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अब खेल का मैदान बना कूटनीतिक अखाड़ा 

शीतकालीन ओलंपिक खेल खेलों के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं , जिनमें में अधिकांश प्रतियोगिताएं बर्फ पर खेले जाने वाले खेलों की स्पर्धा होती है। इन खेलों को लेकर अब कूटनीतिक जंग भी शुरू हो गई है।

 

 


व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी

 

दरअसल , अमेरिका ने ऐलान कर दिया है कि अगले साल चीन में खेले जाने वाले  शीतकालीन ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक रूप से बहिष्कार करेगा। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि बाइडेन प्रशासन अपने किसी भी आधिकारिक या राजनयिक प्रतिनिधिमंडल को बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों में नहीं भेजेंगे। इसके लिए अमेरिका ने शिनजियांग प्रांत और देश में चीन द्वारा अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन को जिम्मेदार ठहराया है ।

 

अमेरिका के इस बहिष्कार के ऐलान से उसके खिलाड़‍ियों के खेलों में हिस्सा लेने पर रोक नहीं लगेगी। अमेरिका साल 2028 में लॉस एंजिलिस में ओलंपिक का आयोजन करने जा रहा है। इस ऐलान के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि चीन कैसे अमेरिका को जवाब देगा। चीन का दावा है कि वह खेलों के राजनीतिकरण का विरोध करता है लेकिन वह खुद भी अमेरिकी खेल संघों को दंडित कर चुका है।

दरअसल, हाल ही में चिनफ‍िंग और बाइडन के बीच हुई वर्चुअल बैठक बेनतीजा रहने के बाद बाइडन प्रशासन ने शायद यह तय किया  कि चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर शिकस्त देनी जरुरी है। उसे दुनिया के अन्य मुल्कों से अलग-थलग करना है। लोकतंत्र पर चीन के बहिष्कार को इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है  । आने वाले समय में बाइडन प्रशासन की नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। राष्ट्रपति बाइडन चीन से सामरिक या रणनीतिक संघर्ष के बजाए कूटनीतिक दांव से चित करने की रणनीति अपनाई हैं।

 

शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बीच सामरिक और वैचारिक संघर्ष एक साथ चलते थे। नाटो संगठन का उदय भी इसी रूप में देखा जाता है । नाटो एक व्यवस्था, एक विचार, एक हित वाले देशों का एक शक्तिशाली संगठन है। यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ है । इसका मकसद पूर्व सोवियत संघ को हर मोर्चे पर घेरना था। पूर्व सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो की भूमिका में बदलाव आया है। चीन की महाशक्ति बनने की होड़ में बाइडन प्रशासन एक बार फ‍िर इस कूटनीति पर लौट आया है।

 

इससे पहले चीन ने बाइडन की आलोचना करते हुए कहा था कि वॉशिंगटन अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रहा है। बाइडन और शी जिनपिंग के बीच ऑनलाइन शिखर सम्मेलन के बाद दोनों नेताओं ने कहा कि उन्हें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और शांति से सह-अस्तित्व में रहना चाहिए।
बीजिंग अगले साल फरवरी में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए शानदार तैयारी कर रहा है।इस आयोजन से बीजिंग ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन ओलंपिक दोनों की मेजबानी करने वाला दुनिया का इकलौता शहर बन जाएगा । इस शहर ने 2008 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की मेजबानी की थी।
अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों ने चीन पर शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के खिलाफ व्यापक मानवाधिकार के आरोपों का आरोप लगाया है, जो बहुसंख्यक बढ़ती बस्तियों का विरोध कर रहे थे। वे हांगकांग और तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति के भी आलोचक हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने पिछले दिनों कहा था, ‘मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि शिनजियांग का मामला पूरी तरह से चीन का आंतरिक मामला है, जिसमें किसी भी तरह से कोई विदेशी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जाएगा ।
झाओ ने कहा कि अमेरिका ने ‘तथाकथित बंधुआ मजदूर और नरसंहार’ के बारे में चीन पर झूठे आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, ‘चीन के लोगों की नजर में वे हंसी के पात्र से ज्यादा कुछ नहीं है और अमेरिका द्वारा लगाए गए अन्य आरोप बिल्कुल निराधार हैं।’ उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि शीतकालीन पैरालंपिक और ओलंपिक खेल दुनिया भर के खिलाड़ियों के लिए खेल का एक मंच हैं।’ प्रवक्ता ने कहा, ‘इसका राजनीतिकरण ओलंपिक आंदोलन और सभी एथलीटों के हितों को सिर्फ नुकसान पहुंचाएगा। हमें विश्वास है कि संयुक्त प्रयासों से हम निश्चित रूप से विश्व के सामने सुव्यवस्थित, शानदार और सुरक्षित खेल पेश करेंगे और ओलंपिक खेलों को आगे बढ़ाएंगे।

