नेपाली के प्रधानमंत्री ने 10 जनवरी 2021 रविवार को कहा कि उनका देश नेपाल-भारत और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित 370 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित कालापानी लिम्पियाधुरा और लिपुलेक क्षेत्र को वापस लेने के लिए प्रतिबद्ध है। वे नेपाली संसद के ऊपरी सदन को संबोधित कर रहे थे द्य प्रधानमंत्री ओली ने संकेत भी दिए हैं कि आगामी 14 जनवरी को नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली जब भारत के दौरे पर जाएंगे तो वो इस मुद्दे को उठाएंगे और इसके हल के लिए वार्ता भी करेंगे। रविवार को नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपनी संसद के ऊपरी सदन यानी राष्ट्रीय सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वो कालापानी-लिपुलेख और लिम्पियाधुरा के 370 वर्ग किलोमीटर के इलाके को नेपाल के अधीन लाना चाहते हैं।
वे इस समस्या का हल भारत के साथ बातचीत के जरिये ही करना चाहते है। देखा जाये तो ये भारत के लिए चिंता का विषय हैं क्योकि भारत के पिछले साल से ही नेपाल के साथ संबंध पटरी पर आ रहे थे विदेश सचिव हर्ष वर्धन शृंगला और भारतीय सेना के प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने बारी-बारी से नेपाल का दौरा कर दोनों देशों के बीच पैदा हुई गलतफहमी को कम करने की कोशिश की थी 8 मई 2020 को जब राजनाथ सिंह ने सड़क का उद्घाटन किया, तो उसके अगले दिन यानी 9 मई को नेपाल के विदेश मंत्रालय ने प्रेस रिलीज जारी कर इस पर आपत्ति जताई।दावा किया कि लिपुलेख नेपाल के हिस्से में पड़ता है। यह सड़क निर्माण गलत है। इसमें नेपाल ने मार्च 1816 में हुई सुगौली संधि का भी जिक्र किया। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने पत्र में लिखा था कि महाकाली नदी के पूरब में पड़ने वाला सारा हिस्सा नेपाल का है। इसमें न सिर्फ लिपुलेख बल्कि कालापानी और लिम्पियाधुरा भी शामिल है।
सुगौली संधि में इस बात का जिक्र था कि महा काली नदी के पश्चिमी इलाके में पड़ने वाले क्षेत्र पर नेपाल का अधिकार नहीं होगा। यानी, महाकाली नदी के पश्चिम का हिस्सा भारत के अधिकार में रहा। इस विवाद की पूरी वजह महाकाली नदी रही हैं। महाकाली नदी जो है, वो कई अलग-अलग धाराओं से मिलकर बनी है। ऐसे में इसके उद्गम स्थल को लेकर अलग-अलग मत हैं। नेपाल का दावा है महाकाली नदी की मुख्य धारा लिम्पियाधुरा से शुरू होती है। इसलिए इसे ही उद्गम स्थल माना जाएगा। क्योंकि उद्गम स्थल लिम्पियाधुरा है, इसलिए लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी नेपाल का हिस्सा हुआ। जबकि, भारत कहता है कि महाकाली नदी की सभी धाराएं कालापानी गांव में आकर मिलती है, इसलिए इसे ही नदी का उद्गम स्थल माना जाए। भारत ये भी कहता है कि सुगौली संधि में मुख्य धारा को नदी माना गया था। ऐसे में लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा मानना गलत है।
सुगौली संधि में ये तो तय हो गया कि नेपाल की सरहद पश्चिम में महाकाली और पूरब में मैची नदी तक होगी। लेकिन, इसमें नेपाल की सीमा तय नहीं हुई थी। इसका नतीजा ये है कि आज भी भारत-नेपाल सीमा पर 54 ऐसी जगहें हैं जहां दोनों देशों को लेकर विवाद होता रहता है। इनमें कालापानी-लिम्प्याधुरा, सुस्ता, मैची क्षेत्र, टनकपुर, संदकपुर, पशुपतिनगर हिले थोरी जैसे प्रमुख स्थान है। अब यह देखना होगा की जब नेपाल के विदेश मंत्री 14 जनवरी को भारत आयेंगे तो वो लिपुलेख का मुद्दा उठाते हैं या नहीं। यदि वह मुद्दा उठाते हैं तो विवाद तो बढ़ना तय हैं।