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अनूठी शिक्षा का केंद्र बना फिनलैंड

दुनिया में सबसे बेहतर शिक्षा व्यवस्था फिनलैंड की मानी जाती है। यहां पढ़ाई का तरीका बिल्कुल अलग और अनोखा है। फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था कुछ लोगों को अटपटी भी लग सकती है

आज के इस आधुनिक दौर में पूरी दुनिया आधुनिक होती जा रही है। जिन्हें सिर्फ शिक्षा के दम पर ही समझना संभव है। तकनीक से जुड़ी चीजों को सीखने और समझने के लिए शिक्षा की भूमिका सबसे अहम है। जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है वैसे-वैसे शिक्षा का तंत्र भी पूरी तरह से बदल रहा है। वहीं स्कूलों में भारी बस्ते का बोझ और परीक्षाओं का डर जस का तस है। लेकिन दुनिया का एक देश ऐसा भी है जहां स्कूलों में बच्चों को न तो एग्जाम का डर है और न कंधों पर भारी बस्ते का बोझ है। जी हां, कुछ ऐसे ही हैं फिनलैंड के स्कूल जहां क्लास में बच्चे बोर नहीं होते बल्कि पूरी ऊर्जा के साथ पढ़ाई करते हैं। क्योंकि फिनलैंड का फंडा ऊंचे नंबरों के लिए कम्पटीटिव दौड़ है ही नहीं। ये सिस्टम उन तमाम देशों को सीख देता है, जो आज भी नंबर रेस, एग्जाम और कंपटीशन में अपने स्टूडेंट को फंसाए रखकर दबाव और तनाव को जगह देते रहते हैं।

गौरतलब है कि फिनलैंड उत्तरी यूरोप में बसा एक देश है। यहां की आबादी मात्र 55 लाख है। लेकिन इस छोटे से देश ने शिक्षा के क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित किए हैं, उसका लोहा पूरी दुनिया मान रही है। वर्षों तक फिनलैंड ने अपनी सफल शिक्षा व्यवस्था से दुनिया के विभिन्न देशों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इसके साथ-साथ फिनलैंड ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले असेसमेंट में साक्षरता और गणित के क्षेत्र में भी अपना दबदबा कायम किया है। दुनिया भर में प्रसिद्ध मोबाइल कंपनी नोकिया फिनलैंड की ही है। फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम दुनिया में सबसे अच्छी शिक्षा पद्धति मानी जाती है। दुनिया भर के विशेषज्ञ, राजनीतिज्ञ और पत्रकार इस देश की शिक्षा व्यवस्था को जानने के लिए यहां आते हैं। यहां का एजुकेशन सिस्टम अमेरिका, ब्रिटेन या अन्य देशों की तुलना में एकदम अलग है। फिनलैंड आज से नहीं बल्कि दशकों से इस मामले में बहुत आगे रहा है।

फिनलैंड के एजुकेशन सिस्टम स्टूडेंट्स को एक अलग तरह की स्वतंत्रता तो देता ही है, साथ ही क्रिएटिविटी के लिए भी लगातार उत्साहित करता है। यहां जब बच्चा 7 साल का हो जाता है तब उसकी फॉर्मल स्कूलिंग शुरू होती है। जब तक बच्चा 16 का नहीं हो जाता तब वो किसी भी तरह के एग्जाम में नहीं बैठता। सात साल से पहले हर बच्चे को शुरुआती चाइल्डहुड एजुकेशन दी जाती है और उनकी केयर होती है। फिनलैंड के स्कूल में टीचर एक दिन में चार घंटे ही पढ़ाते हैं। यहां प्राइमरी स्कूल के बच्चे को यहां स्कूल में एक साल में सिर्फ 670 घंटे ही गुजारने होते हैं।

यहां बच्चों पर किसी भी तरह का बोझ नहीं होता, वे अपनी इच्छा और अपनी क्षमता के हिसाब से अपने विषय चुन सकते हैं। फिनलैंड की चर्चा दुनियाभर में हो रही है और उसका एक कारण फिनलैंड एजुकेशन हब भी हैं। क्योंकि फिनलैंड एजुकेशन हब द्वारा दुनिया के सभी देशों में इस एजुकेशन सिस्टम को स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है। यह हब दूसरे देशों में इस शिक्षा के पैटर्न को अपनाने के लिए सहायता उपलब्ध कराता है। फिनलैंड के शिक्षा मॉडल ‘फिनिश शिक्षा प्रणाली’ को दुनिया भर से प्रशंसा मिली है। इसे सामान्य ज्ञान आधारित शिक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता है, ऐसे कई मानदंड हैं जो फिनिश शिक्षा प्रणाली को दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग करते हैं।

 

‘दि संडे पोस्ट’ से बातचीत में फिनलैंड एजुकेशन हब के सीईओ ‘आशीष श्रीवास्तव’ कहते हैं कि ध्यान देने योग्य बात यह है कि पीसा में फिनलैंड को नंबर वन बताया जा रहा है लेकिन यह पीसा रैंकिंग में नंबर 1 पर नहीं है, हां, यह रैंक नंबर 1 है जब आप सीखने के परिणामों और छात्र कल्याण दोनों को देखते हैं जो दर्शाता है कि एक देश के रूप में फिनलैंड छात्र की भलाई को सबसे ऊपर रखता है। पीआईएसए छात्रों ने वे महत्त्वपूर्ण दक्षताएं हासिल की हैं (अथवा नहीं) जो
आधुनिक समाज में पूर्ण भागीदारी के लिए आवश्यक हैं।

छात्रों के मूल्यांकन करने के लिए फिनिश शिक्षा में परीक्षा या ग्रेड नहीं है तो छात्रों को किस आधार पर आंका जाता है इस पर बताते हुए आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि मूल्यांकन केवल अंकों के मूल्यांकन के बजाय कई तरीकों से होता है जैसे रचनात्मक मूल्यांकन और फिनिश शिक्षा में रचनात्मक मूल्यांकन पर ही फोकस किया जाता है।

माता-पिता ने क्या कहा
फिनिश शिक्षा अभी भी भारत में एक बहुत ही नई अवधारणा है जो थोड़ा बहुत ब्रिटिश/अमेरिकी प्रणालियों का पालन करती है, इसलिए माता-पिता इतने जागरूक नहीं हैं। हालांकि जिन स्कूलों में फिनिश भारतीय प्रणाली लागू की जा रही है, वहां एक बात देखी गई है कि अभिभावक खुश हैं और बच्चे जिज्ञासु हैं। बच्चे स्कूल जाना पसंद करते हैं। लेकिन अभी भी 30 फीसदी माता-पिता अपने बच्चों से 90 फीसदी और उससे अधिक अंक प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं, फिर भी परिवर्तन शुरू हो गया है और इसका असर धीमा और स्थिर हो रहा है।

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