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म्यांमार में मानवाधिकारों का हनन

लोकतंत्र बहाली की मांग कर रही जनता पर सेना ने जुल्म की इंतेहा कर डाली है। आंदोलनकारी जनता का मनोबल तोड़ने के लिए मासूम बच्चों तक को गोली मारी जा रही है

म्यांमार में तख्तापलट के बाद से सेना और जनता के बीच जंग जारी है। सेना देश पर शासन चाहती है, तो जनता सैनिक शासन को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। लोग लोकतंत्र की बहाली के लिए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, मगर सेना उनकी आवाज दबाने में जुटी हुई है। म्यांमार का कोई शहर ऐसा नहीं जहां पुलिस और सेना आंदोलनकारी जनता पर बर्बरता न कर रही हो। लेकिन जनता का मनोबल वैसे का वैसा है। जनता का मनोबल बढ़ता देख सेना भी अब नरसंहार पर उतर आई है। जनता का मनोबल सेना के सामने अब चुनौती बनता जा रहा है। नतीजा यह है कि जनता का मनोबल तोड़ने के लिए सेना अब मासूम बच्चों को तक नहीं बख्श रही है।

सेना के जुल्म की इंतेहा यह है कि एक तरफ जहां देश की सड़कें प्रदर्शनकरियों के खून से सनी हैं, तो वहीं जिन बच्चों को सत्ता, लोकतंत्र की समझ नहीं है उन्हें भी मौत दी जा रही है। सेना की बर्बरता ने अब सारी हदें पार कर दी हैं। अभी सात साल की मासूम बच्ची को भी सेना के खूनी खेल का शिकार हुई है। सेना की निर्मम कार्रवाई की शिकार होने वाली वह सबसे कम उम्र की पीड़ित है। बच्ची की मौत की पुष्टि स्थानीय लोगों द्वारा की गई है।

घर को सबसे सुरक्षित जगह माना जाता है लेकिन म्यांमार की स्थिति ये है कि घर में भी कोई सुरक्षित नहीं है। बच्ची की हत्या मांडलेशहर में उसके घर पर हुई जब वह अपने पिता की गोद में बैठी थी। अब तक सेना ने एक नहीं, दो नहीं, बल्कि लगभग 10 से अधिक बच्चों को मौत की नींद सुला दिया है। मानवाधिकार समूह ‘सेव द चिल्ड्रेन’ ने बताया कि सैन्य कार्रवाई में 20 बच्चों की मौत हो चुकी है। बच्ची की पहचान खिन मायो चित के रूप में की हुई है। बच्ची का इलाज बचाव दल द्वारा किया गया, लेकिन वह उसे बचा नहीं पाए। बच्ची के 19 वर्षीय भाई को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

सेना की कार्रवाई में अब तक 164 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है। लेकिन ‘एसिस्टेंस एसोसिएशन फाॅर पाॅलिटिकल प्रिजनर्स’ (एएपीपी) ने ये आंकड़ा 261 बताया है। अपना बचाव करते हुए सेना का कहना है कि लगातार हो रही मौतों के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं। स्थानीय मीडिया आउटलेट म्यांमार नाउ द्वारा बताया गया कि सैनिकों ने उसके पिता को गोली मारनी चाही थी। लेकिन एक चूक से गोली पिता के बजाए गोद में बैठी बच्ची को लग गई।

सेना की बर्बरता ने देश की पुलिस के एक बहुत बड़े वर्ग को भी विचलित कर डाला है। पुलिसकर्मी इस निर्मम कार्रवाई का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं। पिछले कुछ समय में म्यांमार से ऐसे ही कई पुलिसकर्मी भारत की सीमा मिजोरम में पनाह लेने आ गए थे। जिनका कहना था कि हम इस बर्बर सैन्य कार्रवाई का हिस्सा नहीं रहना चाहते। हालांकि अब तक म्यांमार में 150 से ज्यादा लोगों की हत्या म्यांमार सेना कर चुकी है और स्थिति ये है कि म्यांमार से लोग पलायन कर भारत आ रहे हैं। लेकिन, भारत सरकार ने म्यांमार से शरणार्थियों के भारत आने पर रोक लगा दी है। ऐसे में म्यांमार के शरणार्थियों को भारत आने देने की अपील की गई है। इसके साथ ही मिजोरम सरकार ने म्यांमार से आये शरणार्थियों को वापस भेजने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उन्हें वापस भेजने से इनकार कर दिया है। फिलहाल म्यांमार में लगतार हो रहे प्रदर्शन और अब इसके खिलाफ सेना की निर्मम कार्रवाई को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर चिंता की जा रही है।

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