world

तालिबानी अफगानिस्तान में बढ़ती ‘बच्चाबाजी’

  •     प्रियंका यादव

यौन इच्छाओं की पूर्ति तथा मनोरंजन के लिए अफगानिस्तान में अनादिकाल से ‘बच्चाबाजी’ की कुप्रथा को सामाजिक मान्यता रही है। 1996 में तालिबान ने अपनी पहली सत्ता के दौरान इसे शरिया कानून के खिलाफ बताते हुए प्रतिबंधित कर इसके दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया था। 2022 में लेकिन दोबारा सत्ता में आने के बाद तालिबान के सुर बदल गए हैं। तालिबानी लड़ाकों पर बच्चाबाजी के आरोप सामने आने के बाद अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं की चिंता में इजाफा होने लगा है

जब से तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा हुआ तभी से लोगों में डर और असुरक्षा की भावना जागने लगी थी जो अब दिखने भी लगी है, न तो महिलाएं सुरक्षित हैं न बच्चे। जहां महिलाओं को चार दीवारी में जिंदगी बिताने के लिए मजबूर किया जा रहा है वहीं बच्चों का शोषण और भी बढ़ गया है। इन प्रतिबंधों के साथ ही कई तरह की कुप्रथाओं को बढ़ावा मिलने लगा है। जिनमें से एक कुप्रथा है बच्चाबाजी। जिसका शाब्दिक अर्थ है खेलने के लिए एक लड़का। अफगानिस्तान में बच्चाबाजी दस शताब्दियों से अधिक समय से एक परंपरा रही है। यह कूप्रथा केवल अफगान में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, ईरान जैसे कई मुल्कों में प्रचलित है। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई जिसमें कम उम्र लड़के अफगान लड़ाकों के मन बहलाव के लिए डांस करते नजर आ रहे हैं।

बच्चा बाजी प्रथा के नाम पर 8 से 16 साल के किशोरों का प्रयोग कथित तौर पर अफगानिस्तान में शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग, पुलिस, सेना, तालिबान लड़ाकों द्वारा अपने मन बहलाव व यौन संतुष्टि के लिए किया जाता रहा है। इस कुप्रथा का प्रचलन अफगान शासन और तालिबान शासन दोनों में रहा है। हालांकि यह दोनों ही शासनों के दौरान प्रतिबंधित थे। मन बहलाव व यौन गुलाम के लिए ऐसे बच्चों को लिया जाता है जिनके दाढ़ी के बाल भी नहीं आए होते जिन्हें लड़कियों की तरह साज सवारकर नचवाया जा सके।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसे कम उम्र के बच्चे इन तालिबान लड़ाकों, शक्तिशाली व समृद्ध वर्ग को कहां से मिलते हैं? अफगान जानकारों का मानना है कि ज्यादातर ऐसे बच्चों को उनकी गरीबी का फायदा उठा या फिर डरा धमकाकर खरीद लिया जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि तालिबान राज में अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से डगमगाई हुई है। महंगाई अपने चरम पर है। ऐसे में बच्चे इस कुप्रथा का शिकार आसानी से हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त बच्चों को अगवा कर या फिर उनकी मजबूरियों का फायदा उठा, उन्हें पढ़ाई लिखाई व अच्छा जीवन देने का लालच देकर बाल वेश्यावृति के इस दलदल में धकेला जा रहा है।

अफगानिस्तान लंबे समय से ही युद्ध और उसके परिणामों के चलते संघर्ष की स्थिति में रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार संघर्ष की स्थितियों की वजह से बच्चों के शोषण और यौन हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। वे बलात्कार, जबरन वेश्यावृत्ति, तस्करी तथा अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति संवेदनहीन हो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इसी साल चिल्ड्रेन एंड आर्म्ड कनफ्लिक्ट के नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें माना गया कि बच्चों का शोषण लगातार बढ़ रहा है, लेकिन अभी तक इस पर कोई सख्त एक्शन नहीं लिया गया है। मौजूदा समय में तालिबान-शासित अफगानिस्तान में समलैंगिकता पर कड़ी सजा है, इसके बाद भी के मामले सामने आते हैं। 21वीं सदी में तालिबान सत्ता आने के बाद यह कुप्रथा और भी तेजी से प्रचलन में आ गई है।

इसके आड़ में न जाने कब से बच्चों का शारीरिक मानसिक शोषण होता रहा है। इन कम उम्र के बच्चों को यौन गुलाम बनाकर रखा जाता है। इस दौरान ज्यादातर बच्चे यौन संबंधित बीमारी के शिकार हो जाते हैं। उन्हें नशे की लत लग चुकी होती है। जब ये बच्चे पुरुषों की तरह दिखने लगते हैं इनकी दाढ़ी आ जाती है तो इन्हे छोड़ दिया जाता है। जिसके बाद इन्हे  परिवार वाले स्वीकार नहीं करते और समाज भी इन्हे  स्वीकार्यता की दृष्टि से नहीं देखता। ऐसे में कई बच्चे नशे के कारोबार में लग जाते हैं, या छिप कर यौन सर्विस देते हैं। या फिर तालिबान सेना में भर्ती हो जाते हैं। नब्बे के दशक में तालिबान द्वारा इस प्रथा को समलैंगिकता की श्रेणी में रखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन आगे चलकर तालिबान के लडाके खुद इससे जुड़ते चले गए।

