों तक पहुँच नहीं है। इसके अतिरिक्त आय, शिक्षा, नस्ल, जातीयता पर पसरी विषमताओं के कारण, हाशिए पर रह रही महिलाओं के लिए जोखिम बढ़ जाते हैं। विषेशज्ञों के मुताबिक इन महिलाओं को देखभाल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है लेकिन इनके पास मातृत्व देखभाल सबसे कम सुलभ होती है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया कानेम ने इस मामले में चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि हम बेहतर कर सकते हैं और हमें करना होगा – परिवार नियोजन में तत्काल निवेश करके और नौ लाख से अधिक दाइयों की वैश्विक किल्लत को पूरा करके, ताकि हर महिला को जीवन रक्षक देखभाल मिले, जिसकी उन्हें ज़रूरत है।
ये मौतें मुख्यतौर पर गरीब देशों और हिंसक टकराव से ग्रस्त देशों में होती हैं।इन मौतों की मुख्य वजहों में गंभीर रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, गर्भावस्था-संबंधी संक्रमण, असुरक्षित गर्भपात के कारण जटिलताएँ और मलेरिया, एचआईवी/एड्स समेत पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जोकी गर्भावस्था में और गहरा जाती हैं। गौरतलब है कि प्रसव से पहले आठ बार जांच कराया जाना चाहिए लेकिन आँकड़े दर्शाते हैं कि लगभग एक-तिहाई महिलाओं के लिए ऐसी चार जांच भी सम्भव नहीं हो पाती और ना ही प्रसव के बाद इन्हे देखभाल मिल पाती है।