अक्सर हमें भोजन की बर्बादी न करने का पाठ पढ़ाया जाता है। भोजन की अहमियत क्या है शायद ही कोई इंसान हो जिसे पता न हो। उसके बावजूद विश्व स्तर पर लोगों द्वारा भोजन बर्बाद किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पश्चिम एशिया में 34 प्रतिशत भोजन बर्बाद होता है, जो किसी के भी खाने योग्य नहीं रह जाता। बर्बाद हुआ यह भोजन, खाद्य अपशिष्ट के रूप में छोटे कूड़ेदानों से विशाल कूड़ाघरों यानि लैंडफ़िल में पहुँचकर, हानिकारक मीथेन गैस उत्पन्न करता है, जिसका जलवायु परिवर्तन बड़ा हिस्सा है। भोजन की बर्बादी सिर्फ पश्चिम एशिया की ही समस्या नहीं है बल्कि दुनिया भर के लगभग सभी देशों की है । संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक साल 2021 खाद्य अपशिष्ट सूचकांक के अनुसार केवल सिर्फ साल 2019 में लगभग एक अरब टन खाद्य अपशिष्ट वजूद में आया था। जिसमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा अपशिष्ट घरों से , 26 प्रतिशत खाद्य क्षेत्र से और 13 प्रतिशत अपशिष्ट खुदरा क्षेत्र से आया था । रिपोर्ट के अनुसार खेत से थाली तक भोजन पहुंचने में कुल मिलाकर 17 फीसदी भोजन बर्बाद हुआ है। वहीं 3 अरब 10 करोड़ लोगों को उनके स्वास्थ्य हेतु भोजन नहीं मिल पा रहा इसके अलावा लगभग 82 करोड़ 80 लाख लोग भुखमरी का शिकार है। जिससे गरीबी , भुखमरी , असमानता व संयुक्त राष्ट्र के जिम्मेदार खपत व उत्पादन से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों पर प्रगति करना कमजोर हो जाता है।
भोजन की बर्बादी से जलवायु संकट
रिपोर्ट में कहा गया है कि भोजन की बर्बादी के साथ -साथ इसके उत्पादन में लगने वाला पानी ,परिवहन के लिए ऊर्जा से लेकर भूमि जैसे सभी संसाधनों का भी नुकसान होता है। इसके अलावा ज्यादातर बर्बाद भोजन कूड़ेदानों में फेंक दिया जाता है, जहाँ वो सड़कर मीथेन गैस बनाता है। मीथेन गैस, एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो कि जलवायु संकट निर्माण करने में अपनी भागीदारी देता है। इसे लेकर यूनेप के पश्चिम एशिया के क्षेत्रीय निदेशक, सामी डिमासी का कहना है कि भोजन बर्बादी दुनिया के ऐसे हिस्से में हो रही है, जिसके लिए यह बर्बादी बोझ ढो पाना कठिन है। दरअसल यह क्षेत्र, खाद्य आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर और पानी जैसे दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों और सीमित अनुकूलन क्षमता के कारण, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील है।
विश्व स्तर पर भोजन की बर्बादी कई वजहों से होती है। जैसे भोजन के लिए सामग्री की ज्यादा की खरीद ,सही प्रकार से भंडारण न कर पाना, जमाखोरी या फिर बहुत अधिक भोजन पकाने अथवा परोसने की आदतें शामिल है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए, भोजन की बर्बादी को कम करना बेहद जरूरी है। वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8 से10 प्रतिशत हिस्सा, अपशिष्ट भोजन से आता है, जिससे जलवायु व सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं में योगदान होता है। इसी को देखते हुए UNEP द्वारा पश्चिम एशिया में रेसिपी ऑफ़ चेंज’ अभियान भी शुरू किया गया है। जो कि उपभोक्ताओं को भोजन की बर्बादी के प्रति जागरूक होने लिए प्रेरित करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों को भोजन की बर्बादी के समाधान हेतु सिर्फ सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
भोजन बर्बादी के कारण
खाद्य उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि पश्चिम एशिया की संस्कृति भी भोजन की बर्बादी पर प्रभाव डालती हैं। अक्सर शादियों जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में भोजन बर्बाद होते दिखाई देता है। प्रतिदिन 200 लोगों और विशेष आयोजनों के दौरान लगभग एक हजार लोगों तक के लिए भोजन बनाने वाले रेस्तरॉं से जुड़े ईसा अलबालुशी का कहना है कि उनके रेस्तराँ में भोजन बर्बाद होना आम बात हो गई है। हालांकि उन्होंने इसका समाधान निकालते हुए अपने रेस्तरां में बनने वाले व्यंजन के लिए सटीक मात्रा में सामग्री तोलने के लिए एक नई प्रणाली स्थापित की है। इसके अलावा उनके कर्मचारी बचे हुए भोजन को भी दो भागों में विभाजित करते हैं। पहला वो भोजन जो ग्राहकों को नहीं परोसा गया है, वो वंचित समुदायों को दान कर दिया जाता है, और दूसरा वो जो भोजन परोसा जा चुका है, उसमें से माँस व सब्ज़ियों को अलग-अलग रखकर, पशुओं एवं पालतू जानवरों को खिलाया जाता है। इस तरह के उपायों को इस्तेमाल में लाकर विशाल कूड़ेदानों में फेंके जाने के बाद, शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्पादन करने वाले भोजन-अपशिष्ट की मात्रा में कमी लाई जा सकती है।