मन बहलाव के लिए महिला डांसरों की तरह मेकअप की ट्रेनिंग दे बच्चों को डांस सिखाया जाने लगा। किसी महिला डांसर की तरह उन्हें सजाया सवारा जाता। ऐसे लड़के सिल्क के कपड़े पहनते और नंगे पांव नाचा करते। ऐसे बच्चों के बाल महिलाओं की तरह लंबे रखे होते। भौंहों को बेहद काले रंग से रंगा जाता था। ये मेकअप इनकी पहचान बन गया। जिसके बाद शोषण का दौर शुरू हो जाता है। इस प्रथा के अंतर्गत नाचने वाले बच्चों को ‘बच्चा बेरीश’ कहा जाता है। गौरतलब है कि इस कुप्रथा पर क्लोवर फिल्म और अफगान पत्रकार नजीबुल्लाह कुरैशी द्वारा एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गई है। जिसका नाम है ‘द डांसिंग बॉयज ऑफ अफगानिस्तान’ है।

जो लोग बच्चे बेरीश रखते हैं उन्हें काफी समृद्ध माना जाता है। इस परंपरा में लड़कों को पैसे के लिए शादियों या निजी पार्टियों में नाचने के लिए आमंत्रित करना शामिल है। प्रभावशाली व्यक्तियों और पूर्व सरदारों के अपने लड़के होते हैं – आमतौर पर बहुत आकर्षक, युवा और शारीरिक रूप से स्वस्थ। देश के कुछ हिस्सों में सुंदर लड़का होना स्टेटस सिंबल माना जाता है। दैनिक भास्कर की सात वर्ष पहले के एक खबर अनुसार
अफगानिस्तानी फोटो ग्राफर बारात अली बत्तूर ने बच्चेबाजी में शामिल ऐसे वयस्क लड़कों की रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में दस्तावेजीकरण किया है जिनकी अब उनके मालिकों को जरूरत नहीं थी। बच्चा बेरीश जब वयस्क हो जाते हैं तब इन्हंे रिहा कर दिया जाता है। उन्हें ‘मर्दाना’ जीवन शैली जीने की अनुमति है। लेकिन बच्चाबाजी प्रथा में शामिल होने के चलते समाज उन्हें अस्वीकार्यता की दृष्टि से देखता है। अली बत्तूर अनुसार अफगानी बाजार में बच्चा बाजी डांस डिस्क की काफी मांग है।

वर्ष 2017 में अफगानिस्तान में बच्चाबाजी को अवैध घोषित किया गया था और इसपर सात साल की सजा तय हुई। जिसके बाद अफगानिस्तान में ऐसे मामलों को दबाया जाने लगा। साल 2004 से 2021 तक शासन में रहे इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के सुरक्षा अधिकारियों के कहने अनुसार ऐसी प्रथाओं को समाप्त करने में वे असमर्थ थे, बच्चाबाजी में शामिल कई लोग शक्तिशाली और अच्छी तरह से हथियारों से लैस सरदार हैं। गैर कानूनी होने के बावजूद भी इन मामलों को नहीं रोका गया। पुलिस कथित तौर पर इनसे संबंधित मामलों में शामिल होती थी। ध्यान देने योग्य है कि अफगानी फोटोग्राफर अनुसार भी काबुल शहर के एक व्यस्त चौराहे पर उसने एक पुलिसकर्मी को देखा जो एक किशोर को जोश से गले लगा रहा था और किशोर उससे दूर जाने की कोशिश कर रहा था। जब वह किशोर के पास गया तो उसने देखा कि वह एक लड़की की तरह बोलता और चलता था।

वर्ष 1996 में तालिबान शासन के दौरान भी समलैंगिकता के साथ-साथ बच्चाबाजी पर प्रतिबंध लगाया गया था। बच्चाबाजी शरीयत कानून के तहत गलत है। साल 2021 में तालिबान के पुनः शासन के बाद भी बच्चाबाजी पर प्रतिबंध जारी रहा। हालांकि तालिबान लड़ाके इस प्रथा पर रोक लगाने की बजाय इसका खुद लुफ्त उठा रहे हैं। ऐसे मामलों के बढ़ने का एक कारण यह भी है कि तालिबान शासन में अफगान में महिलाओं को घर में रखने का चलन है और समलैंगिकता प्रतिबंध थी, लिहाजा मनोरंजन के नाम पर छोटे लड़के शिकार बनने लगे हैं। 2014 में प्रकाशित एक अध्ययन अनुसार बच्चाबाजी लड़कों को रखने वाले 78 फीसदी अफगान पुरुषों की शादी एक महिला से होती है। कुछ अफगानों का मानना है कि बच्चाबाजी इस्लामिक कानून का उलंघन नहीं करती क्यांेकि इस्लाम केवल एक आदमी को दूसरे आदमी के साथ यौन संबंध बनाने से मना करता है लेकिन किसी लड़के के साथ नहीं। पिछले साल अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य अमेरिका की सैन्य वापसी और तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद, यह बताया गया कि बच्चांे के साथ दुर्व्यवहार जारी रहा है, तालिबान अधिकारी मोटे तौर पर बच्चाबाजी में लगे हुए हैं।

गौरतलब है कि तालिबान के कट्टर कानूनों के कारण उनके भविष्य पर भी संकट गहराने लगा है। तालिबानियों के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद वहां की पूरी पृष्ठभूमि ही बदल गई है। खासतौर पर महिलाओं की आजादी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। लोगों के मन में डर घर करने लगा है कि आने वाले समय में अफगानिस्तान में कई कुप्रथाओं का जन्म हो जाएगा लेकिन अफगानिस्तान में इससे पहले से ही एक कुप्रथा चली आ रही है, जिसे बच्चाबाजी के नाम से जाना जाता है। इसका विरोध पूरी दुनिया में होता रहता है लेकिन ये आज के इस आधुनिक युग में भी जारी है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD