- प्रियंका यादव, प्रशिक्षु
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। युद्ध के चलते रूस पर कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए गए हैं लेकिन इसके बावजूद भारत और रूस की दोस्ती बरकरार है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन और पीएम मोदी की हालिया बातचीत में पुतिन ने भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को आगे बढ़ाने की बात कही है
चार महीनों से भी ज्यादा समय से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है युद्ध के चलते रूस पर कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए गए हैं लेकिन इसके बावजूद भारत और रूस की दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ा है। पिछले दिनों रूसी राष्ट्रपति पुतिन और पीएम मोदी के बीच हुई वार्ता में पुतिन ने भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को आगे बढ़ाने की बात कही है। इस दौरान रूसी राष्ट्रपति ने पीएम मोदी को यूक्रेन युद्ध के बारे में पूरी जानकारी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस-यूक्रेन संकट को बातचीत और कूटनीति के जरिए सुलझाने को कहा है। हालांकि भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध को सुलझाने के प्रयास कई बार किए हैं, इसके बावजूद भी भारत पर पश्चिमी देशों द्वारा रूस के युद्ध समर्थक होने का आरोप लगाया जाता रहा है। अमेरिका भारत पर रूस के खिलाफ अपनी स्थिति स्पष्ट करने और रूस की आलोचना करने के लिए लगातार दबाव बनाता रहा है। लेकिन अमेरिका के कूटनीतिक प्रयास भी भारत और रूस की मजबूत दोस्ती को तोड़ नहीं पाएं हैं।
इस वार्ता के दौरान दोनों नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा और खाद्य बाजारों की स्थिति सहित वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने बातचीत के समय दिसंबर 2021 में राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के दौरान लिए गए निर्णयों के कार्यान्वयन की भी समीक्षा की। गौरतलब है कि बीते वर्ष पुतिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशो ने 28 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। जिसमें कनेक्टिविटी से लेकर सैन्य सहयोग, ऊर्जा साझेदारी से लेकर अंतरिक्ष क्षेत्र में भागीदारी सहित कई मुद्दे शामिल थे। साथ ही दोनो देशों ने संयुक्त बयान जारी कर अपनी दोस्ती को शांति, प्रगति और समृद्धि की साझेदारी करार दिया था। उस दौरान भारत और रूस के रिश्ते को बताते हुए राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि रूस की नजर में भारत एक महान शक्ति, एक मित्र देश और समय की कसौटी पर परखा हुआ भरोसेमंद दोस्त है। पीएमओ के मुताबिक विशेष रूप से कृषि वस्तुओं, उर्वरकों, फार्मा उत्पादों में द्विपक्षीय व्यापार को और आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है।
दरअसल, रूस दुनिया का प्रमुख उर्वरक उत्पादक देश है। पश्चिमी देशों के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जाने के कारण विश्व भर में खाद्य मूल्यों में बढ़ोतरी हुई है। प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस के प्रति दोस्ती का विश्वसनीय मॉडल प्रस्तुत करते हुए रूस से तेल और उर्वरक खरीदना जारी रखा है। भारत ने उर्वरक आयात के लिए रूस के साथ वार्ता शुरू की थी। इसी के तहत भारत रूस से लंबे समय तक उर्वरक आयात कर रहा है। भारतीय अधिकारियों के अनुसार रूस के साथ उर्वरक आयात वस्तु विनिमय समझौते (बार्टर एग्रीमेंट) के तहत किया गया था। बार्टर एग्रीमेंट या वस्तु विनिमय के तहत नकद लेन-देन के बजाए किसी वस्तु के आयात के बदले में दूसरी वस्तु दी जाती है। देश की 2.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की 15 फीसदी हिस्सेदारी है। वैश्विक भू राजनीतिक स्थिति और उर्वरक के बढ़ते दाम को देखते हुए भारत ने इसी साल फरवरी में ही रूस से आयात की चर्चा शुरू की थी। रूस पर लगे पाबंदियों को देखते हुए भारत उर्वरक आयात के बदले में रूस को नकद भुगदान की बजाए कच्चा माल और ऑटो मोबाइल की वस्तुओं का निर्यात करता है। गौरतलब है कि भारत उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। वह हर साल रूस से 10 लाख टन डाई- अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और 8,00,000 टन नाइट्रोजन, फास्फोरस पोटेशियम (एनपीके) आयात करता है।
