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खतरे में पत्रकारिता

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में मीडिया की आजादी का सिमटना खतरनाक स्तर पर पहुंचता जा रहा है। विश्व प्रेस इंडेक्स के 180 देशों में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाला भारत पिछले साल 142वें से 150वें स्थान पर आ गया है। इस रिपोर्ट ने दुनिया भर के फ्रीडम ऑफ स्पीच और लोकतंत्र के चौथे खंभे के खोखलेपन को उजागर कर दिया है

पत्रकारिता को सत्ता और प्रशासन का वॉचडॉग कहा जाता है लेकिन अगर पत्रकारिता को ही सत्ता से खतरा महसूस होने लगे तो इससे दुनिया भर में निरंकुशता का राज आ जाएगा। ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’ इन पंक्तियों को लिखने के बाद फैज साहब दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन आज इन पंक्तियों के लिहाज से एक खेमे को तो स्वतंत्रता है लेकिन दूसरे खेमे को लब की आजादी के नाम पर इतनी दफे मौत का डर दिखाया गया है कि उसकी नजरों में इन पंक्तियों का कोई अस्तित्व ही शेष नहीं रह गया है। आपको याद होगा 5 सितंबर 2017, जब निर्भीक पत्रकारिता की मिसाल गौरी लंकेश को उनके घर के बाहर गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया गया था। ऐसी कई घटनाओं ने भारत में पत्रकारों को डर के साए में रहने को विवश कर दिया है।

ऐसा केवल भारत में ही नहीं है बल्कि दुनिया भर के देशों में स्वतंत्र पत्रकारिता के अस्तित्व पर भयंकर खतरा मंडरा रहा है। गौरतलब है कि बिना स्वतंत्र मीडिया के स्वस्थ लोकतंत्र होने की कामना करना बेहद मुश्किल है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों में पत्रकारों के लिए बिना किसी बाधा और डर के काम कर पाना लगातार बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। दुनिया भर में निर्भीक पत्रकारिता करना खतरों से भरा हुआ है। जिसके चलते पत्रकारों की जान भी चली जाती है। पत्रकारों को जितना सत्ता माफियाओं से खतरा है उतना ही प्रभुत्वशाली बाहुबलियों के अंधभक्तों से भी खतरा है। ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में मीडिया की आजादी का सिमटना खतरनाक स्तर पर पहुंचता जा रहा है। विश्व प्रेस इंडेक्स के 180 देशों में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाला भारत पिछले साल के 142 वें स्थान से 150 वें स्थान पर आ गया है। इस रिपोर्ट ने दुनिया भर के फ्रीडम ऑफ स्पीच और लोकतंत्र के चौथे खंभे के खोखलेपन को उजागर कर दिया है।

कैसे होता है आंकलन?
वर्ष 2002 से विश्वभर में कार्यरत पत्रकारों की स्वतंत्र संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स निरंतर हर साल वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स को प्रकाशित करती आई है। इस इंडेक्स को विभिन्न देशों में मीडिया के कामकाज के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर तैयार किया जाता है। देशों को उसके अनुरूप रैंकिंग दी जाती है। इसमें विविधता, आजादी, वैधानिक व्यवस्था और पत्रकारों की सुरक्षा जैसे कारकों का अध्ययन किया जाता है। फिर इसको 20 भाषाओं में अनुवादित कर 180 देशों के पत्रकारों, मीडिया वकीलों, स्कॉलरों और अन्य मीडिया विशेषज्ञों को भेजा जाता है जिन्हें संस्था द्वारा चयनित किया जाता है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स में कार्यरत जानकार पत्रकार मीडिया संस्थाओं के खिलाफ हुई हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं का विस्तृत ब्यौरा तैयार करते हैं।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में उत्तर कोरिया सबसे निचले पायदान पर है। तानाशाही शासन वाले इस देश के खस्ताहाल की खबरें बाहर नहीं निकलतीं। पूरी दुनिया की नजर से छिपे हुए उत्तरी कोरिया में भी प्रेस की आजादी नहीं पाई जाती। शासक किम जोंग उन की मशीनरी मीडिया में प्रकाशित सामग्री पर पैनी नजर रखती है। लोगों को केवल सरकारी टीवी और रेडियो चैनल मिलते हैं और जो लोग अपनी राय जाहिर करने की कोशिश करते हैं, उन्हें अक्सर राजनीतिक कैदी बना दिया जाता है।
चीन को दुनिया भर में पत्रकारों और ब्लॉगरों की सबसे बड़ी जेल माना जाता है। यहां किसी भी न्यूज कवरेज के पसंद न आने पर शासन द्वारा संबंधित पक्ष के विरुद्ध कड़े कदम उठाए जाते हैं। चीन पिछले साल 177 वें पायदान पर था लेकिन इस बार दो पायदान ऊपर चढ़कर 175 वें स्थान पर आ गया है।

नहीं थम रही पत्रकारों की मौत
दुनिया के सबसे बड़े पत्रकार संगठन ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स’ (आईएफजे) की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में कुल 45 संवाददाताओं और मीडियकर्मियों की काम के दौरान मौत हो गई। वहीं यूनेस्को के आकड़ों के मुताबिक साल 2021 में 55 पत्रकारों की मौत हुई है। साल के पहले 4 महीनों में ही 29 पत्रकार अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। जिनमें से रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में ही 7 पत्रकार मारे गए हैं। वर्ष 2006 के बाद से सभी पत्रकारों की हत्याओं में से 87 फीसदी केस आज भी अनसुलझे हैं। हैरानी की बात है यह है कि इनमें दो तिहाई से ज्यादा मौतें ऐसे देशों में हुई जहां कोई सशस्त्र संघर्ष जारी नहीं था।

‘मीडिया के लिए खतरनाक देशों में भारत भी शामिल’
‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल औसतन तीन से चार पत्रकार अपने काम के चलते जान गंवा बैठते हैं। ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा ‘भारत मीडिया के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल है। पत्रकारों को पुलिस हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के हमले, भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों की प्रताड़ना और हिंसा का सामना करना पड़ता है। सरकार विरोधी हमलों और विरोध प्रदर्शनों को कवर करने की कोशिश करने वाले पत्रकारों को अक्सर गिरफ्तार किया जाता है और कभी-कभी मनमाने ढंग से हिरासत में भी लिया जाता है।’ ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हाल के वर्षों में ‘गोदी मीडिया’ का उदय देखा गया है। ‘टाइम्स नाउ’ और ‘रिपब्लिक टीवी’ जैसे मीडिया आउटलेट लोक- लुभावनवाद और बीजेपी समर्थक प्रचार को आपस में मिलाते हैं।’

टॉप-पांच देश
स्वतंत्रता के मामले में इस साल नॉर्वे पहले नंबर पर, डेनमार्क दूसरे नंबर पर, स्वीडन तीसरे नंबर पर, एस्टोनिया चौथे नंबर पर और फिनलैंड पांचवें नंबर पर है।

पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देश
रिपोर्ट के अनुसार उत्तर कोरिया प्रेस की स्वतंत्रता में सबसे पिछड़ा देश है। इसके बाद पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में इरिट्रिया, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, म्यांमार, चीन, वियतनाम, क्यूबा, इराक और फिर सीरिया का नंबर आता है। इन देशों में प्रेस को बहुत कम स्वतंत्रता मिली हुई है और यहां पर स्वतंत्र पत्रकारिता बहुत मुश्किल है। हालांकि इसके पीछे अधिकतर देशों का पिछड़ापन बड़ा कारण है।

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