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हार मानने के तैयार नहीं हांगकांग

भारत को सदैव टेढ़ी नजर से देखता रहा चीन अब खुद अपने जाल में फंसता जा रहा है। चीन के सैनिक निरंतर नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर भारतीय सीमा में घुसते रहे हैं। कश्मीर और लद्दाख पर बुरी नजर रखने वाला चीन अब अपने आप से जूझ रहा है। जिस हांगकांग में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए उसने बर्बरता की सारी हदें पार की उसी हांगकांग ने अब जहरीले ड्रैगन की दुम पर पांव रख दिया है। इस बार चीन की छाती पर कोई महाशक्ति नहीं, बल्कि हांगकांग सवार हो गया है। हांगकांग की छतरी में चीन ऐसा फंस चुका है कि ना तो उससे निगलते बन पा रहा है, ना ही उगलते। हांगकांग की अनोखी अंब्रेला क्रांति से चीन की बोलती बंद हो गई है। आज हांगकांग का बच्चा-बच्चा चीन के खिलाफ सड़कों पर है।

हांगकांग में आजादी की सबसे बड़ी जंग छिड़ी हुई है। वहां की जनता चीन की कैद से आजादी चाहती है। वहां के लोग छाते लेकर और चेहरे पर मास्क लगाकर प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध जताने के लिए यहां के लोग लेजर बीम का इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां तक कि घरों में खुद ही स्मोक बम बनाकर पुलिस से लोहा ले रहे हैं। दरअसल, हांगकांग में विरोध-प्रदर्शन की शुरुआत चीन के लाए गए एक बिल के फलस्वरूप हुई है। हांगकांग की जनता महसूस कर रही है कि यह बिल उसकी स्वयत्तता के खिलाफ है। उसकी स्वतंत्रता छीनी जा रही हैं। लिहाजा विरोध -प्रदर्शन ने विकराल रूप धारण कर लिया है।

पिछले दिनों में चीन ने कश्मीर को लेकर बड़ी-बड़ी नैतिक बातें कहीं और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चिंता जताई। विडंबना है कि चीन जब कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ साझा मकसद साधने में जुटा था, तो उन्हीं दिनों वह एक प्रत्यर्पण विधेयक के जरिए हांगकांग को अपने आगे घुटने टेकने को मजबूर करने की कोशिश कर एक अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन कर रहा था। लेकिन हांगकांग भी चीन के इस बिल के खिलाफ हार मानने को तैयार नहीं है। वर्ष 1984 के चीनी-ब्रिटिश घोषणापत्र के अंतरराष्ट्रीय समझौते पर चीन और ब्रिटेन ने दस्तखत किए थे। इसके जरिए हांगकांग की संप्रभुता 1997 से बीजिंग को सौंप दी गई थी। लेकिन इसके साथ ये चेतावनियां भी जुड़ी थी कि ‘एक देश, दो प्रणालियों’ के सिद्धांत का पालन होगा और हांगकांग की पूंजीवादी व्यवस्था 50 साल यानी 2047 तक कायम रखी जाएगी। अब चीन 30 साल पहले ही इस बंदरगाह शहर पर पूरा कब्जा करने की कोशिश में है, पर हांगकांग भी जोरदार प्रतिरोध कर रहा है।

हांगकांग की आंदोलनकारी जनता के प्रबल विरोध और बुलंद हौसलों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 10 अगस्त को वहां की सड़कों पर भारी बारिश के बावजूद संगीत प्रधान फिल्म लेस मिजरेबल्स के एक मशहूर गाने के बोल गूंज रहे थे, ‘डू यू हियर दि पीपल सिंग? सिंगिंग दि सांग आॅफ ऐंग्री मेन?’ इसे गाते हुए करीब 20 लाख लोग प्रदर्शन कर रहे थे। बारिश भी उन्हें डिगा नहीं सकी। वे चीन के प्रत्यर्पण विधेयक लाने के प्रस्ताव का विरोध कर रहे थे, जो चीन में वांछित लोगों के प्रत्यर्पण की इजाजत दे देगा। लोगों को डर है कि यह विधेयक हांगकांग को चीन के अधिकार क्षेत्र में ले आएगा, जिससे उसकी स्वायत्तता और नागरिक अधिकार कमजोर होंगे। उन्होंने हांगकांग के चीफ एक्जीक्यूटिव कैरी लैम के इस्तीफे की भी मांग की।

उल्लेखनीय हे कि हांगकांग में 2014 में भी ऐसे ही नजारे थे। उस वक्त सार्वभौम मताधिकार की मांग पर असर डालने वाले चुनाव सुधारों के खिलाफ ‘छाता आंदोलन’ हुआ था। उसको कुचल दिया गया और फैसले को बदला नहीं जा सका था। इस साल भी मानसून का मौसम होने की वजह से एक बार फिर छाते लोगों के प्रतिरोध का प्रतीक बन गए हैं। फिलहाल चीन ऊहापोह में है, प्रोपगेंडा की लड़ाई का पहला दौर वह हार चुका है। खबरों के मुताबिक 700 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार या हिरासत ले लिया गया है।

