[gtranslate]
world

खाने को नहीं दाने, दुनिया चली भुनाने

दुनियाभर के कई देश भले ही विकास का दम्भ भरते हों लेकिन संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ के अनुसार आज भी करीब 45 देशों के पांच करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर हैं

घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। यह कहावत हम सभी ने बचपन में कई बार किसी न किसी बात पर काफी सुनी होगी। इसका अर्थ है जब हाथ में कुछ न हो, तो लंबे चौड़े सपने पालने की भूल तो न ही करें। इस कहावत का जिक्र इसलिए जरुरी है कि मौजूदा समय में एक ओर जहां दुनियाभर के कई देश भले ही विकास का दम्भ भरते हो लेकिन सच यह है कि अभी भी दुनिया के 45 देशों के पांच करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर हैं। विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ में इस बात का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 की तुलना में इन आंकड़ें में 11.2 करोड़ की बढ़ोतरी देखी गई है।

हालत यह है कि करीब 82.8 करोड़ लोग वर्ष 2021 में भुखमरी से ग्रसित थे। यह आंकड़ा भारत की करीब 59 फीसदी आबादी के बराबर है। वहीं 230 करोड़ लोगों को तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाई। जिसका साफ मतलब है कि दुनिया की 29.3 फीसदी आबादी अकाल के दलदल में है और यह आबादी जीवन-यापन के लिए जद्दोजहद कर रही है।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के बाद से इन आंकड़ों मे 35 करोड़ की वृद्धि हुई है। कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन, सीरिया जैसे देशों में संघर्ष के चलते दुनिया भर में महंगाई बढ़ गई है। वहीं दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है। इस भयानक स्थिति को लेकर कहा जा रहा है कि खाद्य पदार्थों और लगातार बढ़ती महंगाई को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही थीं वे सच होती प्रतीत होने लगी हैं। दरअसल दुनिया भर में वर्ष 2015 के बाद से भुखमरी के शिकार लोगों की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं देखा गया है, बल्कि समय के साथ यह आंकड़ा बढ़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया की 8 फीसदी आबादी भुखमरी की चपेट में थी, वर्ष 2020 में बढ़कर 9.3 फीसदी जबकि 2021 में 0.5 फीसदी की वृद्धि के साथ 9.8 फीसदी तक पहुंच गई है। महिलाओं और बच्चों की बात की जाए तो उनकी स्थिति सबसे अधिक खराब है। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2021 में 32 फीसदी महिलाएं गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही हैं। वहीं खाद्य असुरक्षा के शिकार पुरुषों का आंकड़ा 27.6 फीसदी था। दोनों के बीच 4 प्रतिशत का अंतर है।

बच्चों की बात की जाए तो विश्व में पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 4.5 करोड़ बच्चे कुपोषण से ग्रसित थे। कुपोषण एक ऐसा खतरनाक स्टेज है जिससे बच्चों में मृत्यु का खतरा 12 गुना तक बढ़ जाता है। इसी आयु वर्ग के 14.9 करोड़ बच्चों के आहार में पोषक तत्वों की इतनी कमी है कि जिसकी वजह से उनका विकास नहीं हो पाता है।

मां का दूध बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत जरुरी है। पिछले कुछ वर्षों में कुपोषण से निजात के लिए स्तनपान पर जागरूकता फैलाई जा रही है। लेकिन फिर भी दुनिया भर में 56 फीसदी बच्चों को छह माह की आयु तक मां का दूध नसीब नहीं हो पा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में वैश्विक स्तर पर अफ्रीका की 20 फीसदी (27.8 करोड़) से ज्यादा आबादी कुपोषण की शिकार है वहीं उत्तरी अमेरिका और यूरोप में यह आंकड़ा ढाई फीसदी से भी कम देखा गया है। दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन देशों में 8.6 फीसदी (5.7 करोड़) आबादी कुपोषण की मार का सामना कर रही है, जबकि ओशिनिया में 5.8 फीसदी (25 लाख) और एशिया की करीब 9.1 फीसदी (42.5 करोड़) आबादी कुपोषण की शिकार है।

भारत की की 16.3 फीसदी आबादी भुखमरी से ग्रसित है। पांच वर्ष से कम आयु के 17.3 के बच्चे बहुत ज्यादा पतले हैं। वहीं इसी आयु वर्ग के 30.9 फीसदी बच्चों की ऊंचाई अन्य की तुलना में कम है। इसके साथ करीब 3.9 फीसदी बच्चे मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं।

देश में 15 से 49 वर्ष की आयु की 53 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2012 में पांच माह की आयु के 46.4 फीसदी शिशुओं को मां का दूध मिलता था अब 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 58 फीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि अभी भी देश में 42 फीसदी शिशु ऐसे हैं जिन्हें यह पोषण नहीं मिल पा रहा है।

भले ही कई देशों ने 2030 के एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के तहत इस दशक के अंत भुखमरी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आंकड़ों को देखकर लगता नहीं है कि यह लक्ष्य हासिल हो पाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक भी आर्थिक सुधारों के बावजूद 2030 में दुनिया भर के 67 करोड़ लोग भुखमरी की समस्या से ग्रस्त होंगे, जो कि वैश्विक आबादी का करीब 8 फीसदी है।

अनुमान है कि भविष्य में जहां दुनिया के अन्य देशों की स्थिति में सुधार आएगा वहीं अफ्रीका में स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है। ऐसे में यह जरुरी है कि इस समस्या को गंभीरता से लिया जाए।

You may also like

MERA DDDD DDD DD