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ऑनलाइन उत्पीड़न की शिकार महिला राजनेता

इक्कीसवीं शताब्दी में दुनिया के अधिकतर लोगों को आधी आबादी का राजनीति में आना गवारा नहीं है। जब वह राजनीति में प्रवेश करती है तो उन पर अभद्र टिप्पणियां की जाती हैं, उन्हें हतोत्साहित किया जाता है। अमेरिका की फर्स्ट लेडी रही हिलेरी क्लिंटन को भी इस पीड़ा से गुजरना पड़ा है। शायद यही वजह है कि राजनीति से महिलाएं दूरी बनाती हैं। युगांडा के कंपाला की डिप्टी लॉर्ड मेयर डोरेन न्यांजुरा को उस समय ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा जब उन्होंने आगामी राष्ट्रपति चुनाव में उतरने की घोषणा की

क्या राजनीति में महिलाएं पूर्वाग्रह, भेदभाव और कमतर समझे जाने को अभिशप्त हैं? भारत के संदर्भ में अगर देखा जाए तो इस सवाल का जवाब ‘हां’ होगा। लेकिन सच यह है कि भारत और भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देशों में चाहें वह विकसित देश या विकासशील, सभी में महिलाओं के लिए राजनीति में आना, बने रहना एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। इसका एक उदाहरण वर्ष 2016 में सामने आया जब अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हिलेरी क्लिंटन जैसी सशक्त महिला को केवल एक स्त्री होने के कारण एक इस परिस्थिति का सामना करना पड़ा था। उनके खिलाफ चुनाव प्रचार अभियान पूरी तरह से उनके महिला होने पर केंद्रित था, उस दौरान अमेरिका ने हिलेरी के बहाने अमेरिकी राजनीति में ‘मिसोजिनी’ यानी स्त्री द्वेष का वह चेहरा देखा जो साठ साल पहले शुरू हुई लैंगिक बराबरी की लड़ाई के बावजूद अभी बहुत पीछे था। 2017 में एक इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया और कहा, ‘मिसोजिनी एक महामारी है, यह हमारे समाज की मानसिकता में पैदाइशी है।’ ऐसा ही कुछ हुआ है 4.96 करोड़ आबादी वाले देश युगांडा में, जहां एक महिला नेता (डोरेन न्यांजुरा) के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का ऐलान करते ही उन पर अभद्र टिप्पणियों की बौछार शुरू हो गई। डोरेन न्यांजुरा युगांडा के कंपाला की डिप्टी लॉर्ड मेयर हैं। उन्होंने हाल ही में ट्विटर पर घोषणा की कि वह युगांडा के 2026 के राष्ट्रपति चुनाव में उतरेंगी।

ऐसा नहीं है कि युगांडा की राजधानी शहर कंपाला की डिप्टी लॉर्ड मेयर न्यांजुरा के लिए इस तरह की टिप्पणियां पहली बार की गई हों, बल्कि मेयर बनने से पहले भी और अब भी यह सब वह झेल रही हैं। न्यांजुरा ने अमेरिका के एक न्यूज चैनल से बातचीत में बताया कि मेरे साथ इस व्यवहार का एक कारण मेरा अविवाहित होना भी है। कुछ लोगों का कहना है कि ‘मैं जिम्मेदार नहीं हूं क्योंकि मैं शादीशुदा नहीं हूं।’ एक पोस्ट में मुझे कमेंट किया गया कि ‘पहले शादी करो फिर राष्ट्रपति की सीट पर चुनाव लड़ना, क्योंकि आप उन लोगों पर शासन नहीं कर सकते जो शादीशुदा हैं। आप उन्हें क्या सलाह देंगे?’ जबकि लोगों की इस सोच के विपरीत न्यूजीलैंड की 37 साल की प्रधानमंत्री जैसिंडा ऑर्डर्न ने इसे साबित भी कर दिखाया। उन्होंने महिला राजनीति में एक मिशाल कायम कर प्रधानमंत्री होते हुए भी विवाह किए बिना मां बनकर ऐसे लोगों के मुंह पर ताला जड़ दिया है।

