हर वर्ष होने वाली क्वाड समूह के देशों की बैठक इस बार 24 मई को ऑस्ट्रेलिया में होनी थी। लेकिन अमेरिका में आर्थिक संकट के चलते राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह दौरा रद्द कर दिया है। जिसकी वजह से क्वाड समूह की बैठक को रद्द करना पड़ा। ऑस्ट्रेलिया के पीएम एंथनी अल्बनीज ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने क्वाड नेताओं की बैठक के लिए सिडनी आने में असमर्थता जाहिर की है। जिसके कारण यह सम्मलेन नहीं हो सका।
मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बाइडन जापान में इस सप्ताह के अंत में जी-7 समिट में शामिल होने के लिए हिरोशिमा जाएंगे। अनुमान लगाया जा रहा है कि जापान में ही क्वाड के देशों के बीच भी चर्चा हो सकती है।
क्वाड क्या है ?
क्वाड, का पूरा नाम क्वॉड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग है जिसे ‘चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता’ के रूप में भी जाना जाता है। यह एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच है जिसमें चार राष्ट्र शामिल हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान। क्वाड का उद्देश्य स्वतंत्र, समृद्ध और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए काम करना है। इस समूह की पहली बैठक साल 2007 में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) से इतर हुई थी। इसे समुद्री लोकतंत्रों का भी गठबंधन माना जाता है।
किस संकट का सामना कर रहा है अमेरिका
विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रखने वाला अमेरिका वर्तमान में आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इस समय अमेरिका में डेट टू जीडीपी रेश्यो साल 2022 में 120 फीसदी पहुंच गया जो दूसरे विश्व युद्ध के दौर से भी ज्यादा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद साल 1945 में यह 114 फीसदी था। पिछले दो साल में इसमें बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। साल 2020 से अब तक अमेरिका का कुल कर्ज 8.2 लाख करोड़ डॉलर बढ़ चुका है जबकि पहले 8.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने में इसे 230 साल लगे थे। माना जा रहा है कि अमेरिका का कर्ज 2033 तक 51 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। यानी अगले दस साल में इसमें 20 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है। इस बीच पूरी दुनिया से अमेरिकी डॉलर को दबदबे की चुनौती मिल रही है। अमेरिकी डॉलर ने लगभग आठ दशकों तक दुनिया की अर्थव्यवस्था पर राज किया है। इसे दुनिया में सबसे सुरक्षित माना जाता है। आपसी कारोबार के लिए विश्व इस करेंसी पर निर्भर रहा है, लेकिन अब कई देश डॉलर से दूरी बनाना चाहते हैं। इस कारण डॉलर का भविष्य में कितना प्रभुत्व रहेगा, इस पर सवाल उठ रहे हैं। चीन ने सऊदी अरब, फ्रांस, रूस और ब्राजील के साथ कई सौदे अपनी करेंसी में किए हैं। ब्रिक्स देश यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने एक नई करेंसी विकसित करने की घोषणा की है। ब्राजील के राष्ट्रपति ने अपने लोगों से अमेरिकी डॉलर से छुटकारा पाने को कहा है।
भारत ने भी कई देशों के साथ अपनी करेंसी में ट्रेड करना शुरू कर दिया है। ब्राजील के फॉरेक्स रिजर्व में दूसरी सबसे बड़ी करेंसी चीनी युआन है। इसी तरह रूस के रिजर्व में 33 फीसदी युआन है। रूस की कंपनियों ने पिछले साल युआन में बॉन्ड जारी किए। अमेरिका में बैंकिंग क्राइसिस के बीच लोगों ने अरबों डॉलर क्रिप्टो और गोल्ड में झोंक दिए हैं। 10 मार्च से बिटक्वाइन की कीमत 45 फीसदी चढ़ चुका है और सोना 2000 डॉलर प्रति ओंस को पार करने की तरफ बढ़ रहा है। दो हफ्ते में अमेरिकी बैंकों से 225 अरब डॉलर निकल गए। दुनिया के फॉरेक्स रिजर्व में कभी डॉलर का हिस्सा 72 प्रतिशत था जो अब घटकर 59 फीसदी रह गया है।
गौरतलब है कि अमेरिका ने अब तक कभी भी ऋण अदायगी में डिफॉल्ट नहीं किया है, इसलिए दावे के साथ यह नहीं कहा जा सकता है कि इसका क्या असर होगा। ख्याति प्राप्त अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज’ के चीफ इकनॉमिस्ट मार्क जंडी के मुताबिक अगर अमेरिका ने डिफॉल्ट किया तो इससे लाखों लोगों की नौकरी जा सकती है और देश मंदी की चपेट में आ सकता है। इससे 70 लाख लोगों की नौकरी जा सकती है। देश 2008 की तरह वित्तीय संकट में फंस सकता है। साल 2011 में अमेरिका डिफॉल्ट के कगार पर था और अमेरिका सरकार की परफेक्ट (एएए) क्रेडिट रेटिंग को पहली बार डाउनग्रेड किया था। इससे अमेरिकी शेयर मार्केट में भारी गिरावट आई थी जो 2008 के फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद सबसे खराब दौर था।
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