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अब यूएई भी ग्रे लिस्ट में

टेरर फंडिंग पर कसता शिकंजा

अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘एफएटीएफ’ द्वारा खाड़ी के देशों का सरताज कहलाए जाने वाले संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को उन देशों की सूची ‘ग्रे लिस्ट’ में डाल दिया है जिन पर कालेधन के शोधन, आतंकी संगठनों के वित्तीय लेन-देन पर काबू न कर पाने और अपने बैंकिंग सिस्टम में पारदर्शिता नहीं रखने के पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं। इस ग्रे लिस्ट में डाले जाने का बड़ा प्रभाव यूएई में हो रहे विदेशी पूंजी निवेश के साथ-साथ उसके बैंकिंग सिस्टम और अब अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की फंडिंग में भी कमी आएगी, साथ ही दुबई समेत सातों अमीरात देशों में सक्रिय मल्टी नेशनल कंपनियों के कामकाज पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा

विश्व की सात प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के समूह जी-7 द्वारा कालेधन, आतंकी संगठनों और नशे के व्यापार आदि गैरकानूनी धंधों के धन पर नजर रखने के लिए बनाए गए संगठन एफएटीएफ की ‘ग्रे लिस्ट’ में तुर्की, जिम्बाब्वे और अल्बानिया सहित लगभग दो दर्जन देश शामिल हैं, जिनमें ईरान और उत्तर कोरिया काली सूची में हैं। अब इन दो दर्जन देशों में एक नाम और बढ़ गया है। खाड़ी के सबसे ताकतवर देश यूएई को भी इस ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया है। एफएटीएफ का मानना है कि यूएई खाड़ी देशों में डर्टी मनी का सबसे बड़ा ठिकाना बन चुका है। यूएई की बैंकिंग पॉलिसीज के चलते वहां के बैंकों में बिना किसी कानूनी भय अथवा परेशानी का सामना किए बगैर कितनी भी रकम जमा की जा सकती है। यही कारण है कि दुनियाभर के लोग अपना अवैध पैसा यूएई में रखकर आराम से मनी लॉन्ड्रिंग करते हैं।

क्या है एफएटीएफ
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कालेधन पर नजर रखने का काम करने वाली एक एजेंसी है। इसे जी 7 देशों की पहल पर वर्ष 1989 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में बनाया गया था। इसका काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी घटनाओं के लिए हथियारों की खरीद और टेरर फंडिंग पर निगाह रखना है। इसके कुल 39 सदस्य देश हैं। सदस्य देशों में भारत, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और चीन भी शामिल हैं। 2006 में भारत ऑब्जर्वर के रूप में एफएटीएफ में शामिल हुआ था। वर्तमान में वह इस संगठन का सदस्य बन चुका है। अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमलों में टेरर फंडिंग की भूमिका प्रमुख थी जिसके बाद 2001 में एफएटीएफ द्वारा बनाए गए अपराधों की सूची में टेरर फंडिंग को भी शामिल किया गया। टेरर फंडिंग से तात्पर्य आतंकियों को पैसा देना या फाइनेंशियल सपोर्ट करना शामिल है। एफएटीएफ पूरी दुनिया के देशों की वित्तीय प्रगति और वित्तीय गतिविधियों पर अपनी नजर जमाये रखता है। एफएटीएफ जब किसी देश को निगरानी सूची में रखता है तो उसे पहले चेतावनी दी जाती है कि वह जल्द से जल्द अपने बैकिंग सिस्टम की खामियों को ठीक करे। साथ ही वह देश जांच के दायरे में बना रहता है। यदि वह वित्तीय खामियों को सुलझाने में नाकामयाब रहता है तो उसे एफएटीएफ पहले ग्रे लिस्ट में डालता है। ग्रे लिस्टेड होने के दौरान लगे आरोपों के तय होने पर उस देश को ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है।

यूएई को ग्रे लिस्ट में शामिल करने के कारण
यूएई में वित्तीय सूचनाओं और डाटा को लेकर सख्त कानून न होने के कारण वहां अवैध धन का लेन-देन भी काफी अधिक है। एफएटीएफ के द्वारा चेतावनी मिलने के बावजूद भी देश में हो रहे अवैध वित्तीय लेन-देन की पहचान करने और रिपोर्ट करने में कोताही बरतने चलते यूएई आतंकवादी संगठनों द्वारा अवैध फंडिंग और मनी लॉन्डिंग करने का एक बड़ा केंद्र बन गया है। काफी समय तक नजर रखने के बाद आखिरकार एफएटीएफ ने इसे ग्रे लिस्ट में शामिल कर दिया है। एफएटीएफ का मानना है कि यूएई के बैंकिंग सेक्टर के लचीले कानूनों के चलते विश्व भर के आतंकी संगठन यहां के बैंकिंग सिस्टम का इस्तेमाल अपनी आतंकी गतिविधियों के लिए करते हैं। वर्ष 2018 में, यूएई ने एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद फंडिंग के खिलाफ कानून बनाया था। लेकिन मनी लॉन्डिंग पर कड़े कानूनों का पालन करने और कराने में वह नाकामयाब रहा। 2021 में, यूएई ने एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद को रोकने के लिए एक अलग संस्था का भी गठन किया लेकिन इसका कोई परिणाम न आ सका। इसकी पहल की नाकामयाबियों को देखते हुए 2022 में इसे ग्रे लिस्ट करते हुए ब्लैक लिस्ट कर देने की चेतावनी दी गई है।


