[gtranslate]
world

नेपाल के प्रधानमंत्री ओली की कुर्सी खतरे में ,टूट के कगार पर कम्युनिस्ट पार्टी 

नेपाल में पिछले कई महीनों  से चला आ रहा  सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का अंदरूनी झगड़ा अब आर-पार के मुकाम पर पहुंच गया है। हालात ऐसे बन गए हैं कि प्रधानमंत्री ओली की कुर्सी खतरे में है। निरंतर पार्टी के विरोधी नेताओं का दबाव झेलते आ रहे ओली अब तंग आ चुके हैं। लिहाजा वे भी आर -पार के मूड में हैं।  बीते दिनों  पार्टी सेक्रेटेरियट  की बहु-प्रतीक्षित बैठक में उन्होंने  ये साफ कर दिया कि उनका पुष्प कमल दहल प्रचंड गुट से झुककर समझौता करने का कोई इरादा नहीं है। अब यह दहल पर है कि चाहें तो मेलमिलाप की पहल करें या फिर अपना अलग रास्ता तलाशें।
इस झगडे के चलते  नेपाल से दोस्ती का नाटक करते हुए चीन ने न सिर्फ उसके क्षेत्र हड़प लिये, बल्कि सियासी संकट को और गहरा दिया है। अपनी विस्तारवादी नीति से पड़ोसी मुल्कों पर खंजर घोंपने के लिए कुख्यात चीन ने कुछ महीने पहले ही  बने अपने ‘दोस्त’ नेपाल को भी नहीं छोड़ा। दोस्ती का नाटक करते हुए पहले तो चीन नेपाल के करीब आया और उसके बाद  उसकी घरेलू राजनीति में खुलेआम हस्तक्षेप कर रहा है। यही वजह है कि सुलह की कोशिशों के बावजूद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के बीच लगातार हो रही  बैठकें बेनतीजा ही रही हैं। इससे पड़ोसी देश नेपाल एक बार फिर बड़े राजनीतिक संकट से जूझ रहा है।
सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में बंटवारा तय माना जा रहा है। पुष्प कमल दहल की ओर से पार्टी बैठक  को लेकर दबाव डाले जाने पर प्रधानमंत्री ओली ने साफ कह दिया है कि इन बैठकों की आवश्यकता नहीं है और यदि उनके खिलाफ फैसला लिया जाता है तो वह ‘बड़ा फैसला’ ले सकते हैं।

इसी हफ्ते हुई बैठक में ओली ने अपना राजनीतिक दस्तावेज पेश किया। ये दस्तावेज 13 नवंबर को दहल की तरफ से पेश 19 पेज के राजनीतिक दस्तावेज के जवाब में था । ओली के दस्तावेज का साफ संदेश था कि पार्टी के बॉस वो ही हैं। नेपाली मीडिया में छपी  खबरों के मुताबिक ओली ने दहल पर निजी टिप्पणियां कीं और उनकी राजनीतिक हैसियत पर भी सवाल उठा दिया।
दहल ने 13 नवंबर को हुई सेक्रेटेरियट की बैठक में पेश अपने दस्तावेज में ओली पर कई इल्जाम लगाए थे। ओली ने अपने 38 पेज के दस्तावेज में उनका बिंदुवार जवाब दिया और उल्टे  दहल पर कई आरोप लगा दिए। साथ ही उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल को भी आड़े हाथों लिया।
माधव नेपाल अब ओली के खिलाफ हो गए हैं और फिलहाल उन्होंने दहल से हाथ मिला लिया है। ओली ने उन्हें याद दिलाया कि दहल ने ही उन्हें राष्ट्रपति नहीं बनने दिया था।ओली ने आरोप लगाया है कि दहल ने मतभेदों को दुश्मनी में बदल दिया है। इस तरह उन्होंने नेपाल के कम्युनिस्ट आंदोलन को गहरे संकट में धकेल दिया है। ओली ने कहा कि 2018 में दहल की पार्टी के साथ अपनी पार्टी के विलय पर राजी होकर असल में उन्होंने दहल के समाप्त हो चुके राजनीतिक करियर को बचा लिया था। उन्होंने ये आरोप भी लगाया कि 2017 में मेयर के चुनाव में दहल ने अपनी बेटी को जितवाने के लिए धोखाधड़ी का सहारा लिया।
