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अंतरिक्ष में मिलने वाली चुनौती का भी सामूहिक रुप से मुकाबला करेंगे ‘नाटो’ के देश 

नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन यानी ‘नाटो’ के समस्त देश अब अंतरिक्ष में मिलने वाली किसी भी चुनौती का सामूहिक रुप से जबाब देंगे। नाटो देशों का यह निर्णय उनकी ताकत के विस्तार के तौर पर देखा जा रहा है माना जा रहा है कि नाटो के देशों ने चीन या अन्य देशों को यह अहसास कराया है कि नाटो के किसी भी सदस्य देश को कहीं भी कम आंकने की भूल न करे।

 दरअसल , नाटो एक सैन्य गठबन्धन है, जिसकी स्थापना चार  अप्रैल 1949  को हुई। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। इस संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे।इस सब के बीच नाटो के सदस्य देशों ने 14 जून  को अपने सामूहिक रक्षा प्रावधान ‘सबके लिए एक, एक के लिए सब’ को और व्यापक करते हुए अंतरिक्ष में होने वाले हमलों के खिलाफ भी मिलकर लड़ने का निर्णय लिया है। उत्तर एटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के समझौते के अनुच्छेद पांच के मुताबिक, गठबंधन के 30 में से किसी भी सहयोगी पर अगर हमला होता है, तो उसे  सभी पर हमला माना जाएगा। अब तक यह केवल परंपरागत सैन्य हमलों जैसे जल, थल और वायु से संबंधित था, लेकिन हाल ही में इसमें साइबर हमलों को भी जोड़ा दिया गया था।

नाटो के नेताओं ने एक बयान में कहा कि वे मानते हैं कि ‘अंतरिक्ष में, अंतरिक्ष से और अंतरिक्ष पर हमला’ नाटो के लिए चुनौती हो सकता है जो ‘राष्ट्रीय, यूरो एटलांटिक समृद्धि, सुरक्षा और स्थिरता के लिए खतरा हो और यह आधुनिक समाजों के लिए परंपरागत हमले की तरह ही घातक हो सकता है।उन्होंने कहा है कि ऐसा हमला होने पर अनुच्छेद पांच प्रभावी हो जाएगा। हालांकि ऐसे हमले होने पर अनुच्छेद पांच के प्रभावी होने के बारे में फैसला मामले दर मामले के आधार पर नाटो द्वारा लिया जाएगा।’

पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले करीब दो हजार में से आधे उपग्रहों का संचालन नाटो देशों के पास है, जो मोबाइल फोन, बैंकिंग सेवाओं से लेकर मौसम पूर्वानुमान आदि से जुड़े हैं। इनमें से कई उपग्रह ऐसे हैं जिनका इस्तेमाल सैन्य कमांडर नौवहन, संचार, खुफिया जानकारियां साझा करने और मिसाइल लांच का पता लगाने के लिए करते हैं।

इससे पहले दिसंबर 2019 में नाटो के नेताओं ने भूमि, समुद्र, वायु और साइबरस्पेस के बाद अंतरिक्ष को अपने अभियानों के लिहाज से ‘पांचवा क्षेत्र’ घोषित किया था। कई सदस्य देश अंतरिक्ष में चीन और रूस के आक्रामक होते बर्ताव को लेकर चिंतित हैं। अंतरिक्ष में करीब 80 देशों के उपग्रह हैं तथा कई निजी कंपनियां भी इस क्षेत्र में उतर रही हैं।वर्ष 1980 के दशक में नाटो के संचार का एक छोटा सा हिस्सा ही उपग्रहों के जरिए होता था आज यह कम से कम 40 फीसदी है।

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नाटो के सामूहिक रक्षा प्रावधान को अब तक केवल एक बार, अमेरिका पर 11 सितंबर 2001 को हुए हमले के चलते प्रभावी किया गया था। तब सभी सदस्य देश अमेरिका के समर्थन में एकजुट हो गए थे। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने कहा है कि अनुच्छेद पांच नाटो सहयोगियों के बीच ‘एक पवित्र दायित्व’ है। उन्होंने कहा  ‘मैं पूरे यूरोप को यह बताना चाहता हूं कि अमेरिका आपके लिए खड़ा   है।

दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व रंगमंच पर अवतरित हुई दो महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का प्रखर विकास हुआ। फुल्टन भाषण व टू्रमैन सिद्धान्त के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई तो प्रत्युत्तर में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर वर्ष 1948 में बर्लिन की नाकेबन्दी कर दी। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए जिसकी संयुक्त सेनाएं अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके।

मार्च 1948  में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड और लक्जेमबर्ग ने बसेल्स की सन्धि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था। साथ ही सन्धिकर्ताओं ने यह आश्वासन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो सभी चारों देश हर संभव एक दूसरे की सहायता करेंगे ।

इसी पृष्ठ भूमि में बर्लिन की घेराबन्दी और बढ़ते सोवियत प्रभाव को ध्यान में रखकर अमेरिका ने स्थिति को स्वयं अपने हाथों में लिया और सैनिक गुटबन्दी दिशा में पहला अति शक्तिशाली कदम उठाते हुए उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन अर्थात नाटो की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर किए गए। उसकी स्थापना 4 अप्रैल,1949 को वाशिंगटन में हुई थी जिस पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका। शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार होता रहा।

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