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हिंडनबर्ग के निशाने पर एक और जानी-मानी कंपनी

 

अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग के को-फाउंडर नाथन एंडरसन ने एक रिपोर्ट के द्वारा अडानी को दुनिया के टॉप टेन अमीरों की श्रेड़ी से काफी निचे गिरा दिया। हिंडनबर्ग के द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट का असर न केवल अमेरिका बल्कि दुनिया के तमाम देशों में भी होता है। विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त इस कंपनी की कहानी बेहद प्रसिद्ध है। अडानी मामले के बाद अब फिर से इस कंपनी ने ट्विटर के को-फाउंडर जैक डोर्सी की कंपनी ब्लॉक इंक पर निशाना साधते हुए एक नई रिपोर्ट जारी करने का ऐलान किया है। 

 

हिंडनबर्ग के को-फाउंडर
हिंडनबर्ग कंपनी के फाउंडर नाथन एंडरसन अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल बिजनेस में ग्रेजुएशन की, जिसके बाद वह नौकरी की तलाश में निकल पड़े। उनकी ये तलाश एक डाटा रिसर्च कंपनी की दहलीज पर आकर रुकी, यहां एंडरसन को पैसों के इनवेस्टमेंट से जुड़ी रिसर्च का काम सौंपा गया। नौकरी करते हुए उन्होंने डाटा और शेयर मार्केट की बारीकियों को जाना और उन्हें समझ आ गया कि शेयर मार्केट दुनिया के पूंजीपतियों का सबसे बड़ा अड्डा है। नौकरी करते हुए नाथन एंडरसन समझने लगे थे कि शेयर मार्केट में काफी कुछ ऐसा हो रहा है, जो आम लोगों की समझ से बाहर की बात है। बस यहीं से उनके दिमाग में अपनी रिसर्च कंपनी शुरू करने और कंपनियों की गड़बड़ियों को उजागर कर उन्हें सही करने का आईडिया उन्हें समझ आया। जिसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ी और साल 2017 में ‘हिंडनबर्ग’ नाम से अपनी कंपनी शुरू की। कंपनी का नाम 6 मई 1937 में न्यू जर्सी के मैनचेस्टर टाउनशिप में हुए हिंडनबर्ग एयरशिप एक्सीडेंट के नाम हिंडनबर्ग रखा गया।

कंपनी के काम


हिंडनबर्ग एक इन्वेस्टमेंट फर्म होने के साथ ही शॉर्ट सेलिंग कंपनी है। यह एक एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर है, शॉर्ट सेलिंग के जरिए ये अरबों रुपये की कमाई करती है। शॉर्ट सेलिंग एक ट्रेडिंग या इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी है। इसमें कोई व्यक्ति किसी खास कीमत पर स्टॉक या सिक्योरिटीज खरीदता है और फिर कीमत ज्यादा होने पर उसे बेच देता है, जिससे उसे जोरदार फायदा होता है। दूसरे शब्दों में समझें तो शेयर मार्किट में कोई भी निवेशक किसी कंपनी के शेयर इस रणनीति के तहत खरीदता है कि उसके दाम भविष्य में बढ़ सकते हैं। जब शेयर के दाम बढ़ जाते हैं, वो इन्हें बेच देता है और अधिक मुनाफा कमाता है। इसके विपरीत शार्ट सेल्लिंग में शेयर की खरीद और बिक्री तब की जाती है जिसकी कीमत भविष्य में गिरने वाली होती है। ऐसे में शॉर्ट सेलर अपने पास शेयर न होते हुए भी इन्हें बेचता है। इस तरीके शॉर्ट सेलिंग की जाती है। शेयर की खरीद-बिक्री का अवैध नहीं, बल्कि पूरी तरह से वैध तरीका है, हालांकि इसमें जोखिम ज्यादा होता है।

उदाहरण के तौर पर समझें तो अगर किसी कंपनी के शेयर को शॉर्ट सेलर इस उम्मीद से खरीदता है कि भविष्य में 1000 रुपये का स्टॉक गिरकर 500 रुपये पर आ जाएगा। इसी उम्मीद में वो दूसरे ब्रोकर्स से इस कंपनी के शेयर उधार के तौर पर ले लेता है। ऐसा करने के बाद शॉर्ट सेलर इन उधार लिए गए शेयरों को दूसरे निवेशकों को बेच देता है, जो इसे 1000 रुपये के भाव से ही खरीदने को तैयार होते हैं। वहीं जब उम्मीद के मुताबिक, कंपनी का शेयर गिरकर 500 रुपये पर आ जाता है, तो शॉर्ट उन्हीं निवेशकों से शेयरों की खरीद करता है। गिरावट के समय में वो शेयर 500 रुपये के भाव पर खरीदता है और जिससे उधार लिया था उसे वापस कर देता है। इस हिसाब से उसे प्रति शेयर 1000 रुपये का जोरदार मुनाफा होता है।इसी रणनीति के तहत हिंडनबर्ग कंपनियों को शॉर्ट कर कमाई करती है। 

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