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जानें इन देशों में Facebook क्यों दिखा रहा है ‘दादागिरी’ ?

‘सोशल मीडिया’ इस नाम से पूरी दुनिया वाकिफ है, क्योंकि अब ‘सोशल मीडिया’ छोटा बच्चा हो या कोई बड़ा सबके दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुका है। युवाओं के लिए तो सोशल मीडिया आज की प्राथमिकता बन गया है। कहीं न कहीं डिजिटल प्लेटफॉर्म ने हमारी जिंदगी में अघोषित कब्ज़ा कर लिया है, इन कथित डिजिटल प्लेटफॉर्म के बिना न लोग चल पा रहे हैं न ही जी पा रहे हैं। इन्होंने आम आदमी की जिंदगी में गहरी जड़ें जमा ली हैं। अब  हानि है तो कई लाभ भी हैं इनके जरिए हम अपने से जुडी कोई भी चीज एक दूसरे के बीच शेयर कर सकते हैं।

किसी देश तक सीमित न होकर विश्व के हर एक हिस्से में यह अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है। सोशल नेटवर्किंग ‘ऑरकुट’ के साथ शुरू हुआ लेकिन आज यह इतना विस्तृत हो चुका है कि आज ऑरकुट तो लगभग खत्म हो चुका है लेकिन इसकी जगह ले ली है फेसबुक और अनेकों ऐप ने। सबसे बढ़िया तो यह है कि यहां किसी व्याकरण या अंग्रेजी का आना महत्व नहीं रखता।

लेकिन अगर किसी दिन कुछ जानकारी देखने के लिए आप फेसबुक ओपन करे और वहां कुछ न मिले तो क्या होगा ? यकीनन आप हैरान होंगे और निराश भी। ऐसा ही कुछ हुआ है ऑस्ट्रेलिया में। 18 फरवरी, गुरुवार को यहां फेसबुक पर न्यूज़ फीड दिखना बंद हो गया। जिसका वहां की स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर सरकारी जानकारी और इमरजेंसी अलर्ट तक पर असर पड़ा। ये नतीजा है ऑस्ट्रेलिया सरकार और फेसबुक के बीच चल रहे खींचतान का।

ऑस्ट्रेलिया में FB का पेज क्यों हुआ बंद ?

दरअसल, सभी दिग्गज इंटरनेट कंपनियां चाहे फेसबुक हो या गूगल मीडिया संस्थानों से मिले समाचारों का इस्तेमाल करती हैं लेकिन इसके बदले कोई भुगतान नहीं करती हैं। इसी पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार एक नए कानून पर विचार कर रही है जो ऑस्ट्रेलिया में समाचार के लिए फेसबुक और Google को चार्ज करने की अनुमति देगा। प्रस्तावित नए कानून के तहत, फेसबुक और Google को समाचार दिखाने के लिए मीडिया कंपनियों को भुगतान करना होगा। फेसबुक इस मुद्दे को लेकर ऑस्ट्रेलियाई सरकार के साथ लॉगरहेड्स में रहा है। यह मामला अब इतना बढ़ गया है कि फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में अपना पेज भी बंद कर दिया है।

ऑस्ट्रेलिया के नए कानून का नाम न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड है। कानून लागू होने के बाद फेसबुक, गूगल या ऐसी ही कोई और कंपनी अगर किसी मीडिया संस्थान का न्यूज कंटेंट इस्तेमाल करती है तो बदले में उन्हें इसकी कीमत अदा करनी होगी।

खबरों के लिए देना होगा पैसा !

फेसबुक ने इस प्रस्ताव के विरोध में अपने पेज से न्यूज ब्लैकआउट कर दिया है। फेसबुक के एक्शन से ऑस्ट्रेलिया के शहरी न्यूजपेपर मार्केट में ‘नाइन’ और ‘न्यूज कॉर्प’ के पेज भी ब्लैंक हो गए। इन दोनों का ऑस्ट्रेलिया में काफी दबदबा है। चिंता की बात तो यह रही कि इसने सभी प्रमुख सरकारी खातों पर भी असर डाला। हालांकि आलोचना होने के बाद फेसबुक ने कुछ सरकारी विभागों के फेसबुक पेज बहाल कर दिए है।

फेसबुक और गूगल दोनों ने पहले प्रस्तावित कानून के विरोध में आवाज उठाई थी। धमकी भी दी गई कि वह ऑस्ट्रेलिया में अपनी सेवाएं बंद कर देगा। लेकिन पिछले कुछ दिनों में, Google के रवैये को ढीला देखा गया है। इसने समाचार पत्र रूपर्ट मर्डोक सहित कई संस्थानों के साथ करार किया है कि उन्हें उनकी समाचार सामग्री के बदले पैसा दिया जाएगा। ऑस्ट्रेलिया में जो कानून बनाया जा रहा है उसमें यह भी प्रावधान है कि अगर Google और Facebook मीडिया कंपनियों के साथ समझौता नहीं करते हैं तो मामला मध्यस्थता पैनल में चला जाएगा। यह पैनल तय करेगा कि इस्तेमाल की गई खबरों के लिए कितना पैसा देना चाहिए।

