अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की शुरुआत के दिन भला कौन भूल सकता है।विमान के ऊपर बैठे लोग और फिर आसमान से कागज की तरह गिरते अफगानियों का वह दृश्य आज भी दुनिया की आंखों के आगे तैरने लगता है। 15 अगस्त 2021 तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल को सीज कर दिया था और आसानी से सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी। इसके बाद तालिाबनी लड़ाकों ने हाथों में राइफल थामकर, अपना ‘विजय जुलूस निकाला। अब अफगानिस्तान गरीबी, सूखा और कुपोषण जैसी गंभीर समस्याओं की चपेट में है। यहां की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है देश में भुखमरी की नौबत आ गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई देशों ने तालिबानी सरकार को मान्यता नहीं दी है वहीं यूरोपीय संघ के विदेश मामलों की प्रवक्ता नबीला मसराली ने ब्रसेल्स में तालिबान के संबंध में एक बयान में कहा, तालिबान एक बहुराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था बनाने में विफल रहा है और इस तरह वह अफगान लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम नहीं है।
गौरतलब है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पिछले साल तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। बीते 15 अगस्त को अफगानिस्तान में तालिबानी शासन का एक साल पूरा हो गया है। बीते एक साल में तालिबान ने जो वादे महिलाओं को लेकर किए थे वह पूरे होते नहीं दिख रहे हैं। मानवाधिकार विशेषज्ञों और विश्व नेताओं का कहना है कि तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। अफगानिस्तान में माध्यमिक विद्यालय अभी भी लड़कियों के लिए बंद हैं। देश की मीडिया पर भी सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं। यहां तक कि महिला एंकर और टीवी चैनलों पर आने वाली महिलाओं को भी अपना चेहरा ढकने का आदेश दिया गया है।
महिलाओं के अधिकार और मीडिया की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, लेकिन इसके अलावा यह युद्धग्रस्त देश गंभीर आर्थिक समस्याओं से भी जूझ रहा है। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद, अमेरिका ने अफगान सरकार की लगभग नौ अरब डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया। तालिबान कई बार इस पैसे की वापसी की मांग कर चुका है लेकिन तालिबान पर विश्व स्तर पर भरोसा कायम नहीं हो पाया है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस साल लाखों अफगान बच्चों को भुखमरी का खतरा है। कुछ प्रांतों में सूखे और भूकंप ने व्यापक विनाश किया है। देश की ज्यादातर आबादी गरीबी में जीने को मजबूर है।
नहीं मिली तालिबान सरकार को मान्यता
अभी तक किसी भी देश ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। आंतरिक रूप से तालिबान सरकार भी दबाव में है तालिबान की सख्ती के बावजूद शिक्षा, रोजगार और आवाजाही की स्वतंत्रता के अपने अधिकारों के नुकसान के खिलाफ महिलाएं विरोध प्रदर्शन भी करती आईं हैं।
यूरोपीय संघ का कहना है कि तालिबान द्वारा अल्पसंख्यकों की रक्षा नहीं की जा रही है। यूरोपीय संघ ने कहा तालिबान शासन के तहत शिया और हजारा लोगों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों को निशाना बनाया जा रहा है। ईयू ने अफगान तालिबान से कहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि अफगान लोगों के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
यूरोपीय संघ के बयान में यह भी कहा गया है कि “अफगानिस्तान को आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनना चाहिए और न ही अफगानिस्तान की धरती को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनना चाहिए।
15 अगस्त, 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था. पिछले साल अफगानिस्तान में नाटो मिशन की 20वीं वर्षगांठ थी. कुछ विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका और नाटो मिशन ने जल्दबाजी में अफगानिस्तान से हटने का फैसला किया. और इसी वापसी के बाद से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया.तालिबानी सरकार में उसके अंदर के कई लोग साइडलाइन किए जा रहे हैं क्योंकि इसमें पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने अपनी जगह बना ली है और ये सब इस्लामाबाद के लिए जीने-मरने को तैयार रहते हैं।