इजरायल इन दिनों एक साथ दो-दो मोर्चें संभालने में लगा हुआ है। एक ओर जहां इजरायल और लेबनान के बीच जंग के आसार बढ़ते जा रहे हैं ,वहीं दूसरी तरफ संयुक्त महासभा में प्रस्ताव पास किया गया है, कि इजरायल एक साल के अंदर कब्जे वाले फिलस्तीन क्षेत्र में अपनी अवैध उपस्थिति समाप्त करे। हालांकि इस प्रस्ताव से भारत ने दूरी बनाये रखी है।
193 वाले संयुक्त राष्ट्र महसभा में इस प्रस्ताव के पक्ष में 124 देशों ने तो इसके विरोध में 14 देशों ने मतदान किया है । इजराइल और अमेरिका उन देशों में शामिल थे जिन्होंने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान दिया है। खबरों के अनुसार यूके ने दो-राज्य समाधान का समर्थन करने के बावजूद मतदान में हिस्सा नहीं लिया। जबकि जापान ने इस प्रस्ताव के पक्ष में अपनी रूचि दिखाते हुए मतदान किया है। जापान का कहना है कि वो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और उसके काम को बहुत महत्व देता है। जापान के अनुसार इजरायल की बस्तियों की गतिविधियां दो-राज्य समाधान की प्रगति को कमजोर कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलीस्तीन की ओर से तैयार किए गए प्रस्ताव में इजराइल सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के तहत अपने दायित्वों की अवहेलना किए जाने की कड़ी निंदा की गई है। साथ ही यह भी कहा गया है कि इजराइल को कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून के किसी भी उल्लंघन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
भारत क्यों रहा प्रस्ताव से दूर
43 देशों ने इस प्रस्ताव से अपने आपको दूर रखा है। मतदान में भाग नहीं लेने वाले देशों में भारत समेत ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, इटली, नेपाल, यूक्रेन और ब्रिटेन जैसे देश शामिल हैं। दक्षिण एशिया में नेपाल के अलावा सिर्फ़ भारत रहा जो इस वोटिंग में शामिल नहीं हुआ। ऐसे एक सवाल उठता है आखिर भारत ने इस प्रस्ताव से दूरी क्यों बनाई ? संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने भारत द्वारा इस तरह की दूरी बनाए रखने को लेकर कहा है कि ”दुनिया इस संघर्ष को 11 महीने से देख रही है। इस कारण बच्चों महिलाओं समेत हज़ारों लोगों की मौत हुई। इस मामले भारत का स्पष्ट रुख बताते हुए उन्होंने कहा कि ‘हम इसराइल पर सात अक्तूबर को हुए आतंकी हमले की निंदा करते हैं। नागरिकों के मारे जाने की निंदा करते हैं,हम तत्काल सीज़फायर और बंधकों को छोड़े जाने की मांग करते हैं’। हरीश के कहने अनुसार वोटिंग में भारत इसीलिए अनुपस्थित रहा क्योकि हम बातचीत और कूटनीति की वकालत करते रहे हैं। हम मानते हैं कि इस संघर्ष को ख़त्म करने का और कोई रास्ता नहीं है ,इस संघर्ष में कोई विजेता नहीं है।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अपनी स्पीच के दौरान कहा कि हमारी साझा कोशिश ये होनी चाहिए कि दोनों पक्ष पास आएं। हमें जोड़ने का काम करना चाहिए न कि बाँटने का। भारत का मानना है कि शांति लाने के लिए असल प्रयास किए जाने की ज़रूरत है। पर्वतनेनी हरीश के अनुसार भले ही भारत अभी इजरायल के खिलाफ वोटिंग से दूर रहा है लेकिन अतीत में कई बार भारत इजरायल के खिलाफ मतदान में शमिल रहा है। पिछले साल नवंबर में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया, जिसमें कब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइली बस्तियों की निंदा की गई थी। इसके अलावा हमास-इसराइल के बीच युद्ध शुरू होने से पहले अप्रैल 2023 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा प्रस्ताव लाया गया था। जिसमें 1967 के बाद से क़ब्ज़े वाले इलाक़ों को छोड़ने, नई बस्तियों को बसाने से रोकने के लिए कहा गया था। भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में भी वोट किया था।
आईसीजे द्वारा इजरायल के खिलाफ जारी की गई एडवाइजरी
संयुक्त महासभा में पारित इस प्रस्ताव में अंतराष्ट्रीय न्यायलय (आईसीजे ) द्वारा जुलाई में दी गई एडवाइजरी का भी स्वागत किया गया है। आईसीजी के कहने अनुसार फिलिस्तीनी क्षेत्रों और बस्तियों पर इजरायल का कब्जा अवैध है और इन्हें खाली किया जाना चाहिए। अंतराष्ट्रीय न्यायलय ने कहा था कि यह काम जितनी जल्दी हो सके किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि पिछले साल 7 अक्टूबर से शुरू हुए इस युद्ध में दिन पर दिन दोनों देशों की स्थिति इस युद्ध से बदतर होती जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का कहना हैं कि इस युद्ध से ,मानवाधिकारों का उलंघन हो रहा है।