म्यांमार में रजनीतिक तख्तापलट के बाद से ही सेना द्वारा प्रदर्शनकारियों पर बर्बरता की तस्वीरें आनी शुरू हो गयी थीं। आलम यह है कि आंदोलनकारी भी सेना के इस बर्बरता के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं हैं। लागातार नेशनल लीग आफ डेमोक्रेसी की नेता आंग सान सू की के रिहाई की मांग उठ रही है। प्रदर्शनकारियों ने एक अंतरराष्ट्रीय दबाव जरूर बनाया है यही कारण है कि अब अन्य देशों ने म्यांमार पर बात करना शुरू कर दिए है। यहां तक कि विश्व बैंक ने कहा है कि उसने म्यांमार को दी जाने वाले पैसे को रोक दिया है साथ ही सहायता कार्यक्रमों की समीक्षा की जा रही है। अधर कई और देशों ने भी म्यांमार को दी जाने वाली सहायता पर भी रोक लगा दी है।
म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की विशेष राजनयिक क्रिस्टीन एस बर्गनर ने सुरक्षा परिषद से आग्रह किया था कि सैन्य सरकार के विरुद्ध कार्रवाई की जाए। बर्गनर ने कहा था, ‘सामूहिक कार्रवाई अनिवार्य है। हम म्यांमार की सेना को कितनी छूट दे सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा समन्वित कार्रवाई करना कठिन है क्योंकि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य रूस और चीन इस पर वीटो कर सकते हैं। उधर, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने म्यांमार की सेना और सैन्य सरकार के अन्य वरिष्ठ नेताओं पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए हैं। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा था कि म्यामांर सेंट्रल बैंक में रखी एक अरब डाॅलर से अधिक की राशि को निकालने के सेना के प्रयासों को रोक दिया गया है। इसके साथ ही विश्व बैंक ने भी कहा है कि उसने म्यांमार को दी जाने वाली सहायता पर रोक लगा दी है।
म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों पर सैनिक शासन की जारी बर्बरता के बीच बड़ी संख्या में वहां से लोगों का पलायन शुरू हो गया है। वहां से भाग रहे दर्जनों लोग भारत की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। उससे भी ज्यादा संख्या में लोग इसी मकसद से सीमा के आसपास मौजूद हैं। सबसे गम्भीर और चिंताजनक बात यह है कि उस वक्त जो लोग बहुसंख्यक समुदाय और आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फाॅर डेमोक्रेसी (एनएलडी) सेना के साथ खड़े थे। अब वो खुद सेना के निशाने पर आ गए है।
मौजूदा आंदोलन के बीच अल्पसंख्यक समुदायों ने अपनी पीड़ा की तरफ ध्यान खींचने की कोशिश की है। मौजूदा आंदोलन पिछले महीने सेना के सत्ता हथिया लेने के बाद शुरू हुआ। पिछले चुनाव में एनएलडी को जीत मिली थी। लेकिन नई संसद की बैठक शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही सेना तख्ता पलट दिया।
बहुसंख्यक देश के मैदानी इलाकों और यंगून और मंडाले जैसे बड़े शहरों में रहते हैं। अल्पसंख्यक समूहों का कहना है कि उनकी लड़ाई सेना बनाम एनएलडी के बजाय कहीं ज्यादा बड़े सवालों पर है। अल्पसंख्यकों के म्यांमार में लगभग 135 संगठन हैं।अब आंदोलनकारी लोकतंत्र बहाली और आंग सान सू ची, हटाए गए राष्ट्रपति विन मिंत और अन्य सरकारी अफसरों की रिहाई की मांग कर रहे हैं। लेकिन अल्पसंख्यक समूहों के संगठनों ने कहा है कि ये मांगें मोटे तौर पर देश के बहुसंख्यक बौद्ध बामर समुदाय की हैं।