लगभग चार लाख की आबादी वाला मालदीव लंबे समय से भारत के प्रभाव में रहा है। लेकिन कुछ सालों से चीन ने यहां चालबाजी शुरू कर दी है। यह देश उसके मोह में फंसता जा रहा है। बेल्ट एंड रोड परियोजना के नाम पर चीन ने कई देशों को अपने जाल में फांसने का प्रयास किया था। हालाँकि इन सभी आरोपों से चीन इंकार करता आया है। लेकिन चीन जिन देशों की मदद करने का ढोंग करता आया है आज उनकी आर्थिक स्थिति खुद ब खुद ये बयां कर रही है।
इन्हीं देशों में एक देश है मालदीव जिसके राष्ट्रपति द्वारा चीन से लिए गए कर्ज न चुका पाने का रोना रोया जा रहा है।
देश के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने ट्वीट किया है, ‘मालदीव के खजाने को 14 दिन में 1.5 करोड़ डॉलर चीनी बैंकों को चुकाने होंगे। इन बैंकों ने मालदीव को कोई रियायत नहीं दी है। ये राशि अगले 14 दिन में सरकार की आय का 50% से ज्यादा है। कोविड के बाद मालदीव को सांस लेने की जगह चाहिए होगी।’
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद द्वारा चीनी कर्ज में फंस जाने के बाद ट्विटर पर एक बार पहले भी दर्द जाहिर किया गया था। उस समय उन्होंने कहा था कि वह अपनी दादी मां के आभूषण बेचकर भी ड्रैगन का यह कर्ज नहीं चुका पाएंगे।
दरअसल, देश में आधारभूत परियोजनाओं के नाम पर साल 2013 में मालदीव में चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन की सरकार ने बड़े पैमाने पर लोन लिया था। अब यही अरबों डॉलर का लोन वर्तमान सरकार के लिए मुसीबत बन गया है। मालदीव सरकार को चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत यह पैसा दिया था।
टूरिज्म है आय का अहम स्रोत
टूरिज़्म मालदीव की आय का अहम स्रोत है क्योंकि इसकी पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर करती है। लेकिन कोरोना संकट के समय में मालदीव के पर्यटन पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा है। टूरिज्म से हर साल मालदीव को करीब दो अरब डॉलर की कमाई होती है लेकिन कोरोना के कारण इसके एक तिहाई कम होने का अनुमान है। अगर इसी तरह कोरोना का कहर बढ़ता रहा तो इस साल मालदीव सरकार को 70 करोड़ डॉलर का नुकसान हो सकता है।