रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ वीडियो और पोस्ट फेसबुक पर बड़ी मात्रा में शेयर होते रहे हैं । जो समुदायों में हिंसा भड़काने का कार्य कर रहे हैं । एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि फेसबुक प्लेटफॉर्म की मूल कंपनी मेटा ने म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया है। इसके बावजूद ‘मेटा’ इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है ।
एमनेस्टी इंटरनेशनल रिपोर्ट के अनुसार रोहिंग्याओं के खिलाफ फेसबुक पर कई जहर उगलते पोस्ट डाले गए है। इनकी जांच पड़ताल न करते हुए इन्हे व्यापक रूप से साझा किया गया है। गौरतलब है कि 2017 से पहले ही फेसबुक म्यांमार में ‘रोहिंग्या के खिलाफ जहरीली पोस्ट करने का चैंबर’ बन गया। उस दौरान से ही म्यांमार के अधिकतर लोगों द्वारा फेसबुक को सूचना पाने और समाचार प्राप्त करने लिए प्राथमिक स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है
फेसबुक पर इस समुदाय के खिलाफ हिंसा फैलाने वाले पोस्टों की भरमार सी हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार सेना और कट्टरपंथी बौद्ध राष्ट्रवादी समूहों से जुड़े लोगों ने रोहिंग्या को निशाना बनाते हुए भड़काऊ सामग्री की फेसबुक पर बाढ़ सी ला दी है । इस प्लेटफार्म पर डाली गई सामग्री ने रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा देश पर कब्जा किए जाने जैसी अफवाह को फैलाया है । फेसबुक पर इन्हे अवमाननीय आक्रमणकारी के रूप में दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। रोहिंग्याइयों के खिलाफ फेसबुक पर डाले गए भड़काऊ समाग्री की शृंखला में म्यांमार के सैन्य शासन के प्रमुख नेता ने भी भड़काऊ पोस्ट डाले थे। सेना के सीनियर जनरल मिन आंग हलिंग ने 1 सितंबर 2017 को अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया था कि ‘हम खुले तौर पर घोषणा करते हैं कि हमारे देश में कोई रोहिंग्या जाति नहीं है’ जिसके बाद मेटा ने आखिरकार 2018 में मिन आंग हलिंग को फेसबुक से बैन कर दिया।
फेसबुक माध्यम से रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ फैल रही हिंसा
एमनेस्टी इंटरनेशनल संस्था द्वारा इसी वर्ष फरवरी और जून के बीच रोहिंग्याइ समुदाय के लोगों का इंटरव्यू लिया गया। इन सभी लोगों ने खुलासा किया कि कुछ घृणित फेसबुक पोस्ट वायरल होने के बाद हिंसा बढ़ जाती है। यही नहीं कुछ फर्जी खबरों पर तो समुदाय आपस में भिड़ भी गए। संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक के माध्यम से रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ फैल रही हिंसा को रोकने के लिए मेटा कंपनी के तहत कोई कदम नहीं उठाया गया। इस रिपोर्ट में तकनीकी दिग्गज द्वारा अभद्र भाषा पर रोक नहीं लगाने के लिए आरोप लगाया गया है। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि रोहंगियां समाज के सदस्यों द्वारा किए गए सभी अनुरोधों की मेटा ने अनदेखी की है।
गौरतलब है कि जिस दौरान फेसबुक के जरिये हिंसा तेजी से बढ़ रही थी। उस दौरान फेसबुक पर फैल रहे हिंसक समाग्री की जांच करने के लिए मेटा के पास पर्याप्त स्टाफ नहीं था। जो कि एक बड़ी चूक साबित हुई। संस्था की रिपोर्ट अनुसार 2017 से पहले मेटा के म्यांमार कार्यालय में संचालन हेतु अपर्याप्त स्टाफ था। जो कि फेसबुक प्लेटफॉर्म से रोहिंग्या विरोधी सामग्री को न हटा पाने के कारणों में ये भी एक महत्वपूर्ण कारण था। दरअसल इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल साउथ में कंटेंट मॉडरेशन में पर्याप्त रूप से निवेश करने में कंपनी की व्यापक विफलता का लक्षण है। 2014 के बीच में मेटा स्टाफ ने स्वीकार किया कि उनके डबलिन कार्यालय में उस समय म्यांमार के लिए सिर्फ एक बर्मी-भाषी कंटेंट मॉडरेटर था।
मेटा ने जून 2018 में दर्जनों बर्मी-भाषी समीक्षकों को काम पर रखने का दावा किया था। हालांकि एक जांच के अनुसार, मेटा के पास अप्रैल 2018 में कंटेंट की निगरानी और मॉडरेट करने के लिए सिर्फ पांच बर्मी भाषा बोलने वाले ही कर्मचारी थे। जबकि उस समय म्यांमार में 1.8 करोड़ लोग फेसबुक यूज कर रहे थे।
मेटा कंपनी से भरपाई राशि की मांग
इस संस्था की रिपोर्ट ने मेटा पर गंभीर आरोप लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक मेटा ने अपने खतरनाक एल्गोरिदम और फायदे को देखते हुए रोहिंग्या के खिलाफ गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि 2019 के बाद से रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने कई शिकायतें और प्रस्ताव इस कंपनी के सामने रखे। जो 2017 में इनके साथ हुए अत्याचारों के लिए ‘न्याय और क्षतिपूर्ति’ की मांग करते हैं। रोहिंग्या युवा समूहों की ओर से एक प्रस्ताव 2020 के मध्य में भी रखा गया था। इसमें मेटा से 1 मिलियन अमरीकी डॉलर की शिक्षा परियोजना के फंड करने के लिए कहा गया था। लेकिन इसके उपरांत 10 फरवरी 2021 को मेटा द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया। इस मामले को लेकर उन्होंने कहा कि फेसबुक ‘सीधे परोपकारी गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकता।
कंपनी द्वारा रोहिंग्या समुदाय के इस अनुरोध को ‘परोपकारी गतिविधियां ’ बताया जाना, कंपनी की मानवाधिकार जिम्मेदारियों की दोषपूर्ण समझ को दर्शाती है । हालांकि रोहिंग्या समुदायों ने मेटा कंपनी से दान का अनुरोध नहीं किया है। ये समुदाय बस इतना चाहता है कि कंपनी उन गंभीर मानवाधिकारों के नुकसान को दूर करने के लिए अपनी जिम्मेदारी को पूरा करे। जिस नुकसान में कंपनी का भी योगदान है। इस वजह से रोहिंग्या समुदाय मेटा से भरपाई राशि की मांग कर रहा है।