एक ओर जहां पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है वहीं दूसरी तरफ रूस- यूक्रेन युद्ध से दुनियाभर के मुल्कों की अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार का असर दिखने लगा है। ऐसी स्थिति में पड़ोसी देश नेपाल में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। हालत यह है कि बढ़ती महंगाई को लेकर देश की जनता सड़कों पर उतर आई है। दरअसल, नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो रहा है। नेपाल राष्ट्र बैंक की इस वर्ष अप्रैल मध्य की रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 9.58 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया था। ये रकम पिछले वर्ष अप्रैल के विदेशी मुद्रा भंडार के मुकाबले करीब 2 अरब डॉलर कम है। इसके परिणाम स्वरूप विश्लेषक कह रहे हैं कि नेपाल अब अगले साढ़े 6 महीने के लिए ही सामानों का आयात कर सकता है।
नेपाल में विदेशी मुद्रा का मुख्य स्रोत है और इसका योगदान कुल विदेशी मुद्रा में लगभग 50 प्रतिशत है। दिलचस्प बात यह है कि कोरोना महामारी के बावजूद भी नेपाल में भेजी गई विदेशी मुद्रा में बढ़ोतरी हुई है उसके बाद वर्ष 2020 के मध्य से लेकर फरवरी 2021 के मध्य की अवधि में आयात में महत्वपूर्ण रूप से गिरावट आई है। गौरतलब है कि नेपाल निवेश, उत्पादन और उत्पादकता के मामले में सबसे कमजोर स्थिति में है। नेपाल सबसे ज्यादा सामानों का आयात करता है। नेपाल सिर्फ कृषि से जुड़े सामानों का ही निर्यात करता है जैसे कालीन, जूट, चाय पत्ती, कॉफी और इलायची आदि।
नेपाल में बढ़ती महंगाई
नेपाल राष्ट्र बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक नेपाल में महंगाई की दर 7 .28 प्रतिशत है। आने वाले दिनों में महंगाई की दर में बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही है। वर्ष 2015 के विनाशकारी भूकंप के बाद पिछले कुछ समय में नेपाल की महंगाई दर 4 .25 प्रतिशत के इर्द-गिर्द घूम रही है। वर्तमान में ज्यादा महंगाई की वजह रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चेन में आई दिक्कत, पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में बढ़ोतरी, अमेरिकी डॉलर की बढ़ती कीमत, देश में ताजा स्थानीय स्तर के चुनाव के दौरान हुए खर्च है। जिसके बाद ही नेपाल ने विलासिता के सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगाया है।
नेपाल में खाद्य असुरक्षा
कहा जा रहा है कि कम होती विदेशी मुद्रा के कारण देश में खाद्य संकट आ सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल में लगभग 46 लाख लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में रूस- यूक्रेन युद्ध का असर नेपाल पर पहले से ही पड़ा हुआ है और अब भारत ने भी अपना अनाज निर्यात करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका भी अब असर नेपाल पर पड़ने वाला है।
श्रीलंका जैसी हालात न हो जाए
नेपाल के आम लोगों को डर सताने लगा है कि है कहीं उनकी स्थिति भी श्रीलंका जैसी न हो जाए। इसकी वजह महंगाई की बढ़ती दर और व्यापार घाटे में बढ़ोतरी है। लेकिन श्रीलंका और नेपाल की आर्थिक संरचना अलग-अलग है और इसकी वजह से नेपाल श्रीलंका जैसी स्थिति से बच सकता है। मिसाल के तौर पर श्रीलंका के मुकाबले नेपाल पर विदेशी कर्ज काफी कम है। इसके अलावा नेपाल की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान अपेक्षाकृत कम है। सटीक तौर पर कहें तो श्रीलंका को इस साल 4 अरब अमेरिकी डॉलर के विदेशी कर्ज का भुगतान करना है जबकि नेपाल को इस साल सिर्फ 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी कर्ज देना है।
इसी तरह नेपाल की जीडीपी में पर्यटन का योगदान लगभग 3 प्रतिशत है जबकि श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन का योगदान करीब 12 प्रतिशत है। इस तरह इन दो कारणों से नेपाल की स्थिति श्रीलंका की तरह होने की आशंका कम जताई जा रही है। इसके अलावा नेपाल को जिस विदेशी कर्ज का भुगतान करना है, उसकी संरचना श्रीलंका से अलग है। नेपाल की स्थिति में उसके कर्ज में मुख्य रूप से सॉफ्ट लोन है जिस पर कम ब्याज दर देना पड़ता है जबकि श्रीलंका के विदेशी कर्ज में ज्यादातर हिस्सा व्यावसायिक कर्ज का है।