5 दिसंबर, शनिवार को कुवैत में 50 सदस्यीय संसद के सदस्यों का चुनाव सम्पन्न हुआ। इस चुनाव में 326 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे। सबसे खास बात तो ये रही कि चुनाव में 29 महिला उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रही थीं। हालांकि चुनाव में एक भी महिला को सफलता हाथ नहीं लगी।
कुवैत में चुनाव ऐसे समय में हुआ है। जब तेल से समृद्ध रहने वाला यह देश कोरोना वायरस से उपजी आर्थिक दिक्कतें का सामना कर रहा है।
कुवैत में ऐसा पहली बार होगा कि संसद में साल 2012 के बाद एक भी महिला सदस्य नहीं होगी। गौरतलब है कि पिछले 15 सालों से कुवैत में महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त है।
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साल 2011 में हुुुई अरब क्रांति के दौरान प्रदर्शनों के बाद से कुवैत की संसद सत्तारूढ़ अल सबाह परिवार के विरोध के मामले में कमजोर हो चुकी है। कुवैत में साल 2011 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। उस समय के ये प्रदर्शन इतने उग्र थे कि सत्ता पक्ष बिल्कुल हिल गया था।
बीते शनिवार, 5 दिसंबर को चुनाव शेख नवाफ अल-अहमद अल-सबाह के नेतृत्व में सम्पन्न हुए। सितंबर महीने में कुवैत के अमीर शेख सबाह का निधन हो गया था। जिसके बाद शेख नवाफ ने सत्ता संभाली थी।
कुवैत साल 1993 में एक निर्वाचित संसद की स्थापना करने वाला खाड़ी क्षेत्र का पहला देश बन गया था। जबसे यह नियमित रूप से स्वतंत्र संसदीय चुनाव कराता आया है। हालांकि सत्ता प्रभावी रूप से अल-सबाह परिवार और अमीर लोगों के हाथों की मुट्ठी में ही कैद रहती है। यही वर्ग सरकार की नियुक्ति करता है। सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध था।
फिर भी उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे। लेकिन कई लोग स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, उनमें से एक अलग-अलग विचारधारा वाले लोगों का विपक्षी समूह है जो दलों के बजाय व्यक्तियों से बना एक विपक्षी गठबंधन है।
मिला विपक्ष को लाभ
शनिवार को हुए चुनाव कुवैत के अनौपचारिक विपक्ष के लिए एक जीत थी, जिसके उम्मीदवारों ने सप्ताहांत के चुनावों में संसद की लगभग आधी सीटें जीतीं। इस बार विपक्षी लोग भ्रष्टाचार और उच्च ऋण पर सुधार की मांग के साथ चुनाव में खुद को आजमाने उतरे थे। जिनका संबंध या झुकाव विपक्ष की ओर है संसद की 50 में से 24 सीट उन्हीं लोगों के खाते में आई है। पिछली बार यह संख्या 16 थी।
इस बार के चुनाव में चुने गए 30 उम्मीदवारों में 45 वर्ष से कम आयु वाले युवा हैं और वे देश में नए कानून बनाने पर अपनी एक बेहतर राय रख पाने में सक्षम होंगे। इनकी जीत से युवाओं के बीच यह संकेत गया है कि देश में बदलाव और सुधार होगा।
कुवैती महिला सांस्कृतिक और सामाजिक संस्था की प्रमुख लुलवा सालेह अल-मुल्ला का कहना है कि सामने आए चुनाव के नतीजे थोड़े कड़वे हैं। उन्हें संसद के लिए चुने गए युवा सांसदों से काफी आशा है लेकिन महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी से वे निराश हैं।
वे कहती हैं, “फिर भी, लोगों ने बदलाव के लिए चुनावों में सकारात्मक रूप से भाग लिया और कुछ ऐसे भ्रष्ट तत्वों को हटा दिया जिन्होंने लोकतंत्र की छवि को बिगाड़ दिया था और अपने पद का दुरुपयोग किया था।”