ऑस्ट्रेलिया ही नहीं फ्रांस में भी हुआ था यही

ऐसा नहीं है कि ये विवाद केवल ऑस्ट्रेलिया में हुआ है। इससे पहले फ्रांस में भी यही हुआ। जब वर्ष 2019 यूरोपियन यूनियन के कॉपीराइट से जुड़े नियम लागू किए तो गूगल ने फ्रांस में भी न्यूज कंटेंट दिखाना बंद कर दिया। उन नियमों के अनुसार, मीडिया संस्थानों को ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म से रॉयल्टी इकट्ठा करने का अधिकार दिया गया था। लेकिन फ्रांस में विरोध के बाद गूगल विवश हो गया और न्यूज कंटेंट के लिए समाचार संस्थानों को पैसा देने के लिए सहमत भी। कहा जा रहा है कि 121 फ्रांसीसी मीडिया संस्थानों से करार कर गूगल तीन वर्षों में वह इस मद में साढ़े सात करोड़ डॉलर से ज्यादा का भुगतान करेगा।

विज्ञापनों के जरिए ही पैसा आता है। इन आंकड़ों से इसका अंदाजा लग सकता है। वर्ष 2020 की मीडिया और एंटरटेनमेंट सेक्टर के बारे में फिक्की और अर्न्स्ट एंड यंग की  एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 30 करोड़  ऑनलाइन न्यूज साइट्स, पोर्टल्स और एग्रीगेटर्स के यूजर मौजूद हैं। चीन के बाद ऑनलाइन न्यूज खंगालने वालों की संख्या के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार माना जाता है। यहां 28 करोड़ से ज्यादा यूनीक विजिटर हैं।

अफवाहों पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी

अर्न्स्ट एंड यंग के एक अनुमान के अनुसार, भारत में डिजिटल माध्यमों के माध्यम से विज्ञापन पर खर्च वर्ष 2019 में सालाना आधार पर 24 प्रतिशत बढ़कर 27 हजार 900 करोड़ रुपये हो गया। इसके बढ़कर 51 हजार 340 करोड़ रुपये होने की उम्मीद थी वर्ष 2020 में। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो एडलवाइस रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि डिजिटल माध्यम से विज्ञापन पर खर्च का लगभग 61 प्रतिशत फेसबुक और Google को जाता है। इसमें भी गूगल 37 फीसदी हिस्सेदारी के साथ आगे है। ऑस्ट्रेलिया ने जो प्रारूप सामने रखा है, वह इन ऑनलाइन प्लेटफार्मों और मीडिया संस्थानों के बीच राजस्व साझेदारी का एक अच्छा मॉडल बन सकता है। लोकतंत्र और समाज को स्वस्थ रखने के लिए अफवाहों पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। यह तभी हो सकता है जब समाचार संस्थान और इंटरनेट प्लेटफॉर्म एक साथ काम करें और मिलकर इसपर चिंतन करें।

भारत में भी फ्रांस ऑस्ट्रेलिया जैसे उठे कदम

ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इन सोशल नेटवर्किंग्स साइट्स और सोशल मीडिया ने दुनिया को इतना छोटा कर दिया है कि एक वर्ष पहले एक व्यक्ति ट्विटर पर अपने दोस्तों के साथ एक लड़की को खोज रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने शरारत में अपनी सीट का नंबर भी अपलोड कर दिया। उसी फ्लाइट में उस लड़के के बगल में वो लड़की बैठी थी। लड़के ने शरारती अंदाज में अपनी सीट का नम्बर भी अपलोड कर दिया था, अब ऐसे में बेचारी लड़की को कइयों की शक्की निगाहें झेलनी पड़ीं।

जिस तरह ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस में फेसबुक जैसी दिग्गज कंपनियों के खिलाफ कदम उठाया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि भारत में भी ऐसा कानून होना चाहिए। न्यूज वेबसाइट्स पर अतिरिक्त ट्रैफिक आता है। लेकिन सवाल उठता है कि गूगल और फेसबुक इस ट्रैफिक का मोटा फायदा लेते हैं और न्यूज़ साइट्स को धेला भी नहीं देती हैं। किसी और की मेहनत और विशेषज्ञता की मलाई कोई और खाएगा तो सवाल उठना तो जायज है।

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