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यूक्रेन पर हमला हुआ तो भारत रूस का साथ नहीं देगा :अमेरिका

रूस और यूक्रेन के बीच काफी समय से चल रही तनातनी और तेज हो गई है। हालत यह है कि दोनों देशों के बीच कभी भी युद्ध हो सकता है। जिसका असर दुनियाभर में दिखाई देने लगा है। इस बीच अमेरिका ने भारत से आशा व्यक्त की है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो इस सूरत में भारत अमेरिका के साथ खड़ा हो न कि रूस के साथ।

दुनिया के सामने एक तरफ जहां रूस दावा कर रहा है कि उसके कुछ सैनिक यूक्रेन सीमा के आस से युद्ध अभ्यास खत्म कर वापस लौट रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका कहना है रूस का ये दावा झूठा है। रूस यूक्रेन बॉडर्स के पास से सैनिक कम करने की बजाय सीमा पर लगभग 7 हजार अतिरिक्त रुसी सैनिकों की तैनाती कर दी है। रूस कभी भी यूक्रेन हमला कर सकता है। इसलिए अमेरिका को उम्मीद है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो भारत अमेरिका का समर्थन करेगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ‘अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने 16 फरवरी को कहा कि मेलबर्न में हाल ही में संपन्न क्वॉड मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान रूस और यूक्रेन पर चर्चा हुई है।जिसमें ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्री शामिल थे। उन्होंने कहा कि बैठक में शामिल देशों के बीच मजबूत सहमति बनी कि यूक्रेन संकट पर एक राजनयिक और शांतिपूर्ण समाधान की ज़रूरत है’।

इस बैठक में ही नेड प्राइस ने भारत को लेकर एक सवाल के जवाब में कहा है कि ‘क्वॉड के मुख्य सिद्धांतों में नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को मजबूत करना है। ये नियम-आधारित व्यवस्था यूरोप की तरह ही दुनिया में कही भी समान रूप से लागू होता है।’दुनिया जानती है कि भारतीय सहयोगी उस नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसमें एक सिद्धांत ये भी है कि देश की सीमाओं को बल प्रयोग द्वारा आपने देश में शांमिल नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने भारत सहित अपने पड़ोसियों के खिलाफ चीन के आक्रामक व्यवहार को लेकर आओनी बात कही है। उन्होंने कहा कि , ‘कोई भी बड़ा देश छोटे देशों को धमका नहीं सकते है। किसी भी देश के पास अपनी विदेश नीति होती है। उसके अनुसार वह अपना, भागीदार, गठबंधन, और समूह को चुनने का अधिकार है। ये सिद्धांत इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में समान रूप से लागू होते हैं। भारत, अमेरिका और कई अन्य महाशक्ति देश को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति को देखते हुए। एक स्वतंत्र, खुले और संपन्न हिंद-प्रशांत क्षेत्र की आवश्यकता के बारे में चोचना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक ,चीन लगभग सभी विवादित दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है। ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बना रखे हैं।

गौरतलब है कि,प्राइस ने कहा कि क्वॉड मीटिंग के दौरान अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रक्षा मुद्दों पर चर्चा की है। लेकिन जब उनसे ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेक्शन एक्ट’ के तहत भारत पर प्रतिबंध लगाने को लेकर सवाल किया गया तो वो जवाब देने से परहेज करते दीखते है। अमेरिका इस कानून को वर्ष 2017 में लेकर आया था। इस कानून के तहत अमेरिका उन देशों पर कार्रवाई करता है जो रूस के साथ रक्षा और खुफिया सौदा करते हैं। इसे लेकर जब प्राइस से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा है कि, ‘हमने व्यापक रक्षा संबंधों पर चर्चा की लेकिन मैं इससे आगे नहीं बताना चाहता हु।

ट्रंप प्रशासन के प्रतिबंधों को लेकर चेतावनी के बावजूद वर्ष 2018 में भारत ने पांच एस-400 मिसाइल सिस्टम को खरीदने के लिए रूस के साथ 5 अरब अमेरिकी डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किया था। इतना ही नहीं वर्ष 2019 में भारत ने मिसाइल सिस्टम के लिए रूस को लगभग 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर की पहली किश्त दी थी। जानकारी के मुताबिक,S-400 को रूस की सबसे उन्नत लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता है।

रूस पर अमेरिका को भरोसा नहीं

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,अमेरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस के बयान के एक दिन पहले अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने कहा था कि रूस संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अमेरिका सभी रास्ते तलाश रहा है। उनके बयान का जिक्र करते हुए प्राइस ने कहा है कि , ‘लेकिन हमारे प्रयास केवल तभी प्रभावी होंगे जब रूस पीछे हटने के लिए तैयार होगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,रूस जहां एक तरफ दावा कर रहा है कि वो अपने कुछ सैनिकों को यूक्रेन सीमा से वापस बुला रहा है वहीं इसको लेकर अमेरिकी का कहना है कि रूस ने सीमा पर लगभग 7 हजार अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती कर दी है। इसे लेकर प्रवक्ता प्राइस ने कहा है कि अमेरिका को रूस के सैनिकों के वापस हटने से जुड़े सबूत हमें नहीं मिले हैं। बल्कि रूस ने सैनिकों को और बढ़ाए है।

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