[gtranslate]
world

फिर विवादों में फेसबुक

सोशल मीडिया का दिग्गज प्लेटफार्म फेसबुक एक बार फिर अपनी नीतियों के चलते भारी दबाव में है। आरोप लग रहे हैं कि अधिक मुनाफा कमाने के लिए फेसबुक फर्जी खबरों से लेकर हेट स्पीच और समाज को धर्म के आधार पर बांटने वाली पोस्ट पर कार्यवाही करने से बचता रहा है

‘फेसबुक’ इस नाम से अब पूरी दुनिया वाकिफ है, क्योंकि अब ‘सोशल मीडिया प्लेटफोर्म’ हर किसी की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुका है। युवाओं के लिए तो सोशल मीडिया आज की प्राथमिकता बन चुका है। कहीं न कहीं डिजिटल प्लेटफॉर्म ने हमारी जिंदगी में अघोषित कब्जा कर लिया है। इन्होंने आम आदमी की जिंदगी में गहरी जड़ें जमा ली हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में सबसे अधिक और लोकप्रिय फेसबुक है। लेकिन फेसबुक को लेकर आए दिन नए खुलासे इस दिग्गज प्लेटफॉर्म की मुश्किलें बढ़ाते जा रहे हैं। एक तरफ फेसबुक अपनी रिब्रांडिंग के सपने देख रहा है तो दूसरी तरफ उस पर लग रहे आरोप उसकी लोकप्रियता और प्राइवेसी पॉलिसी पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं।


फेसबुक किसी देश तक सीमित न होकर विश्व के हर एक हिस्से में यह अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है। यह सोशल नेटवर्किंग ‘ऑरकुट’ के साथ शुरू हुआ। ऑरकुट तो लगभग खत्म हो चुका है और इसकी जगह ले ली है फेसबुक ने। वैसे तो आए दिन फेसबुक पर दुनियाभर में फर्जी खबरों को नजरअंदाज करने के आरोप लगते रहे हैं। कई देशों में तो फेसबुक पर करोड़ों का जुर्माना तक लगाया जा चुका है। लेकिन अब सोशल मीडिया प्लेटफोर्म फेसबुक ‘फेकबुक’ की शक्ल लेता जा रहा है। ये निष्कर्ष उसकी खुद की दर्जनों अंदरूनी रिपोर्ट्स और शोधों का है। ‘फेसबुक पेपर्स’ के नाम से ये सारी जानकारियां समाचार संस्थानों के एक वैश्विक समूह द्वारा सार्वजनिक की गई हैं। इस समूह में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ भी शामिल है।

‘फेसबुक पेपर्स’ के मुताबिक भारत में फर्जी अकाउंट्स से झूठी खबरों के जरिए चुनावों को प्रभावित किया जाता है। इसकी पूरी जानकारी फेसबुक को है, लेकिन उसके द्वारा इस प्रकार के फर्जी अकाउंट्स को नजरअंदाज किया जाता रहा है। इस तरह की सामग्री को रोकने के लिए कंपनी ने जितना बजट तय किया है, उसका 87 प्रतिशत सिर्फ अमेरिका में खर्च होता है। इसलिए आरोपों से घिरे फेसबुक को कई देशों में संघर्ष करना पड़ रहा है। ताजा खुलासे में फेसबुक भारत में गलत सूचनाओं और अभद्र भाषा को रोकने में विफल पाया गया है।

खुलासा किसने किया है?

ये खुलासा फेसबुक के कर्मचारियों और शोधार्थियों की ओर से एक दर्जन अंदरूनी रिपोर्ट्स की स्टडी के आधार पर किया गया है। समाचार संस्थानों के एक इंटरनेशल ग्रुप ने ‘फेसबुक पेपर्स’ के नाम से इसे सार्वजानिक किया है।

फेसबुक की पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर रह चुकी फ्रांसिस होगेन ने इन रिपोर्ट्स के डॉक्युमेंट जुटाए हैं। इनके आधार पर वे लगातार फेसबुक की कार्य प्रणाली, अंदरूनी खामियों आदि से जुड़े खुलासे कर रही हैं। जिसके कारण फेसबुक विवादों में पूरी तरह से घिर चुका है।

क्या है विवादों की पूरी कहानी ?

पिछले एक महीने से लगातार फेसबुक पर आरोप लगने का सिलसिला जारी है। इस दौरान कंपनी के कई इंटरनल डॉक्युमेंट लीक हुए हैं। ये डॉक्युमेंट फेसबुक की पूर्व कर्मचारी और व्हिसल ब्लोअर फ्रांसिस होगेन ने लीक किए हैं। होगेन ने अमेरिका की सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (ईसी) और अखबार ‘वॉल स्ट्रीट जनरल’ को ये डॉक्युमेंट लीक किए। जिसके बाद फेसबुक को दुनिया भर में आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। खुलासों में कहा गया है कि कंपनी को अपने प्रोडक्ट के निगेटिव इंपैक्ट के बारे में पता था। इसके बाद भी कंपनी ने इसे अनदेखा किया।

3 अक्टूबर को सूचनाएं लीक करने वाली फ्रांसिस होगेन ने अपनी पहचान उजागर की। होगेन फेसबुक की सिविक मिस- इन्फॉर्मेशन टीम की लीड प्रोडक्ट मैनेजर थीं। वह फेसबुक में लोकतंत्र और भ्रामक सूचनाओं पर काम करती थीं, बाद में उन्होंने काउंटर जासूसी से जुड़े मुद्दे पर काम किया। इसी साल मई में उन्होंने कंपनी छोड़ दी। यह विवाद फेसबुक पर भारी दबाव बना रहा है। विवाद के बाद ही फेसबुक ने अपने नए प्रोडक्ट ‘इंस्टाग्राम किड्स’ का डेवलपमेंट रोक दिया है। कंपनी की जनसंपर्क टीम लगातार इन आरोपों पर आक्रामकता से जवाब दे रही है।

होगेन का फेसबुक पर आरोप

पहचान उजागर करने के बाद होगेन की अमेरिकी सीनेट में गवाही हुई। लगभग तीन घंटे तक चली गवाही में उन्होंने कहा कि फेसबुक बच्चों को जानबूझकर अपने ऐप की लत लगाने की कोशिशों में रहता है। होगेन ने कहा है कि फेसबुक बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, लोकतंत्र और समाज के लिए बड़ा खतरा है। ये भेदभाव पैदा करता है। चुने गए जनप्रतिनिधियों को इस पर काबू करना चाहिए। फेसबुक कंपनी जानती है कि उसके इंस्टाग्राम जैसे ऐप सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद कंपनी सुधार के लिए कोई कार्रवाई नहीं करती है। फेसबुक की ‘प्रॉफिट- ओवर-सेफ्टी’ (सुरक्षा पर लाभ को तरजीह देने) की रणनीति सबसे अधिक जिम्मेदार है।
होगेन के मुताबिक म्यांमार और इथोपिया में गृहयुद्ध के दौरान झूठी सूचनाएं चलीं। फेसबुक नफरत फैलाने वाले पोस्ट पर रोक नहीं लगा पाया। चीन-ईरान मामले में भी ऐसा ही हुआ। सरकारों ने फेसबुक का अपने पक्ष में इस्तेमाल किया। फेसबुक ने आतंक रोधी अपने सेल में सोची समझी रणनीति के तहत स्टाफ को कम किया।

फेसबुक की ही एक और पूर्व कर्मचारी ने सोशल नेटवर्किंग साइट को लेकर कुछ खुलासे किए हैं। उनका दावा है कि कंपनी ने पिछले साल दिल्ली चुनावों में फर्जी अकाउंट्स के खिलाफ सिलेक्टिव कार्रवाई की। खुलासा करने वाली इस कर्मचारी का नाम सोफी झांग है। वो कंपनी में बतौर डेटा साइंटिस्ट काम कर चुकी हैं। सोफी ने 3 साल फेसबुक के साथ काम किया था। 2020 में उन्हें खराब काम का हवाला देकर कंपनी से निकाल दिया गया था।

यह भी पढ़ें : आस्ट्रेलिया सोशल मीडिया प्लेटफार्मो पर लगाएगा कानूनी लगाम

दरअसल, 2018 में फेसबुक ने अपने न्यूज फीड एल्गोरिद्म में बड़ा बदलाव किया। इसमें कंपनी ने कहा कि वो पोस्ट को पर्सनलाइज कर रही हैं। इससे यूजर को पब्लिक पोस्ट कम दिखेंगे। ऐसे पोस्ट ज्यादा दिखेंगे जिनसे वो इंटरैक्ट करता है। हालांकि, फेसबुक की इंटरनल रिसर्च में सामने आया कि इन बदलावों का उसे नुकसान हो रहा है। रिसर्च में कंपनी ने पाया कि हेटफुल, विभाजनकारी और सांप्रदायिक कंटेंट में सबसे ज्यादा एंगेजमेंट होता है। ये दावा व्हिसल ब्लोअर फ्रांसिस होगेन ने एक इंटरव्यू में किया।

वॉल स्ट्रीट जनरल के मुताबिक फेसबुक के डेटा साइंटिस्ट ने इस तरह के कंटेंट को कम करने की कोशिश की, लेकिन मार्क जुकरबर्ग ने इनमें से कुछ बदलाव का विरोध किया, क्योंकि इन बदलावों से एंगेजमेंट कम हो सकता था।

आरोपों पर फेसबुक का जवाब 


फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जकरबर्ग ने कहा है कि इन दावों में कोई सच्चाई नहीं है कि सोशल मीडिया का कोई ऐप बच्चों को नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने कहा फेसबुक कभी फायदे को सुरक्षा के मुकाबले में तवज्जो नहीं देती है। फेसबुक कर्मचारियों को लिखे ब्लॉग में उन्होंने कहा है कि हम जानबूझकर ऐसे कंटेंट को आगे नहीं बढ़ाते जो लोगों को नुकसान पहुंचाएं। फेसबुक को अगस्त 2020 में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के बाद से ही भारत में जांच का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि कंपनी की सीनियर एग्जीक्यूटिव अंखी दास ने भाजपा से जुड़े लोगों और पेजों पर-कंपनी के हेट-स्पीच नियम लागू करने का विरोध किया था। भारत 32.8 करोड़ से ज्यादा यूजर्स के साथ फेसबुक का सबसे बड़ा बाजार है। इसके बाद अंखी दास को इस्तीफा देना पड़ा था।

साथ ही फेसबुक पर भाजपा नेताओं के भड़काऊ पोस्ट पर कार्रवाई नहीं करने के आरोप भी लगाए गए थे। वहीं भाजपा ने फेसबुक पर राष्ट्रवादी कंटेंट को सेंसर करने का आरोप लगाया था। भारत में फेसबुक की ही कंपनी वॉट्सऐप की भी जांच जारी है। सीसीआई (कम्पटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) द्वारा वॉट्सऐप की नई प्राइवेसी पॉलिसी की जांच की जा रही है। फेसबुक के लिए ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि उसने दुनिया को इतना छोटा कर दिया है कि आसपास की हर गतिविधि को लोग फेसबुक पर खोजने लगे हैं और उसे ही सही और प्रमाणित मानने लगे हैं। जिसके चलते हर पोस्ट पर हिंसा भड़क जाना अब बेहद आम बात हो गई है।

जिस तरह ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस में फेसबुक जैसी दिग्गज कंपनियों के खिलाफ कदम उठाया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि दुनियाभर में ऐसा कानून होना चाहिए। न्यूज वेबसाइट्स पर अतिरिक्त ट्रैफिक आता है। सवाल उठने लगे हैं कि गूगल और फेसबुक इस ट्रैफिक का मोटा फायदा लेते हैं और न्यूज साइट्स को धेला भी नहीं देती हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD