अमेरिकी राष्ट्रपति जिस अंदाज से काम कर रहे हैं उसे तानाशाही तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उससे कम भी नहीं है। हाल ही चीन से छेड़ी गई ट्रेड वार में चीन के हाथों मूकी खाने के बाद अब वह एक बार फिर ईरान के चक्कर में भारत, चीन और पाकिस्तान पर नजरे तरेर कर बैठा है। अमेरिका ने सभी देशों को ईरान से व्यवसायिक दूरी बनाने के लिए 4 नवंबर तक का समय दिया है और धमकी भरे अंदाज में कहा है कि जो इस बात को नहीं मानेंगे उन्हें इसके गंभीर परिणाम उठाने पड़ सकते हैं।
क्या है मुद्दा
साल 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्रं सुरक्षा परिषद के बीच हुए समझौते में ईरान ने परमाणु करार पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान पर प्रतिबंधों से राहत दी थी। इसके बाद अब 2018 में ट्रंप ईराक पर अपना दबदबा बनाए रखने की मंशा से इस परमाणु करार को तो रद्द करते है साथ ही आर्थिक रूप से ईराक को तोडने के लिए चीन और भारत जैसे बढ़े तेल आयातकों को अल्टीामेटम दिया कि अगर इन्होंने ईरान से तेल लिया तो इन देशों को भी कई आर्थिक प्रतिबंध झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए।
अमेरिकी सहयोगियों की प्रतिक्रिया
ईरान के साथ परमाणु करार करने वाले दूसरे देशों खासकर यूरोपियन नेताओं ने ट्रंप को कई बार इस प्रतिबंद को हटाने और करार न तोड़ने के बारे में समझाया लेकिन ट्रंप किसी भी हालत में ईरान के दांत खट्टे करना चाहते हैं। प्रतिबंधों की शुरूआत ट्रंप पहले ही कर चुके हैं और करार तोड़ने के साथ ही उन्होंने ईरान में काम कर रही विदेशी कंपनियों को निवेश बंद करने का आदेश दिया है और इसका पालन न करने पर भारी जुर्माने की भी धमकी दी है।
भारत की प्रतिक्रिया
इस पर विपक्ष मोदी सरकार को घेरने की योजना बना रहा है। इतना ही नहींं उसने पूछना भी शुरू कर दिया है कि क्या मोदी सरकार अमेरिका का हुक्म मानेगी और ईरान के साथ तेल कारोबार पर रोक लगा देगी। सरकार जवाब दे कि अगर वो ऐसा करती है तो उसका देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
इसके उलट भारत सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय अपनी कमर कस रहे हैं जिससे किसी भी परिस्थिति में देश पर इसका असर न पड़े। पेट्रोलियम मंत्रालय ने रिफाइनरी कंपनियों को निर्देश दे दिया कि वह इसका विकल्प भी खोजना शुरू करे। भारत इसके अलावा चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों के साथ मिलकर खरीदारों का एक ऐसा ग्रुप बनाने की तैयारी में है जो भविष्य में ऐसे किसी सी फैसले का सामना करने के लिए मजबूती से खड़ा रहे।
इसी बीच सारे दबावों के साथ भारत सरकार ने बयान दिया कि वह अमेरिका के किसी भी ‘एकतरफा प्रतिबंधों’ को नहीं मानता और वह अंतरराष्ट्रीय मसलों पर सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों को पालन करता है’।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
भारत और अमेरिका के रिश्ते और बीच में तेल का ये खेल अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर विचार विमर्श करने वालों के लिए बेहद रोमांचक विषय है। सूत्रो के अनुसार भारत ईरान का विकल्प ढूंढ तो रही है लेकिन सामने से आकर ऐसे एकतरफा प्रतिबंध न मानने की बात भी पूरी ताकत से कह रही है। ऐसे में भारत का रुख क्या होगा यह कहा जाना बहुत मुश्किल है।
ईरान के साथ तेल व्यापार रोक देना भारत के लिए बड़ी चुनौती नहीं है। वह चाहे तो दूसरे खाड़ी देशों से तेल लेकर इसकी पूर्ती कर सकता है। लेकिन भारत अगर ऐसा करता है तो उसको दो मुख्य समस्याएं आ सकती है पहली तो ये कि ईरान के साथ भारत के बहुत पुराने और मजबूत रिश्ते हैं। जो इस तरह के एक तरफा और आपसी रंजिश जैसे मामले में आहुति के तौर पर देना खुद में बड़ा नुकसान सरीखा है। दूसरा नुकसान यह होगा कि विश्वं पटल में प्रधानमंत्री मोदी ने जो एक सशक्त नेता की छवि बनाई है उसको बड़ा धक्का लगेगा और तेल का आयात ईरान के साथ रोकते ही ट्रंप मोदी के ज्यादा बड़ी सख्सियत बन जाएंगे।
दूसरी तरफ अगर ईरान का साथ देने के लिए भारत तैयार हो जाता है तो अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। इससे महंगाई बढ़ सकती है और कई नौकरियां भी जा सकती हैं।
भारत सरकार इस समय दो राहे में खड़ी है और कोई भी फैसला लेना उसके लिए आसान नहीं है क्योंकि आने वाला साल चुनावी साल है और वर्तमान सरकार को 2019 मे बने रहने के लिए प्रधानमंत्री की सशक्त छवि की जरूरत भी है और ऐसे काम की भी जिससे जनता को कष्ट न हो। अब 4 नवंबर तय करेगा कि भारत के संबंध अमेरिका से खराब होते हैं या ईरान के साथ।