इन दिनों नेपाल अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। इसकी दो प्रमुख वजहें हैं। पहली वजह है कि नेपाल सरकार ने पहली बार आधिकारिक रूप से दावा किया है कि चीन उसके इलाके में हस्तक्षेप कर रहा है। दूसरी वजह द्विपक्षीय संबंधों पर पुनर्विचार करने की अमेरिकी धमकी को माना जा रहा है। दरअसल, अमेरिका ने एमसीसी को लेकर नेपाल को धमकी दी है। अमेरिका ने कहा है कि नेपाल 28 फरवरी तक मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन के तहत प्रस्तावित अनुदान सहायता समझौता की पुष्टि करे। अगर नेपाल 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता स्वीकार नहीं करता है, तो वह उसके साथ अपने संबंधां की समीक्षा करेगा और ऐसा मानेगा कि यह समझौता चीन की वजह से विफल हो गया।
नेपाल में पूर्व सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की चीन के प्रति झुकाव चलते यह स्थिति उत्पन्न हुई है। नेपाल हिमालयी राष्ट्र होने के कारण नेपाल सामरिक रूप से चीन के लिए काफी उपयोगी है। ‘चीन अपनी बेल्ट एडं रोड परियोजना’ के तहत छोटे राष्ट्रों को अपने कर्ज में फंसा रहा है। पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान और नेपाल समेत कई दक्षिण एशियाई देशों पर उसकी नजर है। अब अमेरिका इसको लेकर सजग और सचेत हो गया है। हाल ही में नेपाल चीन के उकसावे में आकर भारत के साथ सीमा विवाद पर नई बहस छेड़ दी थी। इसी वजह से नेपाल सरकार ने भारत से रिश्तों को संतुलित करने के लिए चीन से रिश्ते सुधारने की कोशिश की थी। फिलहाल नेपाल सरकार ने आधिकारिक रूप से दावा किया है कि चीन उसके इलाके में हस्तक्षेप कर रहा है। दोनों देशों की साझी सीमा है।
नेपाल सरकार की एक रिपोर्ट ने चीन पर अतिक्रमण का आरोप लगाया है। यह रिपोर्ट वर्ष 2021 के सितंबर की बताई जा रही है। जब दावे किए जा रहे थे कि पश्चिमी नेपाल के हुमला जिले में चीन अतिक्रमण कर रहा है। तब चीनी दूतावास ने अतिक्रमण के दावों को खारिज किया था। नेपाल और चीन के मध्य करीब 1,400 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल के इस दावे का प्रतिकूल असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ सकता है।
गौरतलब है कि वर्ष 1960 के दशक की शुरुआत में दोनों देशों के बीच कई संधियों पर हस्ताक्षर हुए थे। दोनों देशों की सीमा जहां लगती है, वह सुदूरवर्ती इलाके हैं। इन इलाकों में पहुंचना बहुत आसान नहीं होता है। जमीन पर सीमा का निर्धारण खंभों से किया गया है। ऐसे में कई बार नेपाल और चीन के इलाको को समझना मुश्किल हो जाता है। हुमला जिले में संभावित चीनी अतिक्रमण की रिपोर्ट आने के बाद नेपाल की सरकार ने एक टास्कफोर्स भेजने का फैसला किया था। कुछ लोगों ने दावा किया है कि चीन ने नेपाल के इलाके में कई इमारतों का निर्माण किया है। टास्कफोर्स में पुलिस और सरकार के प्रतिनिधि शामिल थे। चीनी सुरक्षाबलों ने नेपाली क्षेत्र में धार्मिक गतिविधियां बंद कर दी थीं। इस इलाके का नाम लालुंगजोंग है। यह क्षेत्र पारंपरिक रूप से तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, क्योंकि यह कैलाश पर्वत के पास है।
अमेरिका में नेपाल के राजदूत रह चुके सुरेश चालीसे का कहना है कि ‘अगर हमने एमसीसी से हुए करार का अनुमोदन नहीं किया, तो हम गंभीर संकट में फंस जाएंगे। अगर अमेरिका नेपाल के साथ अपने संबंध पर पुनर्विचार करता है, तो आर्थिक और रणनीतिक मामलों में नेपाल के लिए यह अच्छी बात नहीं होगी। ‘एमसीसी ने बिजली ट्रांसमिशन लाइन और आयात मार्गों के निर्माण के लिए 50 करोड़ डॉलर की मदद देने की पेशकश की थी। इसके लिए वर्ष 2017 में समझौता हुआ था। लेकिन तब से उसका नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां विरोध कर रही हैं। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा इस समझौते के अनुमोदन का रास्ता निकालने की कोशिश में जुटे हुए हैं। लेकिन उनकी नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पुष्प कमल दहल और माधव कुमार के नेतृत्व वाली दो कम्युनिस्ट पार्टियां इसका पुरजोर विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि ये मदद चीन का प्रभाव रोकने की अमेरिकी कोशिश का हिस्सा है। नेपाल को अमेरिका और चीन के बीच चल रही होड़ में नहीं फंसना चाहिए।
गौरतलब है कि अगर भारत के पड़ोसी देश नेपाल में चीन और अमेरिका का प्रभाव पड़ता है तो नेपाल में चीनी हस्तक्षेप को सीमित करने के लिहाज से भले यह ठीक हो, लेकिन भारत के पड़ोसी देश में दो महाशक्तियों की राजनीति भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। इसका असर दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन पर पड़ेगा और इस क्षेत्र में शस्त्रों की होड़ शुरू हो जाएंगी।