यहां के राजनीतिक विश्लेषकों ने अपने तीखे तेवरों के बावजूद ओली ने दहल से मेलमिलाप का एक रास्ता खुला रखा है। बताया जाता है कि बैठक में ओली ने कहा कि अगर दहल अपना राजनीतिक दस्तावेज वापस ले लें, तो वे भी अपने दस्तावेज को वापस ले लेंगे। उसके बाद दोनों पक्ष एक साझा दस्तावेज पेश कर सकते हैं। इसका मतलब है कि उन्होंने गेंद दहल के पाले में डाल दी है। अब अगर दहल ओली की बात मान लेते हैं, तो इसे उनका झुकना समझा जाएगा। इसका असर उनकी सियासी हैसियत पर पड़ेगा।
फिलहाल ओली और दहल दोनों नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सह-अध्यक्ष हैं। देश के प्रमुख अखबार काठमांडू पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट में राजनीतिक विश्लेषक हरि रोका के हवाले से यह कहा गया है कि  ओली ने यह साफ कर दिया कि अब वे पार्टी में दो अध्यक्षों की व्यवस्था के साथ चलने को तैयार नहीं हैं। यानी वो चाहते हैं कि दहल ये पद छोड़ दें और उनके लिए पार्टी में कोई और इंतजाम किया जाए।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के मुताबिक ओली का दस्तावेज बदले की भावना से भरा हुआ है। ओली ने जो व्यक्तिगत टिप्पणियां की हैं, वह पार्टी के एक बड़े हिस्से को  पसंद नहीं आया है। ये ध्यान दिलाया है कि ओली ने दहल के दस्तावेज को इल्जामों का पुलिंदा बताया, जबकि खुद अपने दस्तावेज में भी उन्होंने आरोप लगाने का काम ही किया है। अपने दस्तावेज के आखिर में ओली ने पार्टी के नेताओं से पार्टी की एकता कायम रखने के लिए काम करने की अपील की है। लेकिन पार्टी नेताओं का कहना है कि उन्होंने खुद इसकी राह मुश्किल बना दी है।
दरअसल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से ही इसमें तीन खेमे बने हुए हैं। इनमें से दो मिलकर तीसरे को अल्पमत में डाल सकते हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के बीच चल रही  सुलह की कोशिशें नाकाम होते देख ऐसा माना जा रहा है कि सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में बंटवारा  तय है। कहा जा रहा है कि इस समय दहल और पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल साथ हैं। हालांकि, ओली ने झुकने से इनकार कर दिया है और पार्टी में बंटवारे को तैयार हैं।
ओली की ओर से ‘बड़े ऐक्शन’ की धमकी को लेकर नेपाल में अटकलों का दौर चल पड़ा है। राजनीतिक गलियारों से लेकर  आम लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि ओली आखिर किस ‘बड़े फैसले’ की बात कर रहे हैं। संकट से निपटने के लिए उनका यह बड़ा दांव क्या होगा?
