हर वर्ष 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ दिवस का आयोजन किया जाता है। इस बार भी इसका आयोजन किया गया। इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोरोना महामारी से पहले दुनिया भर में आठ में से लगभग एक व्यक्ति मानसिक समस्याओं से पीड़ित था। लेकिन महामारी के बाद मेंटल हेल्थ पर अधिक प्रभाव पड़ा है और वैश्विक महामारी ने पूरी दुनिया के लोगों के लिए मानसिक तनाव और बढ़ा दिया
पिछले तीन वर्षों से एक ओर जहां दुनिया कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है वहीं इस जानलेवा वायरस ने कई गंभीर बीमारियों को भी जन्म दिया है। शारीरिक बीमारियों से त्रस्त व्यक्ति अब मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों से भी जूझ रहे हैं। ऐसी मानसिक बीमारियां जो न केवल मनुष्य के रहन-सहन के तरीकों पर बल्कि उसके आस-पास मौजूद लोगों की जिंदगियों पर भी अपना प्रभाव डाल रही हैं। विश्व स्तर पर फैली ये बीमारियां दिन-प्रतिदिन जटिल व विशाल रूप धारण करती जा रही हैं। इससे निपटने के लिए हर वर्ष 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ दिवस का आयोजन किया जाता है। इस खास दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर बढ़ रही दिमागी सेहत से जुड़ी समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक करने और इस बढ़ते खतरे को कम करना है। इस बार भी इसका आयोजन किया गया। इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोरोना महामारी से पहले दुनिया भर में आठ में से लगभग एक व्यक्ति मानसिक समस्याओं से पीड़ित था। लेकिन महामारी के बाद मेंटल हेल्थ पर अधिक प्रभाव पड़ा है और वैश्विक महामारी ने पूरी दुनिया के लोगों के लिए मानसिक तनाव और बढ़ा दिया है। इसने मनुष्य के जीवन को स्थायी रूप से बदल दिया था।
दरअसल, हर वर्ष 10 अक्टूबर को ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है। वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने मिलकर वर्ष 1992 में 10 अक्टूबर को ‘वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे’ सेलिब्रेट करने की घोषणा की थी। इसके बाद से यह दिवस प्रत्येक वर्ष मनाया जाने लगा। इस दिन को मनाने का उद्देश्य है मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के प्रति लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना, साथ ही लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षित करने और मेंटल हेल्थ के मुद्दों को लेकर समाज में मौजूद कई भ्रांतियों को कम करना भी है। हर साल इसे एक खास थीम के तहत सेलिब्रेट किया जाता है। इस वर्ष डब्लूएचओ ने ‘वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे 2022’ की थीम ‘मेकिंग मेंटल हेल्थ एंड वेल-बीइंग फॉर ऑल-ए-ग्लोबल प्राइयॉरिटी’ रखी थी।
भारत की स्थिति
भारत अन्य देशों की तुलना में मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में पीछे है। दुनिया के ज्यादातर देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5-18 फीसदी मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं, जबकि भारत का इस दिशा में खर्च 0.05 फीसदी ही है। देश में इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भी कमी है। हालत यह है कि (130 करोड़ की आबादी के लिए मात्र 10 हजार ही मान्यता प्राप्त मनोचिकित्सक हैं, इनमें भी ज्यादातर लोग शहरी क्षेत्रों में हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उचित मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का भारी अभाव है।
वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के कुल मामलों में भारत से 15 फीसदी केस हैं। भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च का आकड़ा अभी प्रारंभिक हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2022 के लिए 39.45 लाख करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया था, इसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को 83 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए गए। वर्ष 2021-22 में 71 हजार 269 करोड़ रुपए के बजट की तुलना में इस साल लगभग 16.5 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में प्रयास करते हुए सरकार की तरफ से गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग और देखभाल सेवाओं तक बेहतर पहुंच प्रदान करने के लिए ‘राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम’ की घोषणा की गई है। इसमें 23 टेली-मानसिक स्वास्थ्य उत्कृष्टता केंद्रों का एक नेटवर्क शामिल होने की बात कही गई थी।
देश में मानसिक स्वास्थ्य विकारों के केस में 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी आई है। हालांकि सुविधाओं में इस स्तर पर कोई खास सुधार नहीं हुआ है। टेली कंसल्टेंसी जैसी तकनीक ने लोगों के लिए दूर बैठकर भी परामर्श लेना जरूर बनाया है पर अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा और जागरूकता की कमी के चलते, ये सेवाएं शहरी आबादी के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आ रही हैं।
कोविड-19 ने हर एक व्यक्ति को मानसिक तौर पर प्रभावित किया है, चाहे वे संक्रमित हुए हों या नहीं। मानसिक स्वास्थ्य की बढ़ती इस तरह की चुनौतियों को लेकर चिंता जाहिर करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान में कहा ‘भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले वाला देश है। दस साल पहले चीन शीर्ष पर था, लेकिन अब भारत में सबसे ज्यादा लोग आत्महत्या कर रहे हैं।’ राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डेटा के अनुसार साल 2021 में 1.64 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की, 2020 में यह आंकड़ा 1.53 लाख था। आत्महत्या रोकथाम के लिए कानून की जरूरत को ध्यान में रखते हुए हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने एक सार्थक पहल जरूर की है लेकिन देश के अन्य राज्यों को भी इस दिशा में आगे आने की आवश्यकता है।
मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण
विश्व के समग्र विकास के लिए लोगों के ‘क्वालिटी ऑफ लाइफ’ यानी कि गुणवत्ता पूर्ण जीवन की महत्वपूर्ण भूमिका खोती जा रही है। विश्व में मौजूद हर एक व्यक्ति का स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है। यदि विश्व में मौजूद व्यक्ति की मानसिक स्थिति ही ठीक नहीं होगी तो एक स्वस्थ समाज का निर्माण भी न हो सकेगा। स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि स्कूली स्तर से ही बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किए जाने की आवश्यकता है। इसे पाठ्यक्रम का विषय बनाया जाना चाहिए जिससे बच्चों में समझ को विकसित किया जा सके। स्कूली पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करके अगली पीढ़ी को इसके
वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में जागरूक करने में मदद मिल सकती है, जिससे इस दिशा में चले आ रहे कलंक के भाव को कम किया जा सके। इससे लोगों के लिए इस बारे में बात करना, इलाज प्राप्त करना सहज हो सकेगा।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को समय पर इलाज न मिल पाना एक प्रमुख कारण है। चूंकि लोगों के मन में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अब भी रूढ़िवादी सोच है, लोग क्या सोचेंगे? कहीं मुझे पागल न समझ लिया जाए। मानसिक स्वास्थ्य का इलाज काफी महंगा है। मनोचिकित्सकों से मिलने का मतलब मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है, आदि के चलते लोग समय पर डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं, ऐसे में समस्या समय के साथ बढ़ती चली जाती है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर व्याप्त भ्रम और स्टिग्मा के चलते लोग अपनी समस्याएं दूसरों के साथ साझा नहीं करना चाहते, इस तरह की सोच को बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है।