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भारतीय मीडिया का ‘गोदीपन’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपनी बहुचर्चित यात्रा पर वाशिंगटन पहुंचे, तब भारतीय मीडिया के एंकर चीख- चीखकर इसे ऐतिहासिक यात्रा बता रहे थे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया, अमेरिकी कांग्रेस के दर्जनों सांसद और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पीएम मोदी के दौरे के बीच भारत में अल्पसंख्यकों के दमन को लेकर सवाल खड़े कर भारतीय मीडिया का ‘गोदीपन’ जगजाहिर कर दिया है

बीते 21 जून से 23 जून तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपनी बहुचर्चित यात्रा पर वाशिंगटन पहुंचे, तब भारतीय मीडिया के एंकर चीख-चीखकर इसे ऐतिहासिक यात्रा बता रहे थे, लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि उनके अमेरिका पहुंचने के साथ ही अमेरिकी कांग्रेस के सत्तर से अधिक सांसदों ने राष्ट्रपति बाइडन को नरेंद्र मोदी से भारत में लोकतंत्र के मानकों और मानवाधिकारों पर सवाल उठाने की बात भी कही। भले ही इस मुद्दे पर ‘अमेरिकी सरकार के व्हाइट हाउस के सुरक्षा सलाहकार जेट सुलिवन’ ने कहा, कि ‘जो बाइडन नरेंद्र मोदी को मानवाधिकारों के मुद्दे पर लेक्चर नहीं देंगे।’

आमतौर से अमेरिका में दोनों राजनीतिक दल ‘डेमोक्रेट और रिपब्लिकन’ में आपस में चाहे कितना भी मतभेद हो, मगर वे दोनों विदेश नीति जैसे मुद्दों पर एकजुट रहते हैं, लेकिन इस बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के बीच भारत में अल्पसंख्यकों के दमन पर एक बयान देकर एक नयी बहस की शुरुआत कर दी है। ग्रीस के दौरे पर गए बराक ओबामा ने अमेरिकी टेलीविजन नेटवर्क सीएनएन की पत्रकार क्रिस्टियानो अमनपोर के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘भारत अगर अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करता,तो इस बात की पूरी आशंका है कि किसी बिंदु पर जाकर वह टूटना शुरू हो जाएगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि, ‘राष्ट्रपति बाइडन को पीएम मोदी के साथ अपनी मुलाकात में एक बहुसंख्यक हिंदू राष्ट्र में अल्पसंख्यक मुस्लिमों की रक्षा के मुद्दे को उठाना चाहिए।’

ओबामा का यह बयान उस समय आया, जब पीएम मोदी अमेरिका के दौरे पर थे और उस समय राष्ट्रपति बाइडन के राजकीय मेहमान बनकर व्हाइट हाउस में टिके हुए थे। उनका यह बयान एक ओर तो अमेरिकी शासक वर्गों के आपसी अंतर्विरोधों को दर्शाता है, दूसरी ओर पश्चिमी जगत की आम राय को भी बताता है कि भारत में असहमतियों का दमन किया जा रहा है। अपने विरोधियों के अलावा पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है तथा इस प्रकार की नीतियां लागू की जा रही हैं, जिनके बारे में मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि वे मुसलमानों के प्रति भेदभावपूर्ण हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘व्हाइट हाउस’ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। व्हाइट हाउस की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो बाइडन भी मौजूद थे, उसमें एक पत्रकार ने जब यह सवाल किया कि ‘भारत में लोकतंत्र और मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।’ इसके उत्तर में नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘अमेरिका की तरह डेमोक्रेसी हमारे डीएनए में है। मानवाधिकार डेमोक्रेसी का आधार होता है। किसी भी चीज के वितरण में भेदभाव का सवाल ही नहीं उठता।’ राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी अमेरिका और भारत को दो महान लोकतांत्रिक देश बतलाया तथा कहा कि ‘दुनिया भर में हम लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।’

इसी दौरान अमेरिका में विभिन्न नागरिक संगठनों ने नरेंद्र मोदी की नस्लवादी नीतियों के खिलाफ सड़कों पर व्यापक प्रदर्शन किया, जिसमें महिला पहलवानों के यौन-शोषण तथा मणिपुर में लगातार हो रही हिंसा के मुद्दे भी शामिल थे।’
इसके अलावा डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख नेता बनी सैंडर्स, जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में अंतिम समय में नाम वापस लिया उन्होंने मोदी की आलोचना करते हुए ट्वीट किया, ‘प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने प्रेस और नागरिक समाज को नष्ट कर दिया है। अल्पसंख्यकों का दमन किया है, अपने राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाला है और आक्रामक हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर अल्पसंख्यकों के लिए कोई महफूज जगह नहीं छोड़ी है। बाइडन को मोदी से मुलाकात में ये सवाल उठाने चाहिए।
जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने देश में महाभियोग का सामना कर रहे थे। उस समय पीएम मोदी द्वारा उनकी भारत यात्रा के लिए तुरंत तैयारियां करवा दी गई थी। दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम वल्लभभाई पटेल स्टेडियम, जिसका नाम अब नरेंद्र मोदी के नाम पर हो गया है। वहां ट्रंप का जोरदार स्वागत किया गया। लेकिन भारत की राजधानी दिल्ली की उनकी यात्रा के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों की आंच अमेरिका के नागरिकों तक पहुंच गई।

मणिपुर में शांति बहाल को लेकर प्रदर्शन

वर्ष 2020 की तरह वर्ष 2023 में भी भारत का एक राज्य दंगों की आग में जल रहा है। बावजूद इसके पीएम मोदी में जी-7 की बैठक में मेहमान के रूप में जाने से नहीं रुके, जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन की घरेलू आर्थिक समस्या के चलते क्वाड बैठक कैंसिल हो चुकी थी। भारत के राज्य मणिपुर के हिंसा की आग में जलने की लपटें अमेरिका की सड़कों तक देखी जा रही हैं। लेकिन भारतीय गलियारों में सन्नाटा है। अमेरिका की सड़कों पर मणिपुर हिंसा के विरोध में मणिपुर मूल की प्रवासी महिलाओं, बच्चों और युवाओं द्वारा हाथों में तख्तियां लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं कि ‘पीएम मोदी चुप क्यों हैं’, ‘सेव मणिपुर’ और ‘हम मणिपुर में शांति चाहते हैं’ जैसी मांगों वाली तख्तियां लिए लोगों द्वारा उठाए जा रहे सवाल भारत की प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान लगा रहे हैं? चिंता की बात यह है कि अब तक 100 से अधिक मौतों के बाद भी पीएम मोदी ने मुंह खोलना तो दूर, मणिपुर को लेकर एक बार भी ट्वीट नहीं किया है। वहीं अमेरिका की सड़कों पर घूमता एक ट्रक तो चलता-फिरता अखबार बन गया है। इस पर अमेरिका में भारत में अंतरराष्ट्रीय महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों पर पीएम मोदी की पार्टी के सांसद बृजभूषण सिंह पर चुप्पी को दर्शाया गया है। रुब्तपउमडपदपेजमतव्प्दिकपं रुठतपरठीनेींदैपदही रुश्रनेजपबमक्मसंलमकश्रनेजपबमक्मदपमक जैसे हैश टैग के साथ इस ट्रक को न्यूयॉर्क की सड़कों पर देखा जा रहा है। यह ट्रक अर्जुन सेठी नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता का है जो इसके माध्यम से भारत की स्थिति को बताने का प्रयास कर रहे हैं।

पहलवानों के समर्थन में हैशटैग बृजभूषण कैंपेन

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर पीएम मोदी ने योग से लोगों को जोड़ने वाला बताकर खूब प्रचार किया। लेकिन कुछ लोग सवाल कर रहे हैं कि अगर योग से लोगों को जोड़ा जा सकता है तो आपने मणिपुर के लोगों को जोड़ने के लिए अभी तक एक भी प्रयास क्यों नहीं किया? अमेरिकी अखबार ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की पत्रकार सबरीना सिद्दीकी ने भी प्रधानमंत्री मोदी से भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बारे में सवाल करते हुए पूछा था कि ‘उनकी सरकार इस दिशा में सुधार के लिए क्या कदम उठाने पर विचार कर रही है।’ प्रेस कॉन्फ्रेंस के एक दिन बाद पत्रकार को मोदी से सवाल पूछने के लिए सोशल मीडिया पर कोसा जाने लगा और कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि वह पूर्व नियोजित तरीके से सवाल पूछ रही थी। इसके बाद से उन्हें ट्रोल किया जा रहा था। जिस पर अब व्हाइट हाउस द्वारा बयान दिया गया है कि सोशल मीडिया पर अमेरिकी पत्रकार पर हो रहे हमलों की हम निंदा करते हैं और यह ‘पूरी तरह से अस्वीकार्य’ है।

सीनेटर एवं/भ्वनेमश्रनकपबपंतलए /व्अमतेपहीजक्मउे की सदस्य कोरी बुश ने अपने ट्वीट में कड़ी आलोचना करते हुए कहा है, ‘प्रधानमंत्री मोदी का मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में शर्मनाक इतिहास रहा है, लोकतंत्र को ताक पर रखने और पत्रकारों को निशाना बनाने के मामले में मोदी और उनकी नीतियों से जिन समुदायों को आघात पहुंचा है, उनके साथ एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए मैं कांग्रेस की संयुक्त सभा के संबोधन का बहिष्कार करती हूं।’ एक अन्य महिला सांसद रशीदा तालिब के 20 जून के ट्वीट पर गौर करें, ‘यह शर्मनाक है कि मोदी को हमारी राष्ट्रीय राजधानी में मंच प्रदान किया जा रहा है-मानवाधिकारों के उल्लंघन, गैर लोकतांत्रिक गतिविधियों, मुसलमानों एवं अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और पत्रकारों पर प्रतिबंध का उनका लंबा इतिहास रहा है जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। मैं मोदी के कांग्रेस के संयुक्त संबोधन का बहिष्कार करती हूं।’ राष्ट्रपति के नाम लिखे पत्र में अमेरिकी सांसदों का स्पष्ट मत है कि भारत में राजनीतिक तानाशाही के बारे में विश्वसनीय रिपोर्टों की एक पूरी शृंखला से हम वाकिफ हैं। भारत में मानवाधिकारों पर विदेश मंत्रालय की 2022 की रिपोर्ट में राजनीतिक अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण को उल्लेखित किया गया है। इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के प्रश्न पर विदेश विभाग की 2022 की रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया है कि भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ धार्मिकता के आधार पर हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं।

अमेरिकी सांसदों ने कहा कि ‘रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत को अतीत में स्वतंत्र और जीवंत प्रेस के रूप में जाना जाता था, लेकिन आज प्रेस फ्रीडम के मामले में रैंकिंग में काफी गिरावट आई है।’ इतना ही नहीं, ‘एक्सेस नाउ’ के अनुसार, विश्व में सबसे अधिक इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत लगातार पांच वर्षों से शीर्ष स्थान पर बना हुआ है। पत्र के अंतिम में लिखा ‘हम अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करने के लिए आपके साथ हैं।’ हम भारत और अमेरिका के लोगों के बीच प्रगाढ़ संबंधों के हिमायती हैं। हम चाहते हैं कि ये रिश्ते आपसी हितों से बढ़कर साझे मूल्यों तक जाए। हम किसी विशिष्ट भारतीय राजनेता या राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करते हैं। यह काम भारत की जनता का है। लेकिन हम उन महत्वपूर्ण सिद्धांतों के पक्षधर हैं जिनमें अमेरिकी विदेश नीति का अहम हिस्सा होना चाहिए और हम जानना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ आपकी बातचीत में आप उन सभी महत्वपूर्ण सहयोगियों से बातचीत कर सकते हैं जो हमारे दो महान देशों के बीच के रिश्ते को सफल, मजबूत और लंबे समय तक चलने वाले संबंधों में शामिल करने में सहायक सिद्ध हो सकें।

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