दहल के करीबी और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य पंफा भूसल के मुताबिक ओली के साथ बैठक के दौरान दहल ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की थी कि क्या मौजूदा राजनीतिक सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा। उन्होंने आगे कहा, दहल इस बात को लेकर चिंतित थे कि चीजें सही दिशा में नहीं बढ़ रही हैं। इस सबके बीच अब एक बार फिर नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी उस मोड़ पर पहुंच गई है, जहां कुछ महीने पहले खड़ी थी। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी टूट की कगार पर पहुंच गई है। दहल के मुताबिक ओली ने रास्ते अलग करने का फैसला कर लिया है। माना जा रहा है कि पार्टी के बंटवारे की सूरत में ओली की कुर्सी चली जाएगी।
नेपाल के बड़े अखबार काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुष्प कमल दहल खेमे के नेताओं का दावा है कि केपी शर्मा ओली ने रास्ते अलग करने का ऐलान लगभग कर दिया है। 11 दिनों बाद बीते 31 अक्टूबर को ओली के साथ बैठक के बाद दहल ने एक नवंबर  को अपने आवास खुमाल्टर में सेक्रिटेरीअट के 9 में से 5 सदस्यों के साथ बैठक की। पार्टी के प्रवक्ता और सेक्रिटेरीअट सदस्य काजी श्रेष्ठ ने कहा, दहल  ने सदस्यों को बताया कि ओली ने उनसे कहा है कि वह सेक्रिटेरीअट की बैठक नहीं बुलाएंगे और पार्टी कमिटी के फैसलों में नहीं बंधेंगे। दहल के मुताबिक ओली ने कहा है कि यदि समस्याएं हैं तो बेहतर है कि रास्ते अलग कर लिए जाएं।
श्रेष्ठ के अलावा गृह मंत्री राम बहादुर थापा, पार्टी वाइस चेयर बामदेव गौतम और वरिष्ठ नेता झाला नाथ खनल और माधव कुमार नेपाल खुमाल्टर बैठक में मौजूद थे। सचिवालय के दूसरे सदस्य ओली, ईश्वर पोखरियाल और विष्णु पौडेल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, सत्ताधारी पार्टी के कई नेता कहते हैं कि आज पार्टी जिस मोड़ पर खड़ी है वह एक दिन होना ही था, क्योंकि दो पार्टियों के मिलन के बाद से ही समस्याएं पैदा होने लगी थीं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म ओली के सीपीएन-यूएमएल और दहल की पार्टी सीपीएन (माओवादी) के विलय से हुआ था। चूंकि, दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग थी, इसलिए शुरुआत से ही यह आशंका थी कि यह अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकेगा।
विलय के करीब डेढ़ साल बाद पार्टी के मतभेद खुलकर सामने आ गए। बीते 11 सितंबर को युद्ध विराम पर पहुंचने से पहले दहल और उनके समर्थक नेपाल, खनल और गौतम ने ओली को लगभग इस्तीफे के लिए घेर लिया था। स्टैंडिंग कमिटी के 31 सदस्यों ने प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष के पद से उनका इस्तीफा मांग लिया था। इसके बाद चीन के दखल से दोनों नेता बातचीत की मेज पर आ गए थे। चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के संकट को दूर करने के लिए अपनी राजदूत को यहां की घरेलू राजनीति में खुलेआम हस्तक्षेप करने को कहा था।
हालांकि, हाल ही में चीजें फिर तेजी से बदली और दोनों नेताओं के बीच एक बार फिर मतभेद उभर गए। ओली की ओर से कुछ राजदूतों और मंत्रियों की नियुक्ति के बाद विवाद बढ़ गया। दहल खेमा यह भी मानता है कि कर्नाली प्रांत के मुख्यमंत्री महेंद्र बहादुर शाही के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के पीछे भी ओली का हाथ है।
सेक्रिटेरीअट के एक सदस्य ने कहा, ओली ने कहा कि वह गंभीर ऐक्शन लेंगे यदि दहल बैठक करते हैं और कोई फैसला लेते हैं। बेहतर होगा सर्वसम्मति से रास्ते अलग कर लिए जाएं। स्टैंडिंग कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक, दहल ने नेताओं से कहा है कि ओली को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना चाहिए। चूंकि, अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है, विशेष सत्र बुलाने के लिए एक चैथाई सदस्यों को राष्ट्रपति से इसकी मांग करनी होगी।
पार्टी के एक नेता के मुताबिक दहल ने अपने करीबी स्टैंडिंग कमिटी के सदस्यों को जल्द काठमांडू पहुंचने को कहा है। 44 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमिटी में ओली अल्पमत में हैं। उनके साथ करीब 14 सदस्य हैं, जबकि दहल के पास 17 और नेपाल के साथ 13 सदस्य हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD