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श्रीलंका के रूख पर सख्त भारत

तमिल भाषाई लोगों के प्रति श्रीलंकाई सरकार के रुख पर भारत ने सख्ती दिखाई है। संयुक्त राष्ट्र में तमिल अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के मुद्दे पर श्रीलंका को खरी-खरी सुना वैश्विक मंच पर भारत ने पहली बार श्रीलंका के प्रति ऐसा रुख अपनाया है। इस प्रतिक्रिया को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि हाल ही में भारत की कड़ी आपत्ति के बावजूद श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह में चीन का खुफिया जहाज उतरा था

कर्ज में गले तक डूबे श्रीलंका के बुरे वक्त में भारत पड़ोसी देश का फर्ज निभा रहा है लेकिन, तमिल भाषाई लोगों के प्रति श्रीलंकाई सरकार के रुख पर अब भारत ने सख्ती दिखाई है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के सत्र में भारत ने तमिल अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के मुद्दे पर श्रीलंका को खरी-खरी सुना डाली है। वैश्विक मंच पर भारत ने इस मुद्दे पर श्रीलंका के प्रति पहली बार ऐसा रुख अपनाया है। भारत सरकार की इस प्रतिक्रिया को इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि हाल ही में आपत्ति जताने के बावजूद श्रीलंका की धरती में चीन का खुफिया जहाज हंबनटोटा बंदरगाह में उतरा था। यह ऐसे वक्त में हुआ है जब एक महीने पहले ही भारत ने उसे डोर्नियर विमान दिया था। इसके अलावा गृहयुद्ध की चपेट में श्रीलंका के खाने के लाले पड़े, तब भारत ने अच्छे पड़ोसी का फर्ज निभाते हुए दिल खोलकर मदद की थी। ऐसे में श्रीलंका के प्रति भारत के रुख में बदलाव का कारण भारत की चिंताओं को नजरअंदाज कर श्रीलंका द्वारा चीन को तवज्जो देना बताया जा रहा है।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 51वें सत्र में श्रीलंका में समझौता, जवाबदेही, मानवाधिकार को बढ़ावा देने पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट पर एक चर्चा के दौरान भारत ने तमिल अल्पसंख्यकों का मुद्दा उठाया है। इस दौरान भारत ने कहा है कि भारत ने हमेशा मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिए राष्ट्रों की जिम्मेदारी में विश्वास किया है और रचनात्मक अंतरराष्ट्रीय संवाद और सहयोग द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों को आत्मसात किया है, लेकिन श्रीलंका ने तमिल मुद्दे के समाधान पर कोई प्रगति नहीं की है, जो चिंता का विषय है। भारत ने श्रीलंका की सरकार द्वारा तमिल अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के हनन पर सुस्त रवैया अपनाने की आलोचना करते हुए यह भी कहा है कि पड़ोसी देश में शांति और सुलह बेहद जरूरी है। इसके लिए देश में एक
राजनीतिक समाधान और संस्थाओं का मजबूत होना जरूरी है, ताकि वहां रह रहे लोगों के लिए न्याय, शांति, समानता और सम्मान सुनिश्चित किया जा सके। गौरतलब है कि श्रीलंका में कुल आबादी का करीब 18 फीसदी हिस्सा तमिल लोगों का है। इसमें से भी ज्यादातर भारतीय मूल के हैं। पिछले कुछ महीनों से गृहयुद्ध और अब भीषण आर्थिक संकट झेल रहे श्रीलंका में तमिल भाषाई लोग खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। श्रीलंकाई सरकार द्वारा कोई राहत न दिए जाने को लेकर भी तमिल भाषाई लोगों में सरकार के प्रति रोष है।

चीन के चंगुल में श्रीलंका
बीते 16 अगस्त को चीन का खुफिया जहाज युआन वांग 5 श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह में उतरा था। इस मुद्दे पर न सिर्फ भारत बल्कि अमेरिका ने भी चिंता जताई थी। राजनीतिक विश्लेषकों और कई देशों का कहना है कि चीन श्रीलंका के सहारे हिंद महासागर में अपनी पैठ बनाना चाहता है। चीन का जो जहाज श्रीलंका की धरती में उतरा था उसे जासूसी जहाज कहा जाता है। इस जहाज का निर्माण समुद्री सर्वेक्षण करने और हिंद महासागर में पनडुब्बी से जुड़े ऑपरेशन को करने के लिए किया गया था।

श्रीलंका के प्रति क्यों बदला भारत का रुख
भारत ने किसी मामले में श्रीलंका की शिथिलता या उसकी कार्रवाइयों को खारिज करने का यह पहला कदम उठाया है। श्रीलंका के मानवाधिकार के मुद्दे पर भारत पहले से ही अपनी चिंता जाहिर करता रहा है, श्रीलंका के मुद्दे पर भारत के मुख्य रूप से दो मौलिक विचार हैं। पहला यह कि श्रीलंकाई तमिलों के लिए न्याय, उनकी मर्यादा और शांति की मांग पर भारत जोर देता रहेगा और दूसरा यह कि श्रीलंका की एकता, स्थिरता और क्षेत्रीय अखंडता अक्षुण्ण रखने में भारत मदद करता रहेगा। भारत सरकार ने इस मौके पर चीन को भी काफी खरी-खोटी सुनाई है। भारत ने कहा है कि हिंद महासागरीय देशों के आर्थिक संकट बताते हैं कि कर्ज आधारित अर्थव्यवस्था की सीमाएं क्या होती हैं और वहां के लोगों के जीवन स्तर पर कितना नकारात्मक असर पड़ता है। इस वर्ष अकेले भारत ने श्रीलंका को संकट से उबरने के लिए 3.8 अरब डॉलर की मदद की है। गौर करने वाली बात यह है कि खुफिया पोत को हंबनटोटा में लंगर डालने की अनुमति श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के कार्यकाल में दी गई थी। दोनों देशों ने इस डील को काफी गुप्त रखा था। जब भारत को यह बात पता चली तो उसने श्रीलंका की सरकार से स्पष्टीकरण मांगा और तब दुनिया को इस बारे में जानकारी मिल पाई।

चीनी जासूसी जहाज से बिगड़ा समीकरण
बीते 16 अगस्त को चीन का खुफिया जहाज युआन वांग 5 श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पहुंचा था और वहां 22 अगस्त तक रहा। ऐसा तब हुआ जब भारत इस पर कड़ी आपत्ति जता चुका था। भारत के विरोध के बाद श्रीलंका ने चीन से इस जहाज को श्रीलंका क्षेत्र में न आने का आग्रह किया था। फिर श्रीलंका ने भारत से बातचीत की और जानना चाहा कि आखिर चीनी जहाज से भारत को क्या खतरा है। भारत ने श्रीलंका को चीनी जहाज को लेकर अपनी आपत्तियों को विस्तार से समझाया कि चीन ने इस जासूसी पोत का निर्माण इस लिहाज से किया है कि वह समुद्री सर्वेक्षण करने के नियत से किया है ताकि हिंद महासागर में पनडुब्बी से जुड़े ऑपरेशनों को धार दी जा सके। 400 चालकों के भारी-भरकम दल से युक्त युआन वांगग 5 में एक बड़ा ट्रैकिंग एंटीना और अत्याधुनिक सेंसर लगा हुआ है। इनके उपरकणों की मदद से वह भारत के दक्षिणी हिस्से में सैन्य गतिविधियों और ढांचागत परियोजनाओं का बेहद बारीकी से विश्लेषण कर सकता है। इतना ही नहीं, चीन की यह टोही जहाज सैटेलाइट्स और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों को भी ट्रैक करने में सक्षम है। श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट से ओडिशा तट पर भी नजर रखी जा सकती है जहां भारत का मिसाइल टेस्टिंग प्लेटफॉर्म है।

इस मामले पर अमेरिका ने कहा था कि चीन का यह जहाज खुफिया तकनीकों से लैस है और वह अवैध तरीके से दूसरे देशों में दखल देता है। अमेरिका ने कहा कि युआन वांग 5 हिंद महासागर के एक बड़े इलाके में मिसाइल और सैटेलाइट की गतिविधियों को ट्रैक करने में सक्षम है, इसलिए उसे हंबनटोटा में ठहरने नहीं दिया जाए। तब श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल नलिन हेराथ ने कहा था कि चीनी जहाज हंबनटोटा पोर्ट पर ऑयल फिलिंग के लिए रुकेगा और फिर हिंद महासागर के लिए रवाना हो जाएगा। वहीं, चीन की तरफ से भी प्रतिक्रिया आई और उसने कहा था कि हंबनटोटा में उसके जहाज का डेरा डालना एक सामान्य प्रक्रिया है। इसके जरिए दूसरे देशों की खुफिया जानकारी जुटाने की उसकी कोई मंशा नहीं है।

गौरतलब है कि वर्ष 2014 में भी श्रीलंका के बंदरगाह पर जासूसी करने के लिए चीनी उपकरण आया था, जिसके बदले में श्रीलंका को चीन ने आर्थिक मदद की थी। अब श्रीलंका फिर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, इसलिए उसने फिर से भारत की नाराजगी के बावजूद चीनी के टोही जहाज युआन वांग 5 को हंबनटोटा में खुली छूट देते हुए कहा था कि चीनी टोही जहाज युआन वांग 5 हंबनटोटा से कोई रिसर्च का काम नहीं करेगा।

श्रीलंका की इन बातों को खारिज करते हुए भारत के प्रमुख कूटनीतिक विश्लेषकों में एक ब्रह्म चेलानी ने कहा था कि आर्थिक रूप से कंगाल श्रीलंका ने चीन के जहाज को हंबनटोटा में डेरा डालने की अनुमति देकर भारत को कूटनीतिक चाटा मारा है। श्रीलंका का यह रुख इसलिए भी भारत को नाराज कर रहा है, क्योंकि भारत ने 15 अगस्त को ही श्रीलंका को अपनी टोही हवाई जहाज डोर्नियर दिया था।

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