रूस के साथ आर्थिक और रणनीतिक सहयोग
वार्ता के समय दोनों नेताओं ने पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक सहयोग को और प्रगाढ़ करने और ऊर्जा के क्षेत्र में
रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने के लिए परस्पर इच्छा व्यक्त की है। आर्थिक सहयोग हेतु दोनों देश आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए वर्ष 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 अरब डॉलर और द्विपक्षीय व्यापार को 30 अरब डॉलर तक बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। दरअसल, रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध के चलते रूस को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अमेरिका और यूरोप संघ समेत पश्चिम के कई देशों ने रूस की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से रुस के कई बैंकों रोशिया, आईएस बैंक, जेन बैंक, प्रोमसव्याजबैंक, ब्लैक सी बैंक पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए हुए हैं। ताकि रूस को
अंतरराष्ट्रीय कर्ज बाजार से आर्थिक सहायता न मिल सके। रूसी तेल पर लगे हुए प्रतिबंधों के कारण वैश्विक खाद्य और ऊर्जा बाजार प्रभावित हुआ है। रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध से अमेरिका और यूरोप सहित कई देशों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके कारण दुनियाभर के कई देशों में पेट्रोल डीजल समेत अनाज के दाम अब तक के उच्चतम स्तर पर जा पहुंचे हैं।
गौरतलब है कि भारत ने उस दौरान भी रूस के साथ आर्थिक और रणनीतिक सहयोग बनाए रखा जब अमेरिका भारत पर लगातार रूस के विरोध में बोलने का दबाव बना रहा था। अमेरिका के साथ जहां पिछले कुछ सालों में भारत का आर्थिक और
सामरिक सहयोग काफी बढ़ा है वहीं भारत रूस पर रक्षा से जुड़े उत्पादों की सप्लाई को लेकर निर्भर रहा है। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के तमाम दबावों के बावजूद भारत यूक्रेन-रूस के मामले में तटस्थता की भूमिका में रहा है। भारत ने अमेरिका के चेतावनी के खिलाफ जाकर रणनीतिक साझेदारी को अपनाते हुए रूस से एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम एस 400 की डिलीवरी ली थी। हालांकि उस समय यह अनुमान लगाया जा रहा था रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस मिसाइल की डिलीवरी में रूस देरी कर सकता है लेकिन रूस ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि यूक्रेन में चल रहे उसके सैन्य अभियान का कोई असर भारत को की जाने वाली मिसाइल आपूर्ति पर नही होगा। इसलिए रूस ने मिसाइल एस 400 को भारत को दिए गए तय समय के अनुसार ही भारत तक पहुंचाया था।
सुरक्षा प्रणाली का आधार बिंदु रूस हाल ही मे पांच प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की बैठक हुई थी। ब्रिक्स बैठक के दौरान भारत ने एक बार फिर दुनिया को बताया कि वह किसी भी गुट का हिस्सा नहीं है। इससे भारत ने यह संदेश भी दिया कि भारत जितना क्वाड का सक्रिय सदस्य है उतनी ही अहम भागीदारी उसकी ब्रिक्स में भी है। ब्रिक्स सम्मेलन के बाद भारत और रूस द्वारा की गई यह वार्ता दोनों देशों के संबंधों को और प्रगाढ़ करने के लिए अहम कदम माना जा रहा है। गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मौजूदा हालात में भारत एक तरह से ‘तलवार की नोक पर’ ही चल रहा है। जहां उसे रूस और अमेरिका से अपने रिश्तों को लेकर संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसी प्रकार से चीन से लोहा लेने के लिए अमेरिका के लिए भारत का साथ मिलना जरूरी है।
गौरतलब है कि रूस से भारत के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं। चीन के साथ सीमा विवाद में रूस ने हमेशा भारत की मदद की है। इसके साथ ही रक्षा क्षेत्र में रूस और भारत के बीच सहयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। वैसे तो रक्षा हथियारों की खरीद में रूस पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए भारत अब फ्रांस, अमेरिका, इजरायल, ब्रिटेन से भी हथियार खरीद रहा है। लेकिन रुस के साथ रक्षा क्षेत्र में विशेष संबंध है। भारत का लगभग 70 फीसदी सैन्य हार्डवेयर रूसी मूल का है। डीआरडीओ की मिसाइल हो या न्यूक्लियर सबमरीन रूस जो मदद कर सकता है वह अमेरिका या अन्य देश नहीं कर सकते हैं।