दुनिया इसे उत्सुकता से देख रही है, वहीं चीन के सामने कई चुनौतियां हैं। पीपल्स लिबरेशन आर्मी हांगकांग की सरहद पर तैयार खड़ी है, पर अभी वहां दाखिल नहीं हुई है।

 

बीजिंग को पता है कि हांगकांग में सेना भेजने को दुनिया में किस तरह लिया जाएगा, वह भी तब जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग संयुक्त राष्ट्र आम सभा में भाग लेने सितंबर में न्यूयार्क जाने वाले हैं। चीन अपनी बेल्ट ऐंड रोड पहल के जरिए खुद को अंतरराष्ट्रीय सहयोग के स्तंभ के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है, जो इस कदम से उलटा पड़ जाएगा।

ऐसा लगता है कि जनवादी गणराज्य चीन की स्थापना की 70वीं सालगिरह 1 अक्टूबर को पड़ रही है। तब तक चीन की तरफ से कोई कार्रवाई की संभावना नहीं है क्योंकि जश्न का माहौल कहीं खराब न हो जाए। बहरहाल अभी चीन की पुलिस प्रदर्शनकारियों से लड़ रही है, लेकिन अब उसने हांगकांग की सीमा के पास अपनी फौज तैनात कर दी है। यहां तक कि चीन की सरकार हांगकांग के प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी घोषित करती जा रही है। चालबाज चीन हिंदुस्तान के निजी फैसलों पर दखल दे रहा है, जबकि खुद पूरा हांगकांग चीन के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है। दो महीनों से ज्यादा वक्त हो गया है, हांगकांग की आवाज चीन दबा नहीं सका। हांगकांग में हर जगह लोगों का सैलाब उमड़ रहा है। दरअसल, हांगकांग के प्रदर्शनकारियों को चीन में लाकर मुकदमा चलाने का एक विधेयक लाया गया था। बिल में प्रावधान था कि कोई व्यक्ति चीन में अपराध करता है तो उसे जांच के लिए प्रत्यर्पित किया जा सकेगा। इस बिल से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी हांगकांग पर अपना दबदबा कायम करना चाहती है। हांगकांग के लोग इस बिल का जोरदार विरोध कर रहे हैं। हांगकांग के लाखों प्रदर्शनकारियों की बगावत को देखकर सरकार ने विधेयक तो वापस ले लिया, लेकिन प्रदर्शनकारियों के विरोध की आंधी नहीं रुक रही है। आजादी की इस जंग को कुचलने के लिए चीन हर हथकंडे अपना रहा है। इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए चीन ने वहां के आम नागरिकों पर हमले तक कराए जिसमें कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। इसके बावजूद प्रदर्शनकारी जिनपिंग सरकार की तानाशाही के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। यहां तक कि हांगकांग में लोगों ने एक आंख पर पट्टी बांधकर भी विरोध किया।

चीन की सरकार के सामने अपना मुकम्मल विरोध जताने के लिए हांगकांग के लोग ना तो कोई हिंसक रास्ता अपना रहे हैं और ना ही फेसबुक और वाट्सअप जैसे सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। चीनी सरकार इनके आंदोलन को कुचलने के लिए अपनी फौज, पुलिस और टेक्नोलाॅजी का सहारा ले रही है, लेकिन प्रदर्शनकारी पुराने तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए वो सांकेतिक भाषा का सहारा ले रहे हैं।

हांगकांग पर चीन के दबदबे की कहानी अफीम युद्ध से जुड़ी है। अफीम बेचने और चीनियों को अफीमची बनाने के विरोध में चीन और इंग्लैंड के बीच 1839 से 1842 तक एक युद्ध हुआ जिसे प्रथम अफीम युद्ध कहते हैं। इस युद्ध में चीन की हार हुई और उसे इंग्लैंड को हांगकांग भेंट कर देना पड़ा। 1842 से लेकर 1997 तक हांगकांग इंग्लैंड का उपनिवेश रहा।

हांगकांग लगभग 200 छोटे-बड़े द्वीपों का समूह है और इसका शाब्दिक अर्थ है सुगंधित बंदरगाह। कहते हैं कि हांगकांग में ही पूरब और पश्चिम का मिलन होता है। हांगकांग में गगनचुम्बी इमारतें दुनिया के किसी भी शहर से ज्यादा हैं। अत्याधुनिक ट्रैफिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार से रहित प्रशासन और सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली आर्थिक प्रगति हांगकांग की पहचान है। हांगकांग की इसी समृद्धि पर चालबाज चीन की नजर है और वो इसे किसी भी कीमत पर आजाद और स्वायत्त नहीं रहने देना चाहता है।

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