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कालापानी पर किताब निकालकर दुनियाभर में बांटेगा नेपाल

 विचित्र बात है कि नेपाल एक तरफ तो भारत के साथ हाल के दिनों में बढ़ी तल्खी को कम करने की कोशिश करता दिख रहा है, लेकिन दूसरी तरफ वह कालापानी के मसले को गरमाने की भी तैयारी में है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक नेपाल सरकार कालापानी पर अपना दावा जताने के लिए एक किताब निकालने की तैयारी कर रही है जिसे एंबेसी के जरिए कई अलग -अलग देशों में भेजा जाएगा। ताकि कालापानी पर नेपाल के दावे को लेकर वह दूसरे देशों की सहानुभूति हासिल कर सके । जानकारी मिली है कि नेपाल गूगल से बात कर उसे इस बात पर राजी करने की कोशिश कर सकता है कि वह नेपाल के वर्जन वाला मैप भी दिखाए। नेपाल ने कुछ वक्त पहले ही अपने नए नक्शे को मंजूरी दी है। जिसमें कालापानी के साथ ही भारत के इलाके लिपुलेख और लिम्पयाधुरा को भी नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है।

नेपाल सरकार कालपानी मुद्दे पर किताब पब्लिश करने की तैयारी कर रही है। यह किताब अंग्रेजी में होगी और इसमें कालापानी को लेकर नेपाल के दावे को बताया जाएगा। इस किताब में कुछ ऐेसे कथित तथ्य भी दिए जाएंगे जो कालापानी पर नेपाल के दावे की पुष्टि करने की कोशिश करेंगे। नेपाल सरकार इस किताब को अलग -अलग देशों के एंबेसी में बांटने की योजना बना रही है ताकि एंबेसी के जरिए अलग -अलग देशों तक यह किताब पहुंच सके। नेपाल ये किताब युनाइटेड नेशंस को भी दे सकते हैं।

भारत – नेपाल के बीच  सीमा को लेकर हुआ विवाद कोई नई बात नहीं है,लेकिन इस विवाद का इतनी जल्दी उभर के सामने आना ये एकदम नई बात है। भारत ने पिछले साल नवंबर में जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए और अपना नया नक्शा जारी किया। इस नक्शे में कालापानी क्षेत्र भी शामिल था।

इसे लेकर नेपाल ने  तीखी आपत्ति दर्ज कराई थी और कहा था कि भारत अपना नक्शा बदल ले क्योंकि कालापानी नेपाल का इलाका है। उसके बाद से नेपाल के प्रधानमंत्री कई विवादित बयान देकर भारत को कोसते रहे हैं। कल 17 अगस्त को ही भारत और नेपाल के शीर्ष राजनयिकों ने  डिजिटल बैठक कर भारत की मदद से नेपाल में चल रही  विकास संबंधी परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा की और इनके कार्यान्वयन में तेजी लाने का फैसला किया। यह बैठक नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली द्वारा पीएम नरेंद्र मोदी को फोन कर भारत के 74वें गणतंत्र दिवस पर बधाई देने के बाद हुई है।

इस बैठक में   पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना, भूकंप के बाद पुनर्निर्माण, सिंचाई, बिजली एवं ट्रांसमिशन लाइन, नेपाल पुलिस अकादमी के निर्माण, एकीकृत जांच चौकी, रामायण सर्किट, एचआईसीडीपी, महाकाली नदी पर पुल, कृषि और सांस्कृतिक विरासत जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की गई।

2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेपाल दौरे के बाद भारत-नेपाल पर्यवेक्षण तंत्र की स्थापना की गई थी। इसका मकसद द्विपक्षीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन की समीक्षा करके उन्हें समय पर पूरा करने के लिए  जरूरी कदम उठाना है। दोनों देशों ने आपसी सहमति से तारीख तय करके अगली बैठक करने पर रजामंदी जाहिर की है।

नेपाल द्वारा मई में नया राजनीतिक मानचित्र जारी करने के बाद भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आई तल्खी के बाद दोनों देशों के बीच यह पहली उच्च-स्तरीय वार्ता थी ।

भारतीय दूतावास की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार दोनों पक्षों ने विभिन्न परियोजनाओं पर चर्चा की और उनके कार्यान्वयन का काम तेज करने पर सहमति जताई।

दोनों पक्षों ने बीते एक साल में विकास संबंधी परियोजनाओं में हुई प्रगति की समीक्षा की, जिसमें गोरखा और नुवाकोट जिलों में भूकंप से तबाह हुए 46,301 घरों के पुननिर्माण  और सीमा पार पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन मोतिहारी-अमलेखगंज का संचालन शुरू करने, बिराटनगर में एकीकृत जांच चौकी और सामुदायिक विकास परियोजनाएं  हैं।

नेपाल के विदेश मंत्रालय के अनुसार बैठक में मुख्य रूप से नेपाल-भारत द्विपक्षीय सहयोग के तहत चल रहीं परियोजनाओं के कार्यान्वयन की स्थिति पर चर्चा की गई, जिसमें तराई रोड, सीमा पार रेलवे, अरुण-3 जल विद्युत परियोजना और पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन  परियोजना शामिल है।

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