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हर कीमत पर सत्ता में बने रहने की जिद पाले हुए हैं ओली

 पड़ोसी  देश नेपाल की  राजनीति में पिछले कुछ महीनों से  सियासत गरमाई हुई है।  बीते साल दिसंबर में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के प्रतिनिधि सभा को निलंबित करने के बाद से खड़ा हुआ सियासी संकट अभी तक टला नहीं है। काफी समय  के बाद नेपाली कांग्रेस ने देश में जारी राजनीतिक संकट के बारे में अपना रुख साफ किया , लेकिन इससे फिलहाल देश के सियासी संकट का कोई समाधान निकलता नहीं दिख रहा है । मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने  फैसला कर लिया है कि वह प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को उनके पद से हटाने की कोशिश में शामिल है ,लेकिन  प्रधानमंत्री केपी ओली हर कीमत पर सत्ता में बने रहने की जिद पर अड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को उनके पद से हटाने की कोशिश मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस अपने नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश करेगी। पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) और जनता समाजवादी पार्टी ने नेपाली कांग्रेस के इस रुख का स्वागत किया है।

जानकारों का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का 23 फरवरी का फैसला नहीं आया होता, तो नेपाली कांग्रेस के रुख तय करने के बाद देश की सियासी सूरत साफ हो जाती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक सत्ताधारी पार्टी के माधव नेपाल खेमे की ओली के नेतृत्व वाले गुट के साथ बने रहने की अनिवार्यता बन गई। इससे पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली माओवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या कम रह गई। अब नेपाली कांग्रेस, दहल खेमा और जनता समाजवादी पार्टी तीनों मिल कर बहुमत की सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं।

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गौरतलब है कि अभी तक दहल के नेतृत्व वाली माओवादी पार्टी ने ओली के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया है। सुप्रीम कोर्ट के 23 फरवरी के फैसले के तहत की गई व्याख्या के मुताबिक माओवादी सेंटर पार्टी ने ये समर्थन 2018 में ओली सरकार को दिया था। कोर्ट ने व्याख्या इसलिए की क्योंकि उसने दहल, माधव नेपाल और ओली खेमों के विलय से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाए जाने को अवैध ठहरा दिया था। इस व्याख्या के मुताबिक ओली के नेतृत्व वाली सरकार सीपीएन-यूएमएल पार्टी की सरकार है।

जनता समाजवादी पार्टी ने कहा है कि उसने नेपाली कांग्रेस के सामने कुछ शर्तें रखी हैं। अगर वह उन्हें मान लेती है, तो वह उसे अपना समर्थन देगी। पार्टी ने कहा है कि इस बीच अगर माओवादी सेंटर ने समर्थन वापस ले लिया, तो उसके सामने नेपाली कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देने की मजबूरी भी बन सकती है।

इस पेच दर पेच को देखते हुए ज्यादातर विशेषज्ञ यही मान रहे हैं कि अगले जून-जुलाई तक संसदीय चुनाव कराने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। लेकिन सदन भंग कराने के ओली सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। उसके बाद नए हालात पैदा हो गए। ये हालात इतने उलझे हुए हैं कि नए चुनाव के बिना कोई समाधान निकलता नहीं दिखता।

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