एक दशक से अधिक समय से लागू कानून
महिला राजनेताओं का यह ऑनलाइन उत्पीड़न एक ऐसे देश में हो रहा है जहां एक दशक से अधिक समय से साइबर सुरक्षा कानून मौजूद है। युगांडा में कंप्यूटर मिसयूज एक्ट के तहत आपत्तिजनक संचार और साइबर उत्पीड़न पर कार्रवाई हो सकती है। इस कानून में 2022 में अभद्र भाषा जोड़ने के लिए संशोधन किया गया था। कानून के तहत साइबर उत्पीड़न के आरोपी को सात सौ पचास रुपए का जुर्माना या सात साल तक की कारावास या दोनों का प्रावधान है। हालांकि विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों ने लंबे समय से चिंता जताई है कि हाल ही में संशोधन के बाद भी ट्रोलिंग और उत्पीड़न से कमजोर आबादी की रक्षा करने के बजाय कानून का इस्तेमाल कार्यकर्ताओं और सरकार के विरोध को चुप कराने के लिए किया जाता है। कई कानूनी और महिला अधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि ऑनलाइन उत्पीड़न में त्वरित न्याय न मिलने और कई चुनौतियों के सामना करने को लेकर महिलाओं ने संबंधित अधिकारियों के दुर्व्यवहार की रिपोर्ट नहीं करने का निर्णय लिया। कई महिला राजनेता इस बात को स्वीकारती हैं कि राजनीति में सोशल मीडिया का इस्तेमाल काफी महत्वपूर्ण है लेकिन ऑनलाइन उत्पीड़न से डरकर महिलाएं खुद को इनसे दूर रखने को विवश हैं।

युगांडा के विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं को युगांडा की राजनीति में मुखर होने और पुरुषों के सामने अपने विचारों को रखने के लिए एक बेहतर वातावरण देने की आवश्यकता है। इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन के लैंगिक समानता कार्यक्रम की अधिकारी ब्रिगिट फिलियन कहती हैं, ‘हमें अर्थव्यवस्था और सामाजिक नीतियों को बनाने के तरीके को बदलने के लिए वास्तव में महिलाओं की जरूरत है। जब संसद में महिलाएं होती हैं तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा और लिंग संबंधी मुद्दों पर अधिक कानून और नीतियां बनाई जा सकती हैं। यदि राजनीति में महिलाओं को समान रूप से शामिल नहीं किया जाता है तो यह समाज के लिए बहुत बड़ा नुकसान साबित होगा।’

ऑनलाइन उत्पीड़न

युगांडा में ऑनलाइन उत्पीड़न की शिकार महिला राजनेताओं के साथ कई संगठन काम कर रहे हैं। उन्हीं में से एक युगांडा का गैर सरकारी संगठन डब्ल्यूओयूजीएनइटी है जो 20 से अधिक वर्षों से इस क्षेत्र में सक्रिय है, यह संगठन महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार के अनुभवों को केवल सुनता ही नहीं है, बल्कि इन मुद्दों पर बेहतर कानून बनाने के लिए भी आवाज उठाता रहता है। यह महिलाओं, लड़कियों और महिला अधिकार संगठनों के बीच तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देने वाला एक एनजीओ है।

क्या कहती हैं रिपोर्ट्स?
युगांडा में हाल के सर्वेक्षणों से यह पता चलता है कि महिलाओं को ऑनलाइन निशाने पर लिया जाना कितना आम है। वर्ष 2020 में फेमिनिस्ट टेक क्लेक्टिव पॉलिसी द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि युगांडा में 18 से 65 वर्ष की आयु के बीच की तीन महिलाओं में से एक ने कहा कि उन्होंने ऑनलाइन उत्पीड़न का अनुभव किया है। 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि 50 प्रतिशत ट्रोलिंग का अनुभव करने वाली महिलाओं में राजनीति से जुड़ी महिलाएं और हाई-प्रोफाइल महिलाएं शामिल हैं। कई महिलाओं ने तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को ही छोड़ दिया है। इस संगठन द्वारा वर्ष 2021 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि महिला राजनेताओं द्वारा मतदाताओं से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग पुरुषों की तुलना में बहुत कम किया गया था।

अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) और अफ्रीकी संसदीय संघ (एपीयू) द्वारा संचालित अफ्रीका की संसदों में महिलाओं पर 2021 के एक अन्य अध्ययन के अनुसार, 42 प्रतिशत महिला सांसदों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए हत्या, बलात्कार या अपहरण की धमकी दी गई थी। दुनिया की संसद में महिला प्रतिनिधित्व होने के मामले में भारत का स्थान पाकिस्तान से भी पीछे है, जिनेवा स्थित इंटर- पार्लियामेंट्री यूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में भारत का स्थान 150वां है जबकि पाकिस्तान का 101वां। भारत की संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 2019 की लोकसभा में सबसे अधिक है तब भी यह केवल 14. 3 प्रतिशत है जो 2014 में 11.8 फीसदी था, जबकि दुनिया के 50 देशों की संसद में महिलाओं की संख्या कुल सदस्यों के 30 प्रतिशत से अधिक है। पिछले साल अक्टूबर तक के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 9 प्रतिशत सदस्य देश ऐसे हैं जहां कोई महिला सरकार का नेतृत्व कर रही थीं, साथ ही वैश्विक स्तर पर महिला सांसदों की राजनीति में कुल हिस्सेदारी केवल 24 प्रतिशत है।

जर्नल ऑफ इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गेनाइजेशन में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि जिन सरकारों में महिलाओं की भागीदारी अधिक होती है वहां भ्रष्टाचार कम होता है। लेकिन सच यह है कि दुनिया भर में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी की प्रक्रिया में गिरावट दर्ज हो रही है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष मारिया फर्नांडा एस्पिनोसा ने न्यूयॉर्क में महिलाओं की स्थिति पर आयोग के 63वें सत्र के दौरान सत्ता में महिलाओं की भागीदारी के विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि मौजूदा रुझान के जारी रहते दुनिया को लैंगिक बराबरी हासिल करने में 107 साल और लगेंगे। हालांकि यह पहली बार है जब संयुक्त राष्ट्र वरिष्ठ प्रबंधन समूहों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र में सदस्य देशों में टीमों का नेतृत्व करने वाले रेजिडेंट को-ऑर्डिनेटर के पदों में भी लैंगिक बराबरी हासिल कर ली गई है। अब संयुक्त राष्ट्र के सभी वरिष्ठ पदों पर 2021 तक लैंगिक बराबरी हासिल करने का लक्ष्य है, लेकिन बाकी जगहों पर ऐसा नहीं है जबकि विकास, मानवाधिकार, शांति और शक्ति समीकरणों में संतुलन के लिए राजनीति में महिलाओं का होना जरूरी है।

 

 

राजनीति में आना एक महिला के लिए बहुत बड़ा साहसी कदम होता है। राजनीति में आकर लोगों का नेतृत्व करना महिला-पुरुष, हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करना बड़ी बात होती है। दूसरा राजनीति में महिलाओं की भूमिका और साथ यहां महिलाओं को चौतरफा साहस की जरूरत पड़ती है पहले तो परिवार से उसको बगावत करनी पड़ती है, फिर समाज से बगावत करनी पड़ती है। हर पुरुष प्रधान देश जैसे भारत पुरुष प्रधान देश है यहां महिला को अगर राजनीति के क्षेत्र में जाना है उसे इतनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है उसे ऐसा लगता है जैसे वह किसी घनघोर जंगल में घिरी हुई है और यहीं से उसको रास्ता निकालना है और मंजिल की ओर बढ़ना चाह रही हो। अगर मैं जमीनी हकीकत की बात करूं तो भारतीय परिवेश में हमें मिला हुआ है कि महिलाएं क्या हैं रोटी- पानी बनाएं, घर का काम-काज देखें, बच्चे पाले, उसके लिए इतना ही दायरा बना दिया गया है। ऐसी सोच पैदा कर दी गई है कि बस महिलाओं को यहीं तक सीमित रहना है। लेकिन देश की आजादी के बाद कई अधिकार मिले, व्यवस्थाएं बनी तो मुझे लगता है कि महिलाओं को सबका साथ मिलना चाहिए। क्योंकि राजनीति में आने के उपरांत और उससे पहले महिलाओं को सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है जिसके कारण वे इस हथियार के उपयोग से परहेज करने लगती हैं तो ऐसे में सबको महिलाओं को सहज अनुभव कराने की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। महिलाओं को ऐसी टिप्पणियों का जवाब देना चाहिए और अधिक ऊर्जा के साथ राजनीति में सक्रियता दिखानी चाहिए क्योंकि उनकी क्षमताओं की देश को जरूरत है।
कुमारी विद्या गौतम, महिला नेता, बसपा उ.प्र.

 

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