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द्रुजबा से चिंतित भारत

रूसी और पाकिस्तानी सेनाओं के एक संयुक्त सैन्य अभ्यास ने भारत के सुरक्षा तंत्र को सचेत तो किया ही है, उसकी चिंताएं और बढ़ा दी है

पूरी दुनिया पिछले दो सालों से कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है। इस महामारी ने विश्व को आर्थिक मंदी की कगार पर ला खड़ा कर दिया है। लेकिन इस सबके इतर दक्षिण एशियाई क्षेत्र विश्व की महाशक्तियों के महासंग्राम ने एक नए शीतयुद्ध की दस्तक दे दी है। अब दक्षिण एशियाई क्षेत्र विश्व की महाशक्तियों के लिए एक महासंग्राम का अखाड़ा बन चुका है। एशियाई क्षेत्र में नए-नए क्षेत्रीय संगठनों के उदय और सैन्य गठबंधन और सैन्य अभ्यासों के चलते दक्षिण एशिया का क्षेत्रीय शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है। क्षेत्रीय अस्थिरता ने यहां एक नए संकट को जन्म दिया है। ऐसे में अफगानिस्तान में बदले हालातों के बीच पाकिस्तान और रूस में काफी नजदीकी देखी जा रही है। पाकिस्तान और रूस के बीच जारी सैन्य अभ्यास से सवाल फिर उठ रहा है कि क्या यह भारत के लिए खतरे की घंटी है?

रूसी और पाकिस्तानी सेनाओं के एक संयुक्त सैन्य अभ्यास ने भारत के सुरक्षा तंत्र को सचेत तो किया ही है, उसकी चिंताओं मेें भी इजाफा कर डाला है। इस सैन्य अभ्यास का नाम द्रुजबा-2021 है। यह युद्धाभ्यास रूस के क्रास्नोडार क्षेत्र में मोल्किनों रेंज में आयोजित किया गया है। इस सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेने के लिए पाक सेना की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के सैनिक कुछ दिन पहले ही मास्को पहुंचे है। दोनों सेनाओं के बीच यह युद्धाभ्यास 6 अक्टूबर तक चलेगा। इस युद्धाभ्यास से भारत की चिंता बढ़ी है। रूस और पाकिस्तान 2016 से संयुक्त अभ्यास-द्रुजबा का हर साल आयोजन करते हैं। रूस ने पहले कहा था कि भारत को पाकिस्तान के साथ उसके संबंधों को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। रूस ने कहा था कि मास्को, इस्लामाबाद के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि वह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का एक सदस्य है।

रक्षा विशेषज्ञों एवं विदेश नीति के जानकारों का कहना है कि भारत और रूस की बढ़ती दूरियां भारतीय रणनीति के लिहाज से बिल्कुल ठीक नहीं है। शीत युद्ध के दौरान से रूस, भारत के लिए बेहद अहम रहा है। दोनों देशों के बीच सामरिक और रणनीतिक बड़ी साझेदारी है। रूस ने कई मौकों पर भारत का खुलकर साथ दिया है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य को देखते हुए भारत के समक्ष अपने संबंधों को सहेज पाना एक बड़ी चुनौती है।
रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या की जड़ कहीं न कहीं चीन और पाकिस्तान में है। चीन जिस तरह से अपने आप को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश में जुटा है, उससे पूरे एशियाई क्षेत्र में एक नई चुनौती सामने आई है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। चीन की विस्तारवादी नीति से भारत समेत इंडो पैसिफिक देशों के समक्ष अपनी संप्रभुता को बचाए रखने की बड़ी चुनौती सामने आई है। चीन के इस वर्चस्व को खत्म करने के लिए, अब इस क्षेत्र में अमेरिका पूरी तरह से कूद गया है। अमेरिका ने अपना पूरा ध्यान चीन पर फोकस किया है।