गौरतलब है कि शीतकालीन ओलंपिक दो महीने बाद शुरू होने वाले हैं। फरवरी 2022 में खेल शुरू होने से पहले अमेरिका ने यह ऐलान कर दिया है। वैसे अमेरिका द्वारा इस तरह तरह का फैसला लिए जाने की संभावना काफी पहले से लगाई जा रही थी। हालांकि अमेरिकी खिलाड़ियों के शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने की उम्मीद है। बाइडेन प्रशासन अपने केवल एक राजनयिक प्रतिनिधि को बीजिंग नहीं भेजेगा।

 

अमेरिकी ने यह फैसला प्रतिस्पर्धा से रोके बिना विश्व मंच पर चीन को एक कड़ा संदेश देने के लिए लिया है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि हमें अमेरिकी एथलीटों का पूरा समर्थन है, हम पूरी तरह से उनके साथ हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने अमेरिका पर बिना निमंत्रण के ओलंपिक का राजनयिक बहिष्कार करने का आरोप लगाया।

 

 पहले भी कर चुका है बहिष्कार

अमेरिका ओलंपिक खेलों का बहिष्कार पहली बार नहीं कर रहा है। इससे पहले अमेरिका ने वर्ष 1980 में मास्को ओलंपिक का पूरी तरह बहिष्कार किया था। शीत युद्ध के दौरान तब अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर थे। इसके अलावा कई अन्य देश भी ओलंपिक खेलों का बहिष्कार कर चुके हैं।

 

ओलंपिक खेलों के बहिष्कार का  इतिहास

 

वर्ष 1956 (मेलबोर्न), 1964 (टोक्यो), 1976 (मॉन्ट्रियल), 1980 (मास्को), 1984 (लॉस एंजिल्स) और 1988 (सियोल) में विभिन्न देशों ने युद्ध, आक्रामकता और रंगभेद जैसे कारणों से ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया था ।

 

 चीन ने जताई आपत्ति

 


विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान

 

अमेरिका द्वारा शीतकालीन ओलंपिक खेलों के बहिष्कार के फैसले पर चीन ने आपत्ति जताई और उसने धमकी दी कि यदि वाशिंगटन फरवरी में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों का राजनयिक बहिष्कार करता है तो बीजिंग इस पर जवाबी कार्रवाई करेगा। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा कि यदि अमेरिका ऐसा करता है तो यह राजनीतिक तौर पर भड़काने वाली कार्रवाई होगी।

 

भारत  का चीन ने किया समर्थन 

 

 


चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर

 

हाल में रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लवरोफ और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ वर्चुअल बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों के आयोजन में चीन की तरफदारी की। इसके बाद रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद साझा बयान जारी कर कहा गया कि चीन में 2022 में विंटर ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों की मेजबानी के लिए मंत्रियों ने समर्थन किया है। बता दें कि चीन और भारत के बीच पिछले 19 म‍हीनों से सीमा पर तनाव है। इतना ही नहीं, चीन भारत से लगी सीमा पर सैन्य ठिकाना और मजबूत कर रहा है।

चीन के समाचार पत्र ने लिखा है क‍ि भारत ने विंटर ओलंपिक में चीन का समर्थन कर राजनयिक और रणनीतिक स्वायत्तता का परिचय दिया है। अमेरिका की तरफ झुकाव के बावजूद भारत ने दिखाया कि वह सभी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामले में अमेरिका के साथ नहीं रह सकता। इससे लगता है कि भारत वाशिंगटन का स्वाभाविक सहयोगी नहीं है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया से मजबूत होते संबंधों के बावजूद भारत ने चीन, रूस और शंघाई सहयोग संगठन के साथ ब्रिक्स के सदस्य देशों से भी संबंधों को आगे बढ़ाना जारी रखा है। इससे पता चलता है कि भारत अपनी विदेश नीति उदार रखना चाहता है और अपने संबंधों को किसी खेमे तक सीमित नहीं रखना चाहता है।

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