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इमरान की नई मुसीबत बना मदरसों पर बना कानून

बीते कुछ दिनों से पाकिस्तान में एक कानून को लेकर बवाल मचा हुआ है। पीएम इमरान खान खान के ये कानून पाकिस्तान के सभी मस्जिदों और इस्लामिक मदरसों की फंडिंग और कामकाज पर सरकार को निगरानी करने की शक्ति देता है जिसके कारण अब पीएम इमरान खान के खिलाफ देश के धार्मिक नेता और इस्लामवादी नेता इस क़ानून का सड़क पर जमकर विरोध हैं।

दरअसल, मदरसों पर बने इन नए कानूनों की वजह है बीते वर्ष सितंबर में, पेरिस स्थित फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) में ब्लैक लिस्ट होने से बचना। इसके लिए पिछले साल सितम्बर में पाकिस्तानी संसद ने तीन बिल पारित हुए।

दुनिया भर में हो रही मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्त पोषण से निपटने के लिए उपाय करना और नीतियां बनाना एफ़एटीएफ़ का मुख्य उद्देश्य है। यह एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है।

एक्सप्रेस ट्रिब्यून के विवरण के अनुसार, पाकिस्तान को एफ़एटीएफ़ ने जून, 2018 में अपनी ग्रे लिस्ट में डाल दिया था और उसे 2019 के अंत तक अपना एक्शन प्लान लागू करने के लिए कहा था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण ये समयसीमा बढ़ा दी गई।

कई इस्लामी मदरसों को चरमपंथ की शिक्षा देने वाले संस्थानों के रूप में देखा गया था। एफ़एटीएफ़ ने इसका कारण जो वैश्विक चरमपंथ को फैलाने में शामिल हैं पाकिस्तान की ओर से कथित तौर पर इन संगठनों को फंडिंग देना बताया। इसके तुरंत बाद पाकिस्तान ने चरमपंथी समूहों पर कार्रवाई शुरू कर दी और उनके ठिकानों पर छापेमारी की।

सितंबर में एफ़एटीएफ़ से संबंधित तीन विधेयक एंटी मनी लॉन्ड्रिंग (दूसरा संशोधन) विधेयक 2020,इस्लामाबाद कैपिटल टेरिटरी वक़्फ़ प्रॉपर्टीज़ बिल 2020 और आतंकवाद विरोधी विधेयक (तीसरा संशोधन) 2020 पाकिस्तान की संसद में पारित किया गया था।

वक्फ़ प्रॉपर्टीज़ क़ानून सरकार के ज़रिए तैनात प्रशासक को मस्जिदों और मदरसों के वित्त पोषण और कामकाज की निगरानी करने की अनुमति देता है। ‘वक़्फ़’ एक अरबी शब्द है, जो धार्मिक, शैक्षणिक या दानार्थ उद्देश्य के लिए पैसों की व्यवस्था करवाती है।

अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने 27 जनवरी को छापा कि जब शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय अख़बारों में यह विज्ञापन छपवाया कि मदरसों को अपने संबंधित ज़िलों में पंजीकरण करवाना पड़ेगा तब अक्तूबर 2020 में हज़ारों मदरसों का प्रतिनिधित्व करने वाले बोर्ड ने इस विधेयक के प्रावधानों पर चर्चा की। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पाकिस्तान के क़रीब 30 हज़ार मदरसों में से केवल 295 द्वारा ही पंजीकरण के लिए आवेदन किया गया था।

दिसंबर में वक़्फ़ प्रॉपर्टीज़ क़ानून के विरुद्ध प्रतिष्ठित धार्मिक नेता मुफ़्ती मुनीबुर रहमान ने एक नए संगठन तहरीक-ए-तहफ़्फ़ुज़-ए मस्जिद-ओ-मदारिस (मस्जिद और मदरसों के संरक्षण के लिए आंदोलन) के तत्वाधान में एक अभियान शुरू किया। उसमें संगठन ने कहा कि मिस्र और तुर्की जैसे अन्य देशों में भी इस तरह के क़ानून लागू किए गए थे।

डॉन के अनुसार रहमान ने कहा कि यह क़ानून एफ़एटीएफ़ के दबाव में पारित किया गया था।

साथ ही उन्होंने कहा, “पाकिस्तान जैसे इस्लामिक गणतंत्र में धार्मिक प्रतिबंध स्वीकार्य नहीं हैं और अगर सरकार इसे जबरन थोपने की कोशिश करती है तो हम इसका विरोध करेंगे।”

अपनी पहली जनवरी के संस्करण में कट्टरपंथी उर्दू अख़बार डेली इस्लाम ने लिखा कि इस नए संगठन से जुड़े धार्मिक नेताओं ने इस क़ानून को “आतंकवाद के साथ मदरसों को जोड़ने का प्रयास” किया है।

उर्दू अख़बार उम्मत ने 20 जनवरी को लिखा कि धार्मिक नेताओं के विरोध के बीच जनवरी में पंजाब में मदरसों के पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू हई। प्रांतीय सरकार ने उन मदरसों पर जुर्माना लगाने की धमकी दी है जिनका सात दिनों के भीतर पंजीकरण नहीं करवाया गया है।

धार्मिक नेताओं ने एनजीओ पीस ऐंड एजुकेशन फाउंडेशन की भागीदारी पर भी अपनी आपत्ति जताई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह एनजीओ नकारात्मक रिपोर्ट और सिफारिशें अमेरिकी सरकार को भेज रहा है।

उर्दू अख़बार औसफ़ ने 25 जनवरी को लिखा कि तहरीक-ए-तहफ़्फ़ुज़-ए मस्जिद-ओ-मदारिस ने इस्लामिक मदरसों में इस एनजीओ के सेमिनार और वर्कशॉप आयोजित करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

धार्मिक नेताओं और मदरसा छात्रों ने 26 जनवरी को इस्लामाबाद की सड़कों पर इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए और सरकार से इसे वापस लेने का आह्वान किया।

बीते दशकों में पाकिस्तान में कई सरकारों ने मदरसों को क़ानून के दायरे में लाने को लेकर चुनौतियों का सामना किया है।

डॉन के साथ इंटरव्यू में पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री शफ़क़त महमूद ने मदरसों के पंजीकरण को लेकर उम्मीद जताई।साथ ही उन्होंने कहा, “चीज़ें समय लेती हैं; उन्होंने (मदरसे) हमें लिखित में आश्वासन दिया है, इसलिए पंजीकरण किया जाएगा और हम इसे पूरा कर लेंगे।”

शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसी डॉन अख़बार से नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि मदरसों ने दशकों तक खुद को सुव्यवस्थित और पंजीकृत करने के प्रयासों को सफलतापूर्वक टाल रखा था.

इसी बीच, मुफ़्ती रहमान, मौलाना क़ारी मुहम्मद हनीफ़ जालंधरी, मौलाना क़ाज़ी अब्दुल रशीद, मौलान ज़हूर अहमद अल्वी और मुफ़्ती इक़बाल नईमी जैसे प्रमुख धार्मिक नेताओं ने क़ानून को वापस नहीं लेने पर आगे भी विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।

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