आर्थिक मोर्चे पर दुनिया की चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जिससे वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा कम होने के बजाए बढ़ गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में महंगाई को लेकर एक ऐसी चेतावनी दी गई है, जो दुनिया भर के नीति-नियंताओं के लिए चिंता बढ़ाने वाली है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगला साल यानी 2023 भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होने वाला है। जिसकी वजह से दुनिया भर में करोड़ों लोग गरीबी और भुखमरी की कगार पर आ सकते हैं
बीते तीन वर्षों से जारी कोरोना महामारी से पूरी दुनिया अभी भी जंग लड़ रही है। इस दौरान इसकी चपेट में आकर लाखों लोगों की जान चली गई और करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। इस महामारी के चलते दुनिया भर के मुल्कों की अर्थव्यवस्था अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में रूस- यूक्रेन के बीच महीनों से जारी युद्ध ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसकी वजह से खाद्य पदार्थों और लगातार बढ़ती महंगाई को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही थीं वे सच होती प्रतीत होने लगी हैं। हाल ही में जारी की गई अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में महंगाई को लेकर एक ऐसी चेतावनी दी गई है, जो दुनिया भर के नीति-नियंताओं की चिंता बढ़ाने वाली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगला साल 2023 भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होने वाला है और अभी दशकों के उच्च स्तर पर पहुंची महंगाई के कारण दुनिया भर में करोड़ों लोग गरीबी और भुखमरी की कगार पर आ सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टालिना जियार्जिएवा के मुताबिक दुनिया भर के केंद्रीय बैंक जिस तेजी से ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं उससे 2023 में ग्लोबल अर्थव्यवस्था मंदी की शिकार हो सकती है। मंदी के डर ने
नौकरीपेशा लोगों में और ज्यादा खौफ भर दिया है क्योंकि उनके दिलो-दिमाग से अभी तक कोविड के दौर की छंटनी की यादें गई नहीं हैं। वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि वर्तमान स्थिति को नहीं संभाला गया तो साल 2023 में दुनियाभर की इकोनॉमी के मंदी की चपेट आने की आशंका है। विश्व बैंक ने दुनिया भर के सभी देशों को हालात को सुधारने के लिए महंगाई को कम करने और उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ ही आपूर्ति में आ रही बाधाओं को दूर करने की सलाह के साथ चेतावनी देते हुए कहा है कि वर्ष 1970 की मंदी की रिकवरी के बाद अब दुनियाभर की अर्थव्यवस्था फिर से तेजी से मंदी की ओर बढ़ रही है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर में अगले वर्ष तक केंद्रीय बैंक, ब्याज दर में 4 फीसदी तक बढ़ोतरी कर सकते हैं। जो साल 2021 की तुलना में दो गुना हो जाएगी। गौरतलब है कि यूरोप के कई देश, अमेरिका, भारत तक के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर रहे हैं। वर्ल्ड बैंक ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा, विश्व की 3 सबसे बड़ी अर्थव्यस्थाएं अमेरिका, चीन और यूरोपीय देश सबसे तेज गति से आर्थिक सुस्ती की तरफ बढ़ रही हैं।
घातक होगी मंदी
विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक विकास मंद गति से आगे बढ़ रहा है, आने वाले समय में इसके और अधिक धीमा होने के आसार हैं। विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मलपास ने कहा ‘मेरी गहरी चिंता यह है कि ये रुझान लंबे समय तक चलने वाले परिणामों के साथ बने रहेंगे जो उभरते मार्केटों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लोगों के लिए विनाशकारी है।’
मंदी को लेकर चिंता
वर्ल्ड बैंक ने वर्ष 2023 में आर्थिक मंदी की आशंका व्यक्त की है।
केंद्रीय बैंक महंगाई घटाने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं।
इससे आर्थिक गतिविधियां धीमी हो सकती हैं।
आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार कम होने से मंदी का खतरा बढ़ सकता है।
मंदी से दुनिया भर में नौकरियां घटने का खतरा भी पैदा होगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी कंपनियां नौकरियों में छंटनी करेंगी।
भारत में नौकरियां घटेंगी, एक्सपोर्ट से जुड़े सेक्टर पर प्रभाव पड़ेगा।
मंदी का अधिक असर पश्चिमी देशों पर होगा।
भारत में आर्थिक रिकवरी की रफ्तार धीमी हो जाएगी।
घातक नतीजों का अंदेशा
कोविड के बाद उत्पादों की मांग बढ़ने और यूक्रेन-रूस युद्ध से एनर्जी, ईंधन और खाद्य पदार्थों के बढ़ते दामों ने महंगाई को बढ़ा दिया है। बढ़ती महंगाई अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए चुनौती बन गई है। इस चुनौती से निपटने के लिए दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दर बढ़ा कर इसे कम करने का प्रयास कर रहे हैं। अगर केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाई तो आर्थिक गतिविधियों का धीमा होना निश्चित है। इससे मंदी का खतरा और मंडरा जाएगा।
पिछली ग्लोबल मंदी 2008 में इनवेस्टमेंट बैंक लेहमैन ब्रदर्स के डूबने से शुरू हुई थी और लगभग दो साल तक पूरी दुनिया पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा था। यह अमेरिकी बाजार के सब- प्राइम क्राइसिस का परिणाम था। लेकिन इस बार अगर दुनिया की अर्थव्यवस्था दोबारा मंदी की चपेट में आ गई तो यह बेहद खतरनाक साबित होगी क्योंकि कोविड के बाद आर्थिक रिकवरी अभी भी पूरी रफ्तार नहीं पकड़ पाई है।