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समाज से नस्लभेद के दाग को मिटाना जरूरी

दुनिया भर में अधिकतर लोग नस्लभेद का सामना करने के लिए मजबूर हैं। नस्ल भेदभाव  की यह प्राचीन विरासत समाज में अमानवीयता को बढ़ावा देती है। जिसे खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा आह्नान किया गया है। 30 मई को संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष कसाबा कोरोसी द्वारा कहा गया कि नस्ल भेद दुनिया भर की समस्या है। इसलिए हर देश को इसके खिलाफ कड़ा रुख अपनाना होगा। अध्यक्ष कोरोसी ने विश्व स्तर पर अफ्रीकी मूल के लोगों की सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने पर जोर दिया है।

 

नफरत कर रही है खोखला

 

संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष अनुसार नस्ल भेद लम्बे समय से ही एक ऐसे घाव या दाग के रुप में उपस्थित रहा है जो नफ़रत व हिंसा को उकसाने में अपनी भूमिका अदा करता रहा हैं। नस्लीय हिंसा के  तमाम रूपों को खत्म करने लिए सामूहिक प्रयासों की मांग की गई है । नस्ल भेद दासता और बहिष्करण की विरासते ,दमनकारी व नस्लीय हिंसा वाली जेल व्यवस्थाओं , स्वास्थ्य देखभाल  की उपलब्धता में असमानताओं और कार्यबल से बहिष्करण के रुप में आज भी मौजूद है। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि साझी इंसानियत को पहचान देने की हमें कितनी जरुरत है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एनतो नियो गुटेरेश ने भी इसी संदर्भ में अफ्रीकी मूल के लोगों की ओर संकेत किया है। उनका कहना है कि दुनिया भर में हर जगह ,अफ़्रीकी मूल के लोगों के लिए पूर्ण समानता और न्याय की दिशा में मार्ग प्रशस्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता मुखर है। महासचिव ने स्वीकार करते हुए कहा है कि सदियों की दासता और उपनिवेशवाद से उपजी और लंबे समय तक चली गलतियों को सही किया जाना बेहद जरूरी है।

यूएन प्रमुख ने कहा, “हमें अपने समाज को नस्लभेद के अभिशाप से मुक्त कराने, और अफ्रीकी मूल के लोगों के, भेदभाव रहित व समान नागरिक के रूप में उनके पूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करने के लिए, और भी ज़्यादा गंभीरता के साथ काम करना होगा।  इसके अतिरिक्त नस्लभेद  फैलाने वाले व्यक्तियों की गतिविधियों को  जवाबदेह ठहराया जाना जरूरी है। यही नहीं नस्लीय विरासत को जारी रखने वाली दमनकारी भेदभावपूर्ण व्यवस्थाओं व ढाँचों की भूमिका पर विस्तार से पुनर्विचार किया किया जाना चाहिए।

 

नहीं उबरा नस्लभेद से अमेरिका

 

गौरतलब है अफ्रीकी मूल के व्यक्तियों के साथ नस्ल भेद लंबे समय से होता आया है। अमेरिका में इसकी जड़े गहरी हैं। अमेरिका अपने ही भीतर त्वचा के रंग को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहा है। एफबीआई (फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में हेट क्राइम के सबसे ज्यादा 2,233 मामले अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों के खिलाफ हमले के दर्ज हुए हैं। दरअसल, अफ्रीकी-मूल के अमेरिकन नागरिक रंग से काले या सांवले होते हैं और अमेरिका को गोरों का देश माना जाता है। इसी रंगभेद के चलते यहां श्वेत-अश्वेत के बीच हिंसा की घटनाएं घटती रही हैं।

 

नस्लभेद से नहीं उबर पा रहा है अमेरिका

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