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पाकिस्तान के लिए उसकी धरती पर पनप रहा आतंकवाद बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। इस बीच भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद को लेकर हुए तनाव ने पूरी दुनिया को चिंतित कर डाला। दुनिया के कई मुल्क चाहते हैं कि पाकिस्तान अपनी जमीन पर चल रहे आतंकी ठिकानों पर कड़ी कार्रवाई करे। सबसे कड़ा रुख ईरान का है। ईरानी सरकार और सेना ने पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है, क्योंकि पाकिस्तान यह कर पाने में समर्थ नहीं है। ईरान का दो टूक कहना है कि पाकिस्तान को ईरान के संकल्प की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। अगर उसने अपनी जमीन पर पनप रहे आतंकवाद को खत्म नहीं किया तो उसे भुगतने पड़ जाएंगे।

दरअसल, ईरान उन देशों में से एक प्रमुख है जो पाकिस्तान के अंदर चलने वाली आतंक की फैक्ट्रियों से लहूलुहान है। ये फैक्ट्रियां भारत और ईरान में लगातार आतंक फैला रही हैं। पुलवामा हमले के दौरान ही ईरान में भी एक आत्मघाती हमले में 27 ईरानी सैनिक मारे गए थे। ईरान मानता है कि उस आत्मघाती हमले में भी पाकिस्तान का ही हाथ है। ईरान में पाकिस्तान के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश है। ईरान ने अपने सुरक्षा बलों पर हुए आत्मघाती हमले के पीछे मौजूद एक जिहादी संगठन को पनाह देने का इस्लामाबाद पर खुला आरोप लगाया है।

आईआरजीसी कुर्द सेना के प्रमुख जनरल कासिम सोलेमानी ने पाकिस्तानी सरकार और उसके सैन्य प्रतिष्ठान को कड़ी चेतावनी दी है। खबरों के मुताबिक जनरल सोलेमानी ने कहा है कि मेरा पाकिस्तान की सरकार से यह सवाल है कि आप किस ओर जा रहे हैं? आपने अपनी सभी पड़ोसी देशों की सीमा पर अशांति फैला रखी है। क्या आपका कोई और ऐसा पड़ोसी बचा है जहां आप असुरक्षा फैलाना चाहते हैं।


जनरल सोलेमानी ने यह तक कहा कि आपके पास तो परमाणु बम हैं, लेकिन आप इस क्षेत्र में एक आतंकी समूह को खत्म नहीं कर पा रहे जिसके सदस्यों की संख्या सैकड़ों में है। पाकिस्तान को ईरान के संकल्प की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। अगर पाकिस्तान ने अपनी जमीन पर पनप रहे आतंकवाद को खत्म नहीं किया तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

गौरतलब है कि पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किमी की सीमा है। पाकिस्तान से ईरान इसलिए नफरत करता है, क्योंकि दोनों देशों की सीमा पर तैनात ईरान के सुरक्षाकर्मियों को पाकिस्तान के आतंकी मारकर भाग जाते हैं। वर्ष 2015 में पाक के आतंकवादियों ने सैकड़ों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। उसके बाद से ईरान में पाकिस्तान के मानव बमों के हमले लगातार होते रहे हैं। इस बीच पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हमले के लिए पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने जिम्मेदारी ले ली है। भारत तो मानता ही है कि पुलवामा हादसे के तार पाकिस्तान से ही जुड़े हैं। यानी दोनों देश पाकिस्तान से फैलाए जा रहे आतंकवाद से त्रस्त हैं।

जानकारों का मानना है कि अब भारत- ईरान के पास कुछ ज्यादा विकल्प भी नहीं बचे हैं। दोनों को पाकिस्तान से कूटनीति से लेकर हर मोर्चे पर लड़ना ही होगा। उसे ऐसी गहरी चोट देनी होगी कि पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि विश्व भर के आतंकी आतंकवाद का नाम लेने से ही कांप जाएं। हालांकि इस बीच भारत का कड़ा रुख अपनाने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने टोन बदला है कि जंग से क्या होगा, हम आतंकवाद पर बात करने के लिए राजी हैं। लेकिन, अब उनकी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

दरअसल, ईरान के पाकिस्तान से सटे दक्षिण-पूर्वी सिस्तान में विगत 13 फरवरी को एक आत्मघाती हमले में रिवोल्यूशनरी गार्ड के 27 सदस्य मारे गए थे। इस आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी सुन्नी जिहादी संगठन जैश-अल-अदल (न्याय की सेना) ने ली थी। साफ है कि कहीं जैश ए मोहम्मद का आतंक है तो कहीं जैश-अल-अदल का।
ईरान और पाकिस्तान के बीच संबंधों में बड़ा बदलाव तब आया था जब दिसंबर, 2015 में सऊदी अरब ने आतंकवाद से लड़ने के लिए 34 देशों का एक ‘इस्लामी सैन्य गठबंधन’ बनाने का फैसला किया था। हालांकि उसमें शिया बाहुल्य ईरान को शामिल नहीं किया गया था। उस गठबंधन में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को प्रमुखता के साथ जोड़ा था। इस कारण पाकिस्तान से ईरान काफी नाराज हुआ था। यह बात अलग है कि वो गठबंधन कभी कायदे से अपना काम ही नहीं कर सका। उस गठबंधन को ईरान विरोधी के रूप में भी देखा गया जो सऊदी अरब का मुख्य क्षेत्रीय प्रतिद्वंदी है। इस बीच 19 फरवरी को भारत आने से पहले सऊदी अरब के वली अहद (युवराज) मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान की भी यात्रा की थी। उस यात्रा पर ईरान की नजरें गड़ी थी, क्योंकि ईरान और सऊदी अरब में भारी दुश्मनी है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोनों ही देश घोर प्रशंसक और मित्र हैं। हालांकि पाकिस्तान सऊदी अरब के साथ ही ईरान से भी संबंध रखना चाहता है, लेकिन ईरान को मालूम है कि जिस देश में शियायों का कत्लेआम होता हो, वह देश उसका मित्र नहीं हो सकता।

बहरहाल, अब भारत-ईरान दोनों ही पाक से दुखी हैं। यह भी एक विचित्र संयोग है कि पिछले साल भी ईरान और भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोला था। उस वक्त भारतीय सेना ने पाक अधिकøत कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। उसी दिन ईरान ने भी पाकिस्तान पर हमला किया था। भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक में 38 आतंकी मार गिराए थे। उसी समय पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर ईरान ने मोर्टार दागे थे। ईरान के बॉर्डर गार्ड्स ने सरहद पार से बलूचिस्तान में मोर्टार दागे थे।

पाक का पडोसी देश अफगानिस्तान भी उससे नाराज है। दशकों से दोनों देशों के बीच लगातार तनाव चल रहा है। काबुल भी पाकिस्तान पर अक्सर यह इल्जाम लगाता है कि वह आतंकियों को अपनी जमीन पर सुरक्षित ठिकाने मुहैया कराता रहा है। इसके साथ ही तालिबानियों को अपनी सीमा में दाखिल कर अफगानी और पश्चिम देशों की सेना पर हमले करवाता रहा है। और तो और जो बांग्लादेश कभी पाकिस्तान का अपना अंग था, उसे भी पाकिस्तान की दखलअंदाजी रास नहीं आती।
बांग्लादेश को पाकिस्तान से शिकायत है कि वह उसके घरेलू मामलों में दखल देता है।

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