क्वाड समूह को लेकर चीन शुरुआत से ही एतराज जताता है। वह इस समूह को एशियन नाटो कह लगातार चिंता जाहिर करता रहा है। इस बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र के नौ अन्य देशों के नवगठित आर्थिक मंच यानी इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क में भारत के शामिल होने से चीन की चिंता में इजाफा हो चला है
जापान में हुए अहम क्वाड सम्मेलन से ठीक पहले अमेरिका सहित क्वाड के देशों के साथ मिलकर हिंद प्रशांत क्षेत्र के नौ अन्य देशों के नवगठित हिंद प्रशांत आर्थिक मंच यानी इंडो- पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क में भारत के शामिल होने से चीन की चिंता बढ़ गई है। अमेरिका ने उम्मीद जताई है कि इससे क्षेत्र की आर्थिक चुनौतियों के लिए साझा समाधान खोजने व रचनात्मक व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिलेगी। साथ ही कहा कि भारत एक समावेशी हिंद प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क के लिए सभी के साथ मिलकर काम करेगा।
गौरतलब है कि नए और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच हुई ‘टोक्यो क्वाड’ शिखर बैठक के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क यानी (आईपीईएफ) के गठन की घोषणा को इन चार देशों सहित क्षेत्र के 9 देशों के बीच आपसी आर्थिक सहयोग बढ़ाने, सुरक्षा सहित अन्य चुनौतियों से साझा तौर पर निपटने के साथ ही चीन की इस क्षेत्र में लगातार बढ़ती आक्रामकता की चुनौतियों से मुकाबला के लिए एक दूरगामी सोच माना जा सकता है।
क्वाड गठबंधन में अमेरिका के साथ भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया आपसी सहयोग बढ़ाते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सुरक्षा हितों के मद्देनजर चीन के बढ़ते आक्रामक तेवर और विस्तारवादी नीति के खिलाफ एकजुट हुए हैं और अब हिंद प्रशांत क्षेत्र के नौ देशों सहित इन चार महाशक्तियों के नए आर्थिक गठबंधन में शामिल प्रमुख देश चीन की विस्तारवादी रणनीति से पीड़ित हैं, जिनसे न केवल उनके सुरक्षा हितों पर आंच आ रही है बल्कि आर्थिक हित भी प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में इन देशों के साझा हितों के मद्देनजर कायम हुई नई आर्थिक एकजुटता से ‘क्वाड गठबंधन’ निश्चित तौर पर और मजबूत हुआ है। इस फ्रेमवर्क में भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रुनेई, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया और वियतनाम शामिल हैं। क्वाड के गठन से पहले से ही आक्रोशित चीन इस नए आर्थिक गठबंधन से और भी ज्यादा परेशान हो गया है। वैसे भी एक तरफ चीन लद्दाख स्थित भारत के सीमा क्षेत्र में लगातार आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है, ऐसे में इस रणनीतिक गठबंधन के बाद व्यापक क्षेत्रीय एकजुटता के एजेंडे को बढ़ाए जाने के लिए बने नए गठबंधन से चीन की चिंताएं और बढ़ गई हैं।
उल्लेखनीय है कि यह समूह इंडो-पैसिफिक रीजन में कारोबारी नीतियों, सप्लाई चेन (आपूर्ति शृंखला), कार्बन उत्सर्जन में कमी, टैक्स, डिजिटल धोखाधड़ी और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे विषयों पर काम करेगा। समूह में भारत सहित कुल 13 देश शामिल हैं। आईपीईएफ को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद पर अमेरिकी नियंत्रण के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। क्वाड और ऑकस की तरह चीन ने बाइडन की इस पहल की आलोचना की है। विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि नई कारोबारी पहल से इस क्षेत्र में शक्ति प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। उनका देश क्षेत्र में विभाजन और टकराव पैदा करने वाली किसी भी पहल का विरोध करता है।
दरअसल, चीन-अमेरिका इकोनॉमिक वारफेयर में चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है। अमेरिका इस वारफेयर में खुद को पिछड़ा महसूस कर रहा है। आईपीईएफ के जरिए अमेरिका इस स्पेस को भरना चाहता है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था की मुख्य धुरी है। यहां स्थित 38 देशों में दुनिया की 65 फीसद यानी 4.3 अरब आबादी निवास करती है। दुनिया का 50 प्रतिशत समुद्री व्यापार इसी मार्ग से होता है। ‘चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण मौजूदा’ समय में यह क्षेत्र वैश्विक शक्तियों के मध्य शक्ति संघर्ष का कारण बना हुआ है। अमेरिका द्वारा की गई इस पहले को लेकर कहा जा रहा है कि चीनी मंसूबों पर नकेल डालने के लिए इस तरह की पहल जरूरी थी। इससे पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका के ट्रांस पैसेफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से बाहर निकल जाने के बाद एशिया में अमेरिकी साख को बट्टा लगा है। आईपीईएफ की तरह टीपीपी का भी अहम मकसद प्रशांत क्षेत्र में स्थित राष्ट्रों के बीच निकटता बढ़ाने और चीनी मंसूबों पर नियंत्रित करना था। पांच वर्षों तक चली मैराथन बैठकों के बाद अंततः फरवरी 2016 में अमेरिका की अगुआई में टीपीपी को अंजाम दिया गया था। यह विश्व का सबसे बड़ा व्यापार समझौता था।
लेकिन 2017 में अमेरिकी सत्ता में आए रिपब्लिकन ट्रंप ने पद भार संभालने के पहले ही दिन टीपीपी समझौते से अमेरिका के निकलने की घोषणा कर दी। बाद में जापान के नेतृत्व में यह कंप्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट ऑन ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) के रूप में तब्दील हो गया। बाइडन के सत्ता में आने के बाद अमेरिका फिर से एशियाई देशों से तालमेल बढ़ाने की कोशिशों में जुटा हुआ था। आईपीईएफ बाइडन की इन्हीं कोशिशों का परिणाम है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बाइडन की इस पहल का स्वागत करते हुए इस समूह को खुले, मुक्त एवं समावेशी हिंद-प्रशांत की प्रतिबद्धता के लिए वैश्विक ग्रोथ का इंजन बताया है। बाइडन आईपीईएफ को लेकर खासे उत्साहित हैं। वे इसे पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ जुड़ने का एक नया जरिया मान रहे हैं।