एक बार फिर भारत में बनी एक दवा सवालों के घेरे में हैं। अमेरिका के सेंटर फॉर डीजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) द्वारा इसे लेकर चेतावनी जारी की गई है। दरअसल अमेरिका में लोग सूडोमोनास ऑरूजिनोसा नाम के बैक्टीरिया के कारण होने वाली बीमारी का शिकार हो रहे हैं। यह बैक्टीरिया जांचकर्ताओं को एजरीकेयर की खुली बोतलों में मिला है। हालांकि अभी इस बारे में जांच की जा रही है कि बोतलों में मिला बैक्टीरिया ही लोगों को बीमार कर रहा है या संक्रमण कहीं और से आया है। लेकिन अमेरिका ने देरी न करते हुए अपने देश के लोगों से इस दवा को न इस्तेमाल करने की सलाह दी है। जिससे भारत में बनी यह दवा एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गई है।
अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारीयों के द्वारा सलाह दी गई है कि आँखों में डाली जाने वाली दवा जो कि भारत में बनाई गई है उसे फौरन बंद कर दिया जाए। अंदेशा लगाया जा रहा है कि इस दवा से एक खास तरह का इंफैक्शन हो रहा है। सेंटर फॉर डीजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन नामक विभाग द्वारा यह ऐलान किया गया है कि लोग “एजरीकेयर आर्टिफिशियल टियर्स” नाम की आई ड्रॉप का इस्तेमाल फौरन बंद कर दें। यह फैसला विभाग द्वारा तब लिया गया जब इस दवा से कई लोगों में इंफैक्शन देखने को मिले।
एजरीकेयर आर्टिफिशियल टियर्स नामक आई ड्रॉप से अब तक 55 से ज्यादा लोगों को इन्फेक्शन जैसी समस्याएं हुई हैं। इसके अलावा इस दवा से एक व्यक्ति की जान भी चली गई है। जांचकर्ताओं के कहने मुताबिक तकरीबन 12 राज्यों में फैले इस संक्रमण का असर रक्त ,पेशाब सहित फेफड़ो पर हो रहा है। मरीजों का कहना है कि उन्होंने जरीकेयर नामक दवा का इस्तेमाल किया था। जो किसी भी केमिस्ट से बिना डॉक्टर की पर्ची के खरीदी जा सकती है। यह दवा एक लुब्रिकेंट है जो आंखों में खुजली और ड्राईनेस को ठीक करने के लिए लिया जाता है।
12 राज्यों में फैला संक्रमण
गौरतलब है कि अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के स्वास्थ्यकर्मियों ने दो हफ्ते पहले ही इस दवा के बारे में चेतावनी जारी की थी। कैलिफॉर्निया, कोलोराडो, कनेक्टिकट, फ्लोरिडा, न्यू जर्सी, न्यू मेक्सिको, न्यूयॉर्क, नेवादा, टेक्सस, यूटा, वॉशिंगटन और विस्कॉन्सिन राज्यों में इस संक्रमण का असर मरीजों को हुआ है। जिसमें वॉशिंगटन में रहने वाले एक व्यक्ति की मौत हो गई जिसे इस दवा से ब्लड इंफेक्शन हुआ था। वहीं कम से कम पांच मरीज अपनी आंखों की रोशनी खो बैठे हैं।
सवाल यह भी उठ रहे हैं कि आँख में डाली जाने वाली दवा से रक्त में संक्रमण कैसे फैल सकता है। इसी तर्ज पर सीडीसी अधिकारियों का कहना है कि लोगों के लिए यह समझना मुश्किल है कि आंखों में डाली जाने वाली दवा से ब्लड इंफेक्शन कैसे हो सकता है। आंख का सीधा संबंध नाक से होता है। बैक्टीरिया आंखों से नाक में जा सकता है और वहां सांस द्वारा फेफड़ों में चला जाता है। वहां से यह किसी भी अंग को संक्रमित कर सकता है। लोगों में इस दवा से बढ़ते संक्रमण को लेकर भय बनता जा रहा है। संक्रमण के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया पर एंटीबैक्टीरियल दवाओं का असर नहीं हो रहा। हालांकि जांचकर्ताओं के मुताबिक एक नई एंटीबायोटिक सीफिडेरोकोल कुछ असरकारक दिखाई देती है।
न किया जाए दवा का इस्तेमाल कंपनी ने की अपील
कथित तौर पर दवा से बढ़ते संक्रमण को देखते हुए एजरीकेर ने कहा है कि उन्हें ऐसे किसी सबूत की जानकारी नहीं जो संक्रमण और दवा के बीच संबंध स्थापित करता हो। हालांकि कंपनी ने दवा को बाजार में भेजना बंद कर दिया है। इसके अलावा कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर एक नोटिस चस्पा कर लोगों से अपील की है कि इस दवा का इस्तेमाल न किया जाए। डी डब्लू की एक रिपोर्ट अनुसार कंपनी का कहना है कि हर संभव तरीके से लोगों से संपर्क किया जा रहा है ताकि उन्हें बता सकें कि उत्पाद का प्रयोग ना करें। एजरीकेयर के मुताबिक ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी है जो उसके लिए भारत में यह दवा बनाती है। इसकी फैक्ट्री तमिलनाडू में है और उसने भी अपनी वेबसाइट पर यह नोटिस जारी किया है कि दवा वापस ली जा रही है।
इससे पहले भी भारत पर लगाए गए आरोप
गौरतलब है कि एक साल के अंदर यह तीसरा मामला है जब देश में बनी किसी दवा की वजह से विदेशो में लोगों की जान जाने का आरोप लगाया गया है। इससे पहले गाम्बिया में दर्जनों बच्चों की मौत हुई थी जिसकी वजह भारत में खांसी के लिए बनाई गई दवा थी। इसके अलावा इंडोनेशिया में भी एक भारत-निर्मित दवा पर बच्चों की जान लेने का आरोप लगा है। जिसकी जांच विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की जा रही है।