एक तरफ वर्त्तमान में इंसान चांद पर बसने की तैयारी कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ लोगों की थाली से भोजन दूर होता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार आज भी दुनिया में लगभग 74 करोड़ लोग कुपोषण और भुखमरी का शिकार है। रिपोर्ट में इसके कारणों को भी उजागर किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2019 के बाद से कोविड 19, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण लगभग 12 करोड़ इसमें शामिल हो गए।
भुखमरी और कुपोषण को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्य पर दुनिया के कई देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए एकजुटता तो हुई लेकिन उसका अभी कोई प्रभाव देखने को नहीं मिल रहे हैं रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक दुनिया को भूख और कुपोषण से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र की 5 संस्थाओं ने इस रिपोर्ट को संयुक्त रूप से तैयार किया है । इन संस्थाओं के नाम हैं फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन, वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम, वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन, यूनिसेफ और इंटरनेशनल फण्ड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट रिपोर्ट को ‘एनुअल स्टेट ऑफ़ फ़ूड सिक्यूरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड 2023’ शीर्षक दिया गया है।
सामाजिक अस्थिरता, गृहयुद्ध और पूंजीवादी नीतियां के चलते भी भूख और कुपोषण तेजी से बढ़ रहा है। सामाजिक अस्थिरता और गृहयुद्ध के कारण सीरिया, यमन, सूडान, म्यांमार, नाइजीरिया, तंजानिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में भुखमरी बढ़ रही है। कई अन्य देशों के लोग सरकार की घोर पूंजीवादी नीतियों के कारण एक बड़ी आबादी को भुखमरी के गर्त डाल रहे हैं। इन देशों में भारत का नाम भी है। गौरतलब है कि भारत वर्ष 2023 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 121 देशों में से 107वें स्थान पर था।
कुल 47 देश ऐसे हैं, जो भूखमरी को ख़त्म करना तो दूर, इसे वर्ष 2030 तक कम भी नहीं कर पायेंगें। इस समय भूखमरी का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन, कोविड 19 और अनेक देशों में पनपे गृहयुद्ध हैं। भूखमरी से सबसे अधिक प्रभावित सहारा के आसपास बसे अफ्रीकी देश, दक्षिण अमेरिका, पश्चिमी एशिया और दक्षिण एशिया है। दुनिया के 5 देशों में भूखमरी खतरनाक स्तर पर है, जबकि अन्य 31 देशों में इसकी स्थिति गंभीर है।
पिछले कुछ महीनों से दुनिया में खाद्य संकट और भूखमरी पर जब भी चर्चा की गयी, उसे हमेशा रूस-यूक्रेन युद्ध से जोड़ा गया और चरम पर्यावरणीय आपदाओं पर कम ही चर्चा की गयी। ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट, “हंगर इन अ हीटिंग वर्ल्ड” के अनुसार बाढ़ और सूखा जैसी स्थितियों के कारण दुनिया में भूखमरी बढ़ रही है और इसका सबसे अधिक असर उन देशों पर पड़ रहा है जो जलवायु परिवर्तन की मार से पिछले दशक से लगातार सबसे अधिक प्रभावित हैं।
रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों – सोमालिया, हैती, जिबूती, केन्या, नाइजर, अफ़ग़ानिस्तान, ग्वाटेमाला, मेडागास्कर, बुर्किना फासो और ज़िम्बाब्वे – में पिछले 6 वर्षों के दौरान अत्यधिक भूखे लोगों की संख्या 123 प्रतिशत बढ़ गयी है। इन सभी देशों पिछले एक दशक से भी अधिक समय से सूखे का संकट है। इन देशों में अत्यधिक भूख की चपेट में आबादी तेजी से बढ़ रही है – वर्ष 2016 में ऐसी आबादी 2 करोड़ से कुछ अधिक थी थी, अब यह आबादी लगभग 5 करोड़ तक पहुँच गयी है और लगभग 2 करोड़ लोग भुखमरी की चपेट में हैं।
ऑक्सफेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया में असमानता बढ़ा रहा है। जलवायु परिवर्तन अमीर और औद्योगिक देशों द्वारा किये जा रहे ग्रीनहाउस गैसों के कारण बढ़ रहा है, पर इससे सबसे अधिक प्रभावित गरीब देश हो रहे हैं। इसीलिए, ऐसी परिस्थितियों में यदि अमीर देश गरीब देशों की मदद करते हैं तब उसे आभार नहीं कहा जा सकता, बल्कि ऐसी मदद अमीर देशों का नैतिक कर्तव्य है। रिपोर्ट के अनुसार इन 10 देशों को भुखमरी से बाहर करने के लिए कम से कम 49 अरब डॉलर के मदद की तत्काल आवश्यकता है।
दुनिया में भुखमरी का कारण अनाज की कमी नहीं बल्कि गरीबी है। दुनिया में चरम पर्यावरण की मार झेलने के बाद भी जितना खाद्यान्न उपजता है, उससे दुनिया में हरेक व्यक्ति को प्रतिदिन 2300 किलोकैलोरी का पोषण मिल सकता है, जो पोषण के लिए पर्याप्त है, पर समस्या खाद्यान्न के असमान वितरण की है, और गरीबी की है। गरीबी के कारण अब बड़ी आबादी खाद्यान्न उपलब्ध होने के बाद भी इसे खरीदने की क्षमता नहीं रखता है।
संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में पिछले वर्ष की तुलना में 19.3 करोड़ अधिक लोग भुखमरी की चपेट में आ गए – इसका कारण गृह युद्ध और अराजकता, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक संकट है। गृह युद्ध और अराजकता के कारण 24 देशों में लगभग 14 करोड़ आबादी, आर्थिक कारणों से 21 देशों में 3 करोड़ आबादी और चरम पर्यावरणीय आपदाओं के कारण अफ्रीका के 8 देशों में 2 करोड़ से अधिक आबादी भुखमरी की श्रेणी में शामिल हो गयी। वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की एक-तिहाई से अधिक आबादी आर्थिक तौर पर इतनी कमजोर है कि पर्याप्त भोजन खरीद नहीं सकती।