हाल के दिनों में चीन की गतिविधियों पर नजर डालें तो यह साफ हो जाएगा कि चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे को लागू करने के लिए अपनी आर्थिक शक्ति का सहारा ले रहा है। चीन-पाकिस्तान इकनामिक कॉरिडोर परियोजना हो या दक्षिण चीन सागर, इंडो पैसिफिक और प्रशांत क्षेत्र में ड्रैगन की दिलचस्पी और वर्चस्व की होड़, इसने भारत समेत तमाम मुल्कों की संप्रभुता पर ही संकट उत्पन्न कर दिया है। उधर, मौजूदा रूस की स्थिति अब पूर्व सोवियय संघ की तरह नहीं है। वह अब उस तरह से शक्तिशाली नहीं रहा। रूसी राष्ट्रपति पुतिन अपनी आंतरिक राजनीति में भी व्यस्त है। ऐसे में सवाल यह है कि चीन पर लगाम कौन लगाए। चीन के वर्चस्व को खत्म करने के लिए अमेरिका का इस क्षेत्र में कूदना लाजमी है। भारत समेत चीन से पीड़ित अन्य मुल्क चाहे-अनचाहे अमेरिका के साथ शामिल हो चले हैं। यही कारण है कि हाल के दिनों में इंडो पैसिफिक क्षेत्र में कई छोटे संगठन अस्तित्व में आए।

‘क्वाड’ और ‘आकस’ जैसे नए सुरक्षा गठबंधन को इसी कड़ी के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। क्वाड में भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं। यह एक तरह से रणनीतिक गठबंधन है। इसी तरह से आस्ट्रेलिया और चीन के तनाव के बाद ‘आकस’ से जैसे सुरक्षा गठबंधन अस्तित्व में आया। इस सुरक्षा गठबंधन में आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल है। इस गठबंधन के बाद अमेरिका ने चीन के खतरे से निपटने के लिए आस्ट्रेलिया को परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बियां देने का ऐलान किया।

भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से देखे तो वर्ष 2009 के बाद दोनों देश एक दूसरे के निकट आए हैं। दोनों देशों के बीच मधुर संबंध कायम हुए। अमेरिका और भारत की यह दोस्ती रूस को रास नहीं आई। इसके बाद से रूस ने पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करना शुरू कर दिया। भारत के लाख विरोध के बावजूद रूसी सेना ने पाकिस्तान के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास का कार्यक्रम शुरू किया। इसके बाद रूसी विदेश मंत्री ने ऐलान किया था कि रूस पाकिस्तान को सैन्य हथियार भी मुहैया कराएगा। शीत युद्ध काल के इन दो विरोधियों के बीच आतंकवाद से लड़ने में सहयोग बढ़ाने और संयुक्त नौ सैन्य एवं भूमि अभ्यास करने पर सहमति भी बनी।
जिस तरह से दुनिया दो ध्रुवों में लामबंद हो रही है, ऐसे में यह कहना अतिरेक नहीं होगा कि विश्व एक नए शीत युद्ध की ओर आगे बढ़ रहा है। यह लड़ाई नंबर वन और टू बनने को लेकर है। चीन जिस तरह से महाशक्ति बनने की होड़ में आगे बढ़ रहा है, उससे वह दिन दूर नहीं कि वह अमेरिका को सामरिक रूप से सीधे चुनौती देगा। इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है। इसके रास्ते काफी हद तक तैयार हो चुके हैं।

इससे पहले सोवियत संघ के विघटन ने दुनिया को एक धु्रवीय बना दिया था। रूस और अमेरिका के बीच दशकों चले इस शीतयुद्ध ने दुनिया को एक अलग ढंग से सोचने के लिए बाध्य कर दिया था। इन दोनों के कोल्ड वार में छोटे देशों को खामियाजा भी भुगताना पड़ा। एक छोर कम्युनिस्ट का, दूसरा छोर साम्राज्यवादी सोच का।

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