यूएई के ग्रे लिस्ट होने के प्रभाव
एफएटीएफ से जुड़ी एजेंसी एपीजी (एशिया पैसिफिक ग्रुप) इस मामले में एशिया से संबंधित देशों पर नजर रखती है। ग्रे लिस्ट वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं जैसे आईएमएफ (इन्टरनेशनल मॉनेटरी फंड), एडीबी (एशियाई डेवलपमेंट बैंक) और वर्ल्ड बैंक से कर्ज मिलना लगभग असंभव हो जाता है। ज्यादातर संस्थाएं कर्ज देने में आनाकानी करती हैं। ऐसे में उन्हें अंतराष्ट्रीय व्यापार में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एफएटीएफ ने 2019 में टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग का सपोर्ट करने पर ईरान और नॉर्थ कोरिया को ब्लैक लिस्ट कर दिया था। हालांकि, एफएटीएफ समय-समय पर ब्लैक लिस्ट को रिवाइज करता है और इसमें कई नामों को हटाता और जोड़ता है।

खाड़ी के देशों में सबसे विकसित और आर्थिक दृष्टि से संपन्न संयुक्त अरब अमीरात के खिलाफ उठाया गया यह कदम अपने तीन दशक के इतिहास में एफएटीएफ द्वारा लिया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण कदम है। एफएटीएफ की लिस्ट में पाकिस्तान को वर्ष 2018 के बाद से ही ग्रे लिस्ट में रखा गया है। एफएटीएफ ने पाकिस्तानी में सक्रिय आतंकी समूहों और आतंकी संगठनो के नेटवर्क को प्रतिबंधित करने को कहा था जिसमें पाकिस्तान विफल रहा था।

यूएई की मुश्किलों से सऊदी अरब को फायदा
खाड़ी के दो दिग्गज देशों यूएई और सऊदी के मध्य व्यापारिक प्रतिस्पर्धा काफी समय से चल रही है। सऊदी अपने वित्तीय बाजारों को आगे बढ़ा अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को लुभाने के लिए कदम उठा रहा है। अब माना जा रहा है कि यूएई को ग्रे लिस्ट में डाले जाने का सीधा लाभ सऊदी को मिल सकता है। क्योंकि यूएई में इन्वेस्ट करने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का विश्वास अब डगमगाने लगेगा और सऊदी अरब उन्हें अपने यहां कारोबार करने के लिए आसानी से मना सकता है।
यूएई के ग्रे लिस्ट में डाले जाने के कारण वहां की राजधानी अबू धाबी की आर्थिक गतिविधियों पर सीधा प्रभाव पड़ने की आशंका भी गहराने लगी है। 2021 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट में यह पाया गया था कि ग्रे-लिस्ट में शामिल देशों में निवेश करने वाली कंपनियों की संख्या में भारी कमी आई है।

आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में खाड़ी के देशों के एक मात्र प्रतिनिधि बतौर यूएई का रूस के यूक्रेन पर हमले चलते लाए गए निंदा प्रस्ताव में वोटिंग न करना अमेरिका और यूरोप के देशों को खासा अखरा है। यही कारण है कि एफएटीएफ ने यूएई पर नकेल कसने की नीयत से उसे ग्रे लिस्ट में डालने का फैसला लिया है।

सबसे ज्यादा संकट में दुबई
यूएई में शामिल सात अमीरातों (राज्यों) में से एक दुबई को इस ग्रे लिस्टिंग चलते भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है। गौरतलब है कि दुबई को खाड़ी का सिंगापुर कह पुकारा जाता है। कई बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों और वित्तीय और संस्थाओं का हेडक्वार्टर खाड़ी के देशों के लिए दुबई में ही है। दुबई के जरिए भारी पूंजी निवेश अन्य देशों में किया जाता रहा है। उदार बैंकिंग सिस्टम होने के चलते निवेशक दुबई के जरिए अपना पूंजी निवेश करना ज्यादा सरल और सुरक्षित मानते आए हैं। भारत की कई बड़ी कंपनियों में दुबई के जरिए भारी पूंजी निवेश किया गया है। फरवरी 2021 में भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने एक आदेश में कहा था कि एफएटीएफ द्वारा ग्रे लिस्ट में डाले गए देशों से आने वाले पूंजी निवेश को सीमित किया जाएगा ताकि कालाधन अथवा आतंकी गतिविधियों से संबंधित धन का पूंजी निवेश भारत में रोका जा सके। यूएई को ग्रे लिस्ट में डाले जाने का एक बड़ा असर इस प्रकार के पूंजी निवेश पर तो पड़ेगा ही, दुबई से संचालित बड़ी वित्तीय कंपनियों के कामकाज पर भी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की कड़ी नजर रहेगी। इस चलते इन कंपनियों का कारोबार प्रभावित होगा। बहुत संभव है कि बहुत सी ऐसी कंपनियां यूएई से अपना कारोबार भी समेट लें।

पिछले वर्ष एफएटीएफ की ओर से वार्निंग मिलने के बाद से ही यूएई इस पर कार्य कर रहा था लेकिन अवैध वित्तीय गतिविधियों को कम करने में वह नाकामयाब रहा जिसके कारण वह आज ग्रे लिस्ट में आ गया है। यदि यूएई अपने ऊपर लगे टेरर फंडिंग, मनी लॉन्डिंग, अवैध वित्तीय गतिविधियों में लिप्त होने जैसे आरोपों को गलत साबित कर देता है तो वह ग्रे लिस्ट से जल्द ही बाहर हो जायेगा लेकिन ऐसा न कर पाया तो इसे ब्लैक लिस्ट भी किया जा सकता है।

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