- प्रियंका यादव
कनाडा में समलैंगिक और बाइसेक्सुअल पुरुषों को रक्तदान की अनुमति न देने की नीति को आखिरकार निरस्त कर दिया गया है। कई सालों से इस नीति को भेदभावपूर्ण बताया जा रहा था, लेकिन अब जाकर इस फैसले में बदलाव किया गया है। कनाडा में 1980 और 90 के दशकों के एचआईवी (एड्स) संकट के बाद से गे और बाइसेक्सुअल पुरुषों द्वारा रक्तदान करने को प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन अब इस प्रतिबंध को हटा लिया गया है। हालांकि यह बदलाव सितंबर से लागू होगा। नई नीति के तहत रक्तदान करने वालों को उनके लिंग या लैंगिकता की जगह ज्यादा जोखिम वाले यौन आचरण के आधार पर जांचा जाएगा।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो ने कहा है कि इस प्रतिबंध को हटाया जाना सभी का देशवासियों के लिए अच्छी खबर है। लेकिन इस प्रतिबंध को हटाये जाने में बहुत समय लग गया। इसे 10-15 साल पहले ही हट जाना चाहिए था, क्योंकि पिछली सरकार द्वारा इस मामले को लेकर कोई शोध नहीं कराया गया। उन्होंने कहा इससे रक्त आपूर्ति की सुरक्षा पर कोई असर नहीं पड़ेगा, सरकार ने 39 लाख अमेरिकी डॉलर इस शोध के लिए खर्च किए तब जा कर यह कदम उठाया जा सका है।
कनाडा अकेला देश नहीं है जो इन पाबंदियों को हटा रहा है। फ्रांस, ग्रीस, इजराइल, हंगरी, डेनमार्क और ब्राजील भी इसी लिस्ट में आते हैं। कोरोना महामारी के चलते अमेरिका ने भी अक्टूबर 2020 में समलैंगिक पुरुषों के लिए यौन संबंध की आवश्यकता को एक वर्ष से घटाकर तीन महीने कर दिया था।
विज्ञान पर आधारित नहीं थी नीति
कनाडा ने एचआईवी (एड्स) के संकट को बढ़ता देख समलैंगिक और बाइसेक्सुअल पुरुषों के रक्तदान पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। पुराने नियमों के अनुसार उन पुरुषों को रक्तदान करने से रोका जाता था जो ब्लड डोनेट करने के तीन महीने के भीतर किसी अन्य पुरुष से यौन संबंध बनाते थे। हेल्थ कार्यकर्ताओं का कहना था कि यह नीति भेदभावपूर्ण थी और विज्ञान आधारित नहीं थी। समलैंगिक पुरुषों पर यह प्रतिबंध वर्ष 1992 में लगाया गया था। यह प्रतिबंध तब लगाया गया जब रक्तदान के बाद एचआईवी संक्रमण तेज होने लगा था। तब 8000 लोगों की मृत्यु भी हो गई थी। उस दौरान कनाडा की मीडिया में खबरें भी आई थी कि विदेश भेजे गए रक्त की वजह से जापान, जर्मनी और ब्रिटेन में भी लोग संक्रमित हुए थे।
क्या है रक्तदान की नई नीति
कनाडा में स्वास्थ्य विभाग ने कहा इस नई नीति के तहत कैनेडियन ब्लड सर्विसेज यौन आचरण के आधार पर रक्तदान करने वालों के जांच के लिए एक फार्म जारी करेगी जो रक्तदान और प्लाज्मा दान करने वाले सभी लोगों के लिए होगा।
बयान में कहा गया है कि रक्तदान नीति का यह बदलाव एक अधिक समावेशी रक्तदान प्रणाली की तरफ बढ़ने की दिशा में ‘एक मील का पत्थर’ है। इससे पूर्व दस वर्षों में रक्तदान की पद्धति में कई बदलाव लाए गए हैं। पहले समलैंगिक या
बायसेक्सुअल पुरुषों के लिए रक्तदान जीवन भर के लिए प्रतिबंध था। लेकिन 2019 में एक वर्ष की अवधि को बदलकर तीन महीने कर दिया गया लेकिन इसकी वजह से यदि पुरुष ने रक्तदान से पहले किसी अन्य पुरुष के शाररिक संबंध बनाए हो तो उसे उस समय रक्तदान करने की अनुमति नहीं मिलती थी।
अधिकार छीन रहे हैं ये देश
अमेरिका ने इस वर्ष से सेना में ट्रांसजेंडरों की भर्ती पर रोक लगाना शुरू कर दिया है। 2016 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रांसजेंडर को सेना में काम करने की मंजूरी दी थी। लेकिन 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने इसे बदलने की घोषणा की। रूस में नाबालिकों में इसे बढ़ावा देने की कोशिश या फिर ऐसा कोई भी आयोजन गैरकानूनी है। पोलैंड की सत्ताधारी पार्टी के नेता यारों सलाहकार काचिस्की ने इस वर्ष गे मार्चो की आलोचना की। इंडोनेशिया में समलैंगिक पुरुषों के बीच संबंधों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून का एक मसौदा तैयार किया गया है। जिस पर पिछले महीने संसद में विरोध के चलते मतदान नहीं हो पाया। इस कानून के तहत विवाहेत्तर संबंध भी गैरकानूनी होंगे। वहीं नाइजीरिया में 2014 में एक बिल पास किया गया जिसके तहत समलैंगिक यौन संबंधों के लिए 14 साल की सजा का प्रावधान किया गया। मलेशिया में भी समलैंगिक समुदाय के लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है।
पिछले साल मलेशिया के तेरेगगानु राज्य में दो महिलाओं को आपस में शारीरिक संबंध बनाए रखने के लिए सार्वजनिक तौर पर बेंतो से पीटा गया। अफ्रीकी देश चाड ने 2017 में दंड संहिता पर कार्य करना शुरू किया जिसके अंतर्गत समलैंगिक संबंधों के लिए छोटी कैद की सजाओं और जुर्माने का प्रावधान किया गया। इससे पहले वहां स्पष्ट तौर पर समलैंगिक संबंध गैरकानूनी नहीं थे, वहीं भारत में भी समलैंगिक आधार पर भेदभाव देखने को मिलता है। 12 साल पहले सेना छोड़ चुके एक समलैंगिक मेजर के जीवन पर आधारित फिल्म की स्क्रिप्ट को सेना ने मंजूरी देने से इंकार कर दिया था।