[gtranslate]
world

मध्य एशियाई मुल्कों के साथ संबंधों को मजबूती देने में जुटा भारत 

किसी भी देश की विदेश नीति इतिहास से गहरा संबंध रखती है। भारत की विदेश नीति भी इतिहास और स्वतंत्रता आंदोलन से संबंध रखती है। ऐतिहासिक विरासत के रूप में भारत की विदेश नीति आज उन अनेक तथ्यों को समेटे हुए है जो कभी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से उपजे थे। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व व विश्वशान्ति का विचार हजारों वर्ष पुराने उस चिन्तन का परिणाम है जिसे महात्मा बुद्ध व महात्मा गांधी जैसे विचारकों ने प्रस्तुत किया था। लेकिन पिछले कुछ समय से पड़ोसी मुल्कों के साथ बढ़ती गरमाहट के चलते भारत दुनिया के मुल्कों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है। खासकर मध्य एशियाई देशों को लेकर भी ऐसा ही रुख अपनाने की कोशिशों में जुटा है। माना जा रहा है कि इन देशों के साथ रिश्तों को और पुख्ता करने के लिए आगामी गणतंत्र दिवस समारोह में मध्य एशियाई देशों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित किया जा सकता है।

 

दरअसल ,भारत के सामने  एक तरफ पाकिस्तान है तो दूसरी ओर चीन है। पाकिस्तान चीन के साथ मिलकर भारत के साथ जंग की साजिश करता रहता है। चीन की विस्तारवादी नीति विश्व के लिए एक बडा खतरा है। दुनिया के अधिकांश देश अब चीन की इस मंशा से वाकिफ हैं। एशिया महाक्षेत्र में बीते कुछ दशकों में चीन ने अपनी विस्तारवादी एजेंडे को जिस तरह बढ़ाया है और इसके लिए उसने जो दमनकारी नीति व आर्थिक प्रलोभन देने का जो जाल बुना है, वह अब पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गई है।

चीन रह-रह कर सीमा पर एलएसी की वास्तविक स्थिति में बदलाव करने का प्रयास करता रहता है। यही वजह है कि आगामी गणतंत्र दिवस समारोह के लिए भारत सरकार मध्य एशियाई देशों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित करने की संभावनाएं तलाश रही  है।

भारत सरकार इस कदम से इनके साथ संबंध और मजबूत करना चाहती है। माना जा रहा है कि यह कदम इन देशों में भारत की छवि और बेहतर बना सकता है। इस घटनाक्रम के बारे में जानकारी रखने वाले जानकारों के मुताबिक इस बार गणतंत्र दिवस के दिन मुख्य अतिथि के तौर पर उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिज गणराज्य और ताजिकिस्तान के नेताओं को बुलाने के विकल्प पर चर्चा हो रही है। हालांकि उन्होंने कहा कि अतिथि पर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है और अन्य विकल्पों पर भी चर्चा की जा रही है।

इससे पहले 2018 के गणतंत्र दिवस समारोह में भारत ने आसियान  या दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था और सभी समारोह में शामिल हुए थे। बीते कुछ वर्षों से भारत ऊर्जा समृद्ध मध्य एशियाई देशों के साथ हर क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है और संबंधों को मजबूत करने में जुटा हुआ है।

इस क्षेत्र के साथ भारत की गतिविधियों में इजाफा जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच देशों की यात्रा के बाद देखने को मिला है। इसके परिणाम स्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार भी हुआ था। इसके अलावा अफगानिस्तान में बने हालात ने भी इस युद्धग्रस्त देश से सीमा साझा करने वाले ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान का महत्व बढ़ाया है।

इस साल गणतंत्र दिवस पर कोई मुख्य अतिथि नहीं था। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। उन्होंने निमंत्रण स्वीकार भी किया था लेकिन बाद में कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी आने के बाद उन्होंने यह यात्रा  रद्द कर दी थी। । साल 2019 में ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो मुख्य अतिथि रहे थे।

गौरतलब है कि मध्य एशिया के साथ संबंधों को और अधिक घनिष्ठ बनाने के लिए भारत द्वारा नए सिरे से प्रयास किया जाना अहम हो गया है। यह न केवल सुरक्षा, रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि अफगानिस्तान के साथ भारत के दीर्घकालिक संबंधों को देखते हुए का एक महत्वपूर्ण तत्व भी है। तालिबान की पीठ पर सवार होकर जैसे- जैसे अफगानिस्तान में पाकिस्तान का प्रभाव बढ़ रहा है,भारत को अफगानिस्तान के भीतर और साथ ही साथ ईरान, रूस और मध्य एशिया के साथ भी अपने संबंधों को और मजबूत करना होगा।

You may also like

MERA